- अगस्त 2020 में 23 नेताओं के समूह ने कांग्रेस के नेतृत्व और पार्टी में मौजूद असमंजस पर सवाल उठाए थे।
- G-23 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, मिलिंद देवड़ा, मुकुल वासनिक, मनीष तिवारी जैसे नेता शामिल थे।
- कांग्रेस नेतृत्व ने कई नेताओं को विभिन्न समितियों में शामिल कर विरोध को मैनेज करने की कोशिश की है।
Kapil Sibal and G-23:कांग्रेस से नेताओं को छोड़कर जाने से भले ही पार्टी कमजोर हो रही है लेकिन इस सिलसिले में गांधी परिवार के लिए राह आसान होती जा रही है। असल में कपिल सिब्बल के पार्टी छोड़ने से पार्टी के अंदर गांधी परिवार के नेतृत्व को मिल रही चुनौती काफी हद तक कमजोर हो सकती है। खास तौर पर तब, जब सोनिया गांधी ने बेहद कुशलता से G-23 के नाराज नेताओं को धीरे-धीरे मैनेज कर लिया है। ऐसे में अब बेहद कम संभावना रह गई है कि G-23 का कांटा गांधी परिवार को फिर से चुभे।
कपिल सिब्बल थे सबसे मुखर
2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के नेतृत्व में मिली शर्मनाक हार के बाद, कपिल सिब्बल उन नेताओं में से एक थे, जिन्होंने सीधे तौर पर गांधी परिवार के नेतृत्व को चुनौती दी थी। और इसी का परिणाम था कि अगस्त 2020 में 23 नेताओं के समूह ने कांग्रेस के नेतृत्व और पार्टी में मौजूद असमंजस पर सवाल उठाए थे। जो कि शरद पवार, ममता बनर्जी (इन लोगों ने गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए पार्टी छोड़ी थी) के बाद कांग्रेस के इतिहास में पहली बार था कि गांधी परिवार के नेतृत्व पर इतनी मुखरता से सवाल उठे थे। इन 23 नेताओं के समूह को G-23 कहा जाता है। और यह समूह मार्च में उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों के चुनाव के बाद कहीं ज्यादा मुखर हो गया था। और उसमें नए नेता भी शामिल हो गए थे। और ज्यादातर बैठकों की अगुआई कपिल सिब्बल के घर पर होती थी। और मामला इस हद तक बढ़ गया था कि कपिल सिब्बल ने गांधी परिवार को चुनौती देते हुए उसे घर की कांग्रेस तक कह दिया।
G-23 में कौन से अहम नेता
गांधी परिवार के लिए पिछले 2 साल से चुनौती बने G-23 के प्रमुख नेताओं में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, शशि थरूर, मिलिंद देवड़ा, मुकुल वासनिक, मनीष तिवारी, वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चाह्वाण, संदीप दीक्षित, राज बब्बर , जितिन प्रसाद और कपिल सिब्बल रहे हैं। इसमें जितिन प्रसाद अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं। जबकि कपिल सिब्बल ने पार्टी छोड़ दी है। इसके अलावा शशि थरूर भी अब 2020 तक की तरह मुखर नहीं रह गए हैं। साथ ही वह शुरूआती बैठकों के बाद G-23 के बैठकों से दूरी बना कर रख रहे हैं। हालांकि पांच राज्यों के चुनाव परिणामों की मार्च में हुई बैठक G-23 की बैठक में मणिशंकर अय्यर और पुराने कांग्रेसी नेता शंकर सिंह बघेला भी शामिल हुए थे। लेकिन इसके बावजूद कपिल सिब्बल को छोड़कर दूसरे नेताओं ने गांधी परिवार के खिलाफ नरमी दिखनी शुरू कर दी थी। इसलिए जब कपिल सिब्बल ने बैठक से पहले घर की कांग्रेस का बयान दिया तो G-23 की बैठक कपिल सिब्बल के घर से शिफ्ट हो गई ।
गांधी परिवार ने इस तरह मैनेज किया
बढ़ती चुनौती को देखते हुए G-23 के प्रमुख नेताओं को गांधी परिवार ने खास रणनीति के तहत साधने की कोशिश की। इसके तहत राहुल गांधी ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ कई दौर की बैठकें की। इसके अलावा सोनिया गांधी ने गुलाम नबी आजाद ,आनंद शर्मा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ बैठकें कर नाराजगी को दूर करने की कोशिशें की। इन बैठकों में प्रियंका गांधी भी काफी सक्रिय रहीं। और इन बैठकों का असर भी अब दिखने लगा है। हरियाणा में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी कुमारी शैलजा की जगह अब उदय भान को दे दी गई है। उदय भान हुड्डा के करीबी माने जाते हैं।
तो इसलिए सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, 'घर की कांग्रेस' पर मचा था बवाल
इसी तरह पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी में गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा को जगह दी गई है। इसी तरह टॉस्कफोर्स में मुकुल वासनिक और भारत जोड़ो यात्रा में शशि थरूर को जगह दी गई है। साथ ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कृषि संबंधी मामलों को लेकर बातचीत करने की जिम्मेदारी दे दी गई है।जाहिर है कांग्रेस नेतृत्व ने चुनौती देने वाले नेताओं को साधने की कोशिश की है। हालांकि अभी भी मनीष तिवारी , राज बब्बर, मिलिंद देवड़ा, पृथ्वी राज चाह्वाण जैसे नेताओं को इन ग्रुप में जगह नहीं मिली है। लेकिन एक बात तो साफ है गांधी परिवार के लिए कपिल सिब्बल के जाने और दूसरे नेताओं को कमेटी में शामिल करने के बाद G-23 से बड़ी चुनौती खड़ी होती नहीं दिख रही है।