- भाजपा को मजबूत आधार पर देने में कल्याण सिंह ने अहम भूमिका निभाई है। पिछड़े वर्ग को भाजपा के साथ जोड़ने में उनका प्रमुख योगदान रहा है।
- कल्याण सिंह की एक सख्त प्रशासक की छवि रही है और उन्होंने जिम्मेदारी लेने से भी कभी परहेज नहीं किया।
- वह सत्ता की चाहत रखने वाले नेता नहीं रहे, हमेशा से उनकी कोशिश रही कि भाजपा का विस्तार हो।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता कल्याण सिंह का निधन हो गया है। कल्याण सिंह, राम जन्म भूमि आंदोलन से जुड़े नेता थे और जब विवादित बाबरी मस्जिद 1992 में गिराई गई तो वह उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे। राम जन्म भूमि आंदोलन की फायर ब्रांड नेता उमा भारती का उनसे काफी पुराना रिश्ता रहा है। अपने रिश्ते, राजनेता और प्रशासक के रूप में कल्याण सिंह के व्यक्तित्व पर मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्य मंत्री और पूर्व कैबिनेट मंत्री उमा भारती ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से एक्सक्लूसिव बात की है, पेश है प्रमुख अंश:
भाजपा को दिया आधार
मैं कल्याण सिंह जी के बारे में यह मानती हूं कि आज भाजपा जिस स्थिति में है, उसे आधार देने में उनकी अहम भूमिका रही है। उनका दो बातों से बड़ा योगदान रहा है। एक तो मैं उन्हें राम जन्म भूमि आंदोलन के समय मुख्य मंत्री के हैसियत से देखती हूं। उनके कार्यकाल में विवादित ढांचा गिराया गया था लेकिन उसे लेकर उनके अंदर "माफी (अपोलोजेटिक)" का भाव नहीं था। उन्होंने हर चीज को स्वीकार किया और कहा इसकी जो भी सजा होगी भुगत लूंगा।
दूसरी विशेषता यह थी कि वह पिछड़े वर्ग से आते थे और यह वह समय था जब पिछड़े वर्ग के लोग भाजपा से परहेज करते थे। क्योंकि उस वक्त इस वर्ग को ऐसा लगता था कि भाजपा उनके बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचती है। जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने तो पिछड़े वर्गों को यह लगा कि भाजपा में भी हमारे लिए जगह हो सकती है।
कुल मिलाकर राम जन्मभूमि आंदोलन की जो मजबूत भूमि तैयार हुई उसमें कल्याण सिंह की अहम भूमिका रही । और भाजपा का जो आधार बना, उसी वजह से आज भाजपा इस मुकाम पर है। उसमें उनके योगदान को कोई नहीं भूल सकता है। उसी आधार को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विस्तार दिया है। वह खुद भी अति पिछड़े वर्ग से आते हैं। और विकास की बात करते हैं। इसी का परिणाम है कि वह दो बार से प्रधान मंत्री हैं। इस राजनीति की शुरूआत कल्याण सिंह जी ने की थी।
प्रशासक के रूप में
कल्याण सिंह जी जब उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने तो उस समय उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश में शामिल था और उसकी आबादी अमेरिका से भी ज्यादा थी। उस समय प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं थी, उसे पूरी तरह से कल्याण सिंह ने काबू किया। उस समय भले ही राम मंदिर के नाम पर सरकार बनी थी। लेकिन उस सरकार ने गरीब, पिछड़ों और दलितों के लिए बहुत काम किया और उन्हें अन्याय और अत्याचार से बचाया। मेरे लिए वह पिता तुल्य बड़े भाई थे। मेरे उनसे आत्मीय नहीं परम आत्मीय संबंध थे। हम हाल ही में योजना बना रहे थे कि गंगा के किनारे 1 लाख लोगों को इकट्ठा करेंगे। अब मुझे बहुत दुख है कि वह नहीं होंगे और मैं अकेले वह काम करूंगी।
आगे बढ़कर जिम्मेदारी लेते थे
जब विवादित ढांचा गिरा तो उन्होंने इस बात की जिम्मेदारी ली और उसके लिए उन्होंने एक दिन की सजा भी भुगती थी। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने पीएसी को गोली चलाने का आदेश नहीं दिया। दूसरी बात यह समझनी चाहिए कि उन्होंने इसके लिए अधिकारियों को दोषी नहीं ठहराया। उन्होंने कहा जो कुछ हुआ उसके लिए मैं जिम्मेदार हूं। वह आज कल के मुख्य मंत्रियों जैसे नहीं थे जो सारी जिम्मेदारी अधिकारियों पर डाल देते हैं। आज के मुख्य मंत्री तो अधिकारियों का ट्रांसफर कर देते हैं और निलंबित कर देते हैं। लेकिन वह ऐसे नहीं थे। उन्होंने कहा कि मुझे फांसी चढ़ा दो, मैं ही वह व्यक्ति हूं जिसने गोली चलाने का आदेश नहीं दिया। आज के नेताओं को यह सीखना चाहिए कि जिम्मेदारी खुद लेनी चाहिए और उससे भागना नहीं चाहिए। जब से उत्तर प्रदेश बना, उस वक्त से कल्याण सिंह जैसा मुख्य मंत्री दूसरा कोई नहीं हुआ। वह सख्त होने के साथ मीठे भी थे और सारी जिम्मेदारी खुद लेते थे।
बाबरी मस्जिद को विवादित ढांचा क्यों कहते थे
वह हमेशा से विवादित ढांचा ही था। वामपंथी झुकाव के कुछ लोगों ने जहर घोलने का काम किया। उसे मस्जिद कहने लगे और मुसलमानों से उनकी भावना जोड़ दी। देखिए मुसलमानों की भावना हाजी मलंग, दरगाह, मक्का-मदीना के लिए होगी। एक विदेशी आंक्राता के लिए क्यों होगी ? इसलिए हम उसे विवादास्पद ढांचा कहते थे।
सत्ता का लालच नहीं
साल 1991 में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला तो उस वक्त उत्तर प्रदेश का चुनाव किसी नेता के चेहरे पर नहीं लड़ा गया था। चुनाव राम जन्म भूमि की लहर के दौरान हुए थे। जीत के बाद मैं लखनऊ में थी और बहुत तेज बुखार था। कल्याण सिंह जी और मैं वीआईपी गेस्ट हाउस में बैठे हुए थे। मैं उस समय केवल 30 साल की थी। उस समय मैंने उनसे कहा कि भाई साहब मुझे ऐसा लग रहा है "आपकी जगह कलराज मिश्र मुख्य मंत्री बन जाएंगे। तो इसमें क्या मैं कुछ कर सकती हूं ? तो उन्होंने कहा मैं कलराज मिश्र के मुख्य मंत्री बनने पर अपने से भी ज्यादा खुश हूंगा। वह मुझसे ज्यादा योग्य हैं।" उस वक्त वह अपनी बेटी को यह बात कह रहे थे। वह ऐसा कोई बयान नहीं था जो सार्वजनिक रुप से कहा गया था। जिसमें अक्सर नेता अंदर कुछ कहते है और बाहर कुछ और कहते हैं। बाद में कलराज मिश्र जी ने ही उनका नाम प्रस्तावित किया। इसलिए सत्ता लोलुप नेताओं को यह सीखना पड़ेगा कि राम लोलुप का मतलब है कि सत्ता से दूर रहो। और प्रशासक का मतलब है कि अच्छी बुरी बातों की जिम्मेदारी खुद लो और अपने आप को सजा के लिए प्रस्तुत कर दो।