- जहां तक क्षेत्रीय स्तर पर ताकत की बात है तो संख्या के मामले में ममता बनर्जी,केसीआर से ज्यादा मजबूत दिखती हैं।
- ममता बनर्जी की तरह तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के प्रमुख केसीआर ने राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की कोशिशें शुरू की है।
- बंगाल और पूर्वोत्तर में ममता अगर अच्छा प्रदर्शन करती हैं तो वह लोकसभा में 50 सीटों का आंकड़ा पार कर सकती हैं।
Mamata Banerjee, KCR And Third Front: 2024 में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के मुकाबले कौन इस कवायद में अब तीसरे मोर्चे (Third Front) से दो उम्मीदवार खड़े होते दिख रहे हैं। पूरब से जहां नेतृत्व पाने के लिए तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी अपनी दावेदारी ठोक रही हैं, वही दक्षिण से के.चंद्रशेखर राव ने भी अपने पासे चलने शुरू कर दिए हैं। और इसके लिए दोनों ने सबसे पहले एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar) को अपने पाले में लाने की कोशिशें की हैं। लेकिन पवार ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। अहम बात यह है कि विपक्ष को एकजुट करने की कवायद में दोनों नेता अब एक-दूसरे के लिए ही चुनौती बनते दिख रहे हैं।
क्या चाहते हैं ममता (Mamata Banerjee) और केसीआर (KCR)
असल में 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की बुरी हार के बाद से सबसे पहले ममता बनर्जी ने तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद शुरू की थी। कांग्रेस से उम्मीद के मुताबिक संदेश न पाकर ममता ने यह कोशिशें शुरू की। 2021 के विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल में भाजपा को पटखनी देने के बाद ममता बनर्जी की ये कोशिश रही कि वह मोदी के खिलाफ खुद को विपक्ष का चेहरा बना सकें। इसके लिए पहले उन्होंने कांग्रेस का साथ लेने की कोशिशें की, लेकिन वहां दाल गलती नहीं देख उन्होंने फिर राहुल गांधी और कांग्रेस पर निशाना साधना शुरू किया और तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिशें की हैं।
लेकिन बीते मार्च में गोवा में तृणमूल कांग्रेस (TMC) की बुरी हार और उत्तर प्रदेश-उत्तरांखड और मणिपुर में विपक्ष का निराशाजनक प्रदर्शन उनके लिए झटका साबित हुआ है। तृणमूल कांग्रेस को 40 सीटों वाली गोवा विधानसभा में एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई। इन चुनावों में उसे केवल 5.21 फीसदी वोट मिले। यही वजह है कि विधानसभा चुनावों के पहले जिस तरह ममता बनर्जी मुखर थी, वैसे तेवर वह कुछ दिनों से नहीं दिखा रही हैं। जबकि इसके पहले वह शरद पवार को भी साधने की कोशिश कर चुकी थी।
ममता बनर्जी की तरह तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS)के प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की कोशिशें शुरू की है। हाल ही में इसके लिए वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात कर चुके हैं। और किसानों के समर्थन के लिए भी दिल्ली में धरना दे चुके हैं। वह पंजाब में भगवंत से मिलने के बाद किसान परिवारों से भी मिले। इसके बाद केसीआर कर्नाटक, महाराष्ट्र, बंगाल, बिहार की भी यात्रा करने वाले हैं। इसके पहले वह ममता बनर्जी की तरह शरद पवार से भी मिल चुके हैं। जाहिर है केसीआर भी राष्ट्रीय राजनीति में अपनी संभावना तलाश रहे हैं।
ममता और केसीआर में कितना दम
जहां तक क्षेत्रीय स्तर पर ताकत की बात है तो ममता बनर्जी , केसीआर से ज्यादा मजबूत दिखती हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत पश्चिम बंगाल की 42 लोक सभा सीटें हैं। क्योंकि बंगाल में जिस तरह हाल ही में उप चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन रहा है और भाजपा में भगदड़ मची है। उसे देखते हुए ममता बनर्जी 2024 के लिए यहां से ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की उम्मीद लगाई हैं। ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी पॉजिटिव बात यह है कि कांग्रेस को छोड़कर दूसरे किसी विपक्षी दल में अभी यह ताकत नहीं है कि वह अकेले अपने दम पर 50 सीटों का आंकड़ा पार कर सके। खुद तृणमूल कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनावों में 22 सीटें हासिल हुई थी। लेकिन गोवा के विधानसभा चुनाव परिणामों से साफ हो गया है कि बंगाल के बाहर ममता बनर्जी को काफी मशक्कत करनी होगी। सबसे ज्यादा उम्मीदें उन्हें पूर्वोत्तर भारत से हैं। जहां पर वह काफी फोकस कर रही हैं। क्योंकि अगर वह बंगाल और पूर्वोत्तर में अच्छा प्रदर्शन करती हैं तो वह 50 का आंकड़ा पार कर सकती हैं। जो कि उनकी दावेदारी को बेहद मजबूत कर सकता है।
रही बात केसीआर की तो उनकी पार्टी केवल तेलंगाना तक ही सीमित है। और वहां पर केवल 17 लोकसभा सीटें हैं। जिसकी वजह से वह केवल तेलंगाना के दम पर बड़ी उपस्थिति नहीं दर्ज करा सकते हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों में टीआरएस को 9 सीटें मिली थी। जबकि भाजपा को 4 सीटें मिली थीं। ऐसे में केसीआर के लिए सबसे बड़ी परीक्षा तेलंगाना के 2023 के विधानसभा चुनावों में हैं। जहां पर अगर सत्ता में वापसी करते हैं, तो निश्चित तौर पर उनका राजनीति कद बढ़ेगा।
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कांग्रेस सबसे बड़ी रोड़ा
असल में भले ही ममता बनर्जी और के.चंद्रशेखर राव राष्ट्रीय मोर्चे का कवायद करें लेकिन उनकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा कांग्रेस (Congress) है। क्योंकि भले ही इन दोनों नेताओं ने कांग्रेस के बिना मोर्चा बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। लेकिन कांग्रेस अभी भी 200 से ज्यादा सीटों पर सीधे भाजपा को टक्कर देती हैं। और हाल ही में उदयपुर के चिंतन शिविर में राहुल गांधी ने जिस तरह से क्षेत्रीय दलों पर निशाना साधा है। उससे साफ है कि कांग्रेस भाजपा के खिलाफ नेतृत्व छोड़ना नहीं चाहती है। ऐसे में मोदी को चुनौती देने की कोशिश में फिलहाल विपक्ष बंटा हुआ दिखता है। अब देखना है कि 2024 तक आते-आते कौन साथ रहता है कौन साइडलाइन हो जाता है।