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10 महीने में किसान आंदोलन ने बदले कई रंग, जानें नॉन पॉलिटिकल से "वोट की चोट" तक का सफर

Updated Sep 27, 2021 | 12:57 IST

Farmers Protest: पिछले 10 महीनों में किसान आंदोलन ने 11 दौर की बातचीत, सड़कों पर बैठे किसान, लाल किला हिंसा, दिल्ली बार्डर पर सख्त बैरिकेटिंग, टूलकिट, किसान संसद, करनाल हिंसा और महापंचायत जैसे कई रंग देखे हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
संयुक्त किसान मोर्चा ने किया भारत बंद का ऐलान
मुख्य बातें
  • नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन की शुरूआत सितंबर 2020 में पंजाब और हरियाण से हुई ।
  • अब तक किसानों और केंद्र सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत बेनतीजा रही है, इस बीच 12 जनवरी 2021 को SC ने नए कृषि कानूनों पर रोक (Stay) लगा दिया।
  • 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) को ट्रैक्टर मार्च, लाल किला हिंसा और किसान नेता राकेश टिकैत का भावुक वीडियो आंदोलन के लिए टर्निंग प्वाइंट रहा।

नई दिल्ली: आज संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान आंदोलन के 10 महीने पूरे होने पर भारत बंद का ऐलान किया है। मोर्चे के नेतृत्व मे किसान, केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के निरस्त करने की मांग को लेकर 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे हुए हैं। किसान हरियाणा की तरफ से सिंघु, टिकरी बार्डर और उत्तर प्रदेश की तरफ से यूपी गेट पर धरना दे रहे हैं। इसके अलावा, वह  पिछले 10 महीनों में महापंचायत और जन सभाओं के जरिए किसान आंदोलन के लिए समर्थन जुटा रहे हैं। इन 10 महीनों में किसान आंदोलन ने कई रंग देखे हैं। सिंघु बार्डर पर पंजाब के किसान नेताओं का नेतृत्व और अपने आपको राजनीतिक दलों से दूरी बनाकर रखने की कोशिश से शुरू हुआ सफर, अब मुजफ्फरनगर के महापंचायत में वोट की चोट तक पहुंच चुका है। इस दौरान किसान आंदोलन का चेहरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैत बन गए हैं। और आइए जानते हैं किसानों आंदोलन का अब तक का सफर

पंजाब से निकलकर दिल्ली पहुंचा किसान आंदोलन

नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन की शुरूआत सितंबर 2020 से पंजाब से हुई । और किसान वहां धरना प्रदर्शन, रेलवे संचालन को रोक कर विरोध प्रदर्शन जता रहे थे। लेकिन यह आंदोलन उस समय चर्चा में आया, जब किसानों ने दिल्ली कूच का ऐलान किया और 26 नवंबर को किसानों को सिंघु बार्डर पर रोक दिया गया। उसके बाद किसान वहीं धरने पर बैठ गए। सिंघु बार्डर के अलावा किसान टिकरी, गाजीपुर बार्डर पर भी डट गए। गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें सिंघु बार्डर जाकर बुरारी में प्रदर्शन करने की शर्त रखी और कहा कि इसके बाद किसानों से बातचीत की जाएगी। हालांकि किसानों ने गृहमंत्री अमित शाह की शर्त को ठुकरा दिया।

किसानों और सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत

किसानों से सरकार की अब तक 11 दौर की बातचीत हो चुकी है। इसकी शुरूआत 14 अक्टूबर को हुई थी और आखिरी बैठक 22 जनवरी को हुई। पहली बैठक केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल के साथ तय थी, लेकिन किसानों ने बैठक का बहिष्कार कर दिया, और कहा  कि वे कृषि मंत्री के साथ बातचीत के लिए आए थे। इसके बाद 13 नवंबर से कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर के नेतृत्व में, सरकार का प्रतिनिधि मंडल, किसानों के साथ बैठकें करता रहा। 

3 दिसंबर को किसानों को सरकार ने आश्वासन दिया कि एमएसपी जारी रहेगी। लेकिन किसानों की मांग थी कि सरकार को एमएसपी की गारंटी देने के लिए कानून लाना चाहिए। इसी तरह सरकार ने एपीएमसी, रजिस्टर्ड व्यापारी, विवाद संबंधी मामलों में पर कानूनों के प्रावधानों पर पुनर्विचार की बात कही। हालांकि किसानों ने साफ तौर पर कहा कि वह केवल कानून रद्द करने पर ही प्रदर्शन वापस लेंगे। 8 दिसंबर की पांचवें दौर की बैठक में पहली बार गृह मंत्री अमित शाह भी किसानों के साथ बातचीत में शामिल हुए। इस बैठक में किसानों ने सरकार द्वारा भेजे गए 22 पन्नों के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

20 जनवरी  को  हुई 10 वें दौर की बैठक में सरकार के तरफ से नए कृषि कानूनों को डेढ़ साल के स्थगति करने का प्रस्ताव दिया गया। और सारे मुद्दों को हल करने के लिए एक समिति बनाने की बात कही। ऐसा लग रहा था कि गतिरोध टूट जाएगा, लेकिन 22 जनवरी को 11 वें दौर की बैठक में किसानों ने, सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। और उसके बाद आधिकारिक रुप से किसानों और सरकार के बीच कोई बैठक नहीं हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक (Stay)

इस बीच 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों की याचिका की सुनवाई करते हुए , केंद्र सरकार के नए कृषि कानून पर रोक (Stay) लगा दी। साथ ही चार सदस्यों की समिति बनायी जो दोनों पक्षों को सुनकर कानून पर अपनी सलाह देगी। इस समिति को अपनी रिपोर्ट 3 महीने में पेश करने को कहा गया। समिति ने रिपोर्ट भी पेश कर दी है। हालांकि अभी तक उसे सार्वजनिक नहीं किया गया है। 12 जनवरी के अपने फैसले मेंसुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसानों को कानून के खिलाफ प्रदर्शन का अधिकार है। दूसरी ओर, सरकार ने बिजली से जुड़े कानून में बदलाव न करने की किसानों की मांग मान ली पर नए कृषि कानूनों पर अड़ी रही।

लाल किला हिंसा और राकेश टिकैत के आंसू

इस बीच किसानों ने 26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) को ट्रैक्टर मार्च निकालने का ऐलान कर दिया। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के बाहर के रास्तें पर ट्रैक्टर मार्च की अनुमति दी। लेकिन आंदोलन 26 जनवरी को हिंसक हो गया, जिसमें  एक किसान की मौत हो गई। वहीं लाल किला परिसर में घुसी युवाओं की भीड़ ने हिंसा की, जिससे प्रदर्शन के समर्थक भी विरोध में आ गए। इस घटना के बाद कई संगठनों ने प्रदर्शन वापस ले लिया। और कई जगहों पर तंबू उखाड़ दिए गए इसके दो दिन बाद राकेश टिकैत का एक भावुक वीडियो वायरल हो गया, जिसमें उन्होंने किसी भी कीमत पर धरना स्थल न छोड़ने की बात कही। किसानों के बीच टिकैत के इस बयान ने बड़ा असर किया और देखते ही देखते सैंकड़ों किसान गाजीपुर बॉर्डर पर वापस लौट आए, जिसने धरने में जान फूंक दी गई।

राकेश टिकैत बने नया चेहरा

जब आंदोलन शुरू हुआ था, तो उसकी कमान पंजाब और हरियाणा के किसान नेताओं के हाथ में थी। भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी, पंजाब की भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रमुख बलवीर सिंह राजेवाल, स्वराज अभियान के योगेन्द्र यादव, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह आंदोलन की अगुआई कर रहे थे। लेकिन टिकैत के भावुक वीडियो के बाद आंदोलन का केंद्र सिंघु बार्डर की जगह गाजीपुर बार्डर बन गया। इसी बात सरदार वी.एम. सिंह ने किसान आंदोलन के भटकने का आरोप लगाकर, अपने को आंदोलन से अलग कर लिया। इसी तरह भारतीय किसान यूनियन (भानु) ने  भी अपने को आंदोलन से अलग कर लिया।

टूल किट विवाद

लाल किला हिंसा के बाद दिल्ली सीमा पर तगड़ी बैरिकेडिंग कर सड़कों पर कीलें गाड़ दी गईं। तस्वीरे सोशल मीडिया पर खूब वॉयरल हुई। इस बीच केंद्र सरकार ने दावा किया कि लाल किला हिंसा के लिए बाकायदा एक टूल किट बनायी गई थी। इस मामले में पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को गिरफ्तार किया गया। थनवर्ग व अन्य अंतरराष्ट्रीय हस्तियों ने ट्वीट किए, जिससे मामला तूल पकड़ता चला गया। इस बीच किसान आंदोलन पर, खालिस्तानी आंतकी संगठनों के समर्थन का भी आरोप लगा। 

किसानों ने शुरू की महापंचायत 

रास्ता निकलता न देख, समर्थन जुटाने के लिए राकेश टिकैत और दूसरे किसान नेताओं ने महापंचायतें करनी शुरू कर दी। इसके तहत देश के कई इलाकों में महापंचायतें की गई। इस बीच 7 सितंबर 2021 को महापंचायत के बाद करनाल में हिंसा का भी मामला सामने आया। 28 अगस्त को करनाल में,  एक पुलिस अफसर के आदेश पर किसानों पर लाठी चार्ज का मामला सामने आया। इस घटना में एक किसान की मौत का दावा किया गया था। किसानों के पांच दिन के धरने के बाद सरकार ने अपने तेवर बदले और अफसर को निलंबित करके न्यायिक जांच बैठाई गई। 

पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में वोट की चोट

किसान नेता जो आंदलोन के पूरी तरह से गैर राजनीतिक होने की बात कर रहे थे। उसमें धीरे-धीरे राजनीति का भी रंग दिखने लगा। मई 2021 में हुए बंगाल चुनाव में किसान नेता बकायदा रैलियां कर, केंद्र सरकार को सबक सिखाने का बात करने लगे। इसके बाद 5 सितंबर 2021 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत में केंद्र सरकार को सबक सिखाने के लिए राकेश टिकैत ने "वोट की चोट" की अपील कर दी है। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  के अमेरिका दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को ट्वीट कर, किसानों का मुद्दा उठाने की मांग कर डाली । साफ है कि किसान आंदोलन पिछले 10 महीने में कई रंग देख चुका है। और सरकार और संयुक्त किसान मोर्चे के रवैये से  इसका तुरंत  समाधान भी निकलता नहीं दिख रहा है।

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