- गणेश चतुर्थी पर पूरा माहौल गणपति की भक्ति में डूब जाता है
- गणेशोत्सव का संबध भारत की आजादी के आंदोलन से भी है
- लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में सफलता हासिल की थी
Ganeshotsav History: प्रथम पूज्य मंगलमूर्ति गणेश भगवान जी का 'गणेश चतुर्थी' का त्योहार हर साल ही बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है, सभी लोग इस पावन पर्व को हर्षोल्लास और आस्था के साथ मनाते हैं। इस दौरान मंदिर से लेकर घरों और मोहल्लों में गजानन विराजमान किए जाते हैं। गणेश चतुर्थी पर पूरा माहौल गणपति की भक्ति में डूब जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि गणेशोत्सव (Ganeshotsav) का संबध भारत की आजादी के आंदोलन ( India's Freedom) से भी है।
गणेशोत्सव (Ganeshotsav) को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी बुधवार 31 अगस्त 2022 को पूरे उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाई गयी लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणपति उत्सव की शुरुआत कैसी हुई। सबसे पहले किसने गणेशोत्सव की शुरुआत की और इसके पीछे क्या कारण था, जानते हैं गणेश उत्सव से के इतिहास के बारे में।
लोकमान्य तिलक ने 'गणेशोत्सव' को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में खासी भूमिका अदा की
देश में सबसे पहली बार साल 1893 में महाराष्ट्र के पुणे में सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव (Ganeshotsav) मनाए जाने की शुरुआत हुई लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में सफलता हासिल की थी और तबसे लगातार बढ़ता गणेशोत्सव महाराष्ट्र और भारत के तमाम प्रांतों, स्थानों से निकलकर दुनियाभर में मनाया जाने लगा है और इसका प्रसार बढ़ता ही जा रहा है।
'गणेशोत्सव' की 'भारत के आजादी' आंदोलन में भी रही है अहम भूमिका
गौर हो कि साल 1893 से पहले गणेशोत्सव को निजी तौर पर या छोटे पैमाने पर मनाया जाता था वहीं स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने देशवासियों की एकता और उनका सामूहिक बल बढ़ाने के लिए गणेशोत्सव पर बड़े आयोजनों को धूमधाम से मनाने की शुरुआत की थी, खास बात ये है कि गणपति पंडाल, पूजा-आरती और विसर्जन के मौके पर श्रद्धालुओं की भीड़ जब इकट्ठा होती थी तो इस मौके का उपयोग अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ लड़ाई को और मजबूत करने के लिए किया जाता था।
...तो यूं राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए सबके प्रिय भगवान गणेश
आजादी की लड़ाई में जुटे लोकमान्य तिलक अपनी बात को लोगों तक पहुंचाना चाहते थे वो बेहद जोशीले और उर्जावान थे, इसके लिए उन्हें एक सार्वजनिक मंच की आवश्यकता थी ताकि वो अपनी बात जन-जन तक पहुंचा सकें, इसके लिए उन्होंने गणेशोत्सव को चुना और आगे बढ़ाया, इस माध्यम से भी लोगों को आपस में जोड़ा, धीरे-धीरे गणेशोत्सव से 'गणपति बप्पा' राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गए और आज भी लोगों के बीच गणेशोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।