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सियासत से पार वो नेता जिन्होंने हिंदी को राजनीति में दिलाई बड़ी पहचान

Updated Sep 13, 2022 | 14:57 IST

14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी को लेकर भले ही सियासी तौर पर अलग अलग बोल सुनाई पड़े। इन सबके बीच ऐसी बहुत सी सियासी शख्सियतें रहीं है जिन्होंने हिंदी के विकास के लिए काम किया।

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14 सिंतबर को मनाया जाता है कि हिंदी दिवस
मुख्य बातें
  • 14 सितंबर को हिंदी दिवस
  • सियासत से इतर राजनेता हिंदी विकास के लिए आगे आए
  • पीएम नरेंद्र मोदी हिंदी में कामकाज को बढ़ावा देने की करते रहते हैं अपील

हिंदी दिवस से ठीक पहले कर्नाटक के पूर्व सीएम एच डी कुमारस्वामी ने यह कह कर राजनीतिक उबाल ला दिया कि कन्नड़ को ही बढ़ावा मिलना चाहिए हालांकि उनके इस बयान पर सोशल मीडिया नजर आया। अगर देश के पीएम नरेंद्र मोदी की बात करें तो उनकी मातृभाषा गुजराती है लेकिन हिंदी के प्रति उनका प्यार देखते ही बनता है। राष्ट्रीय मंच हो या अंतरराष्ट्रीय मंच वो अपनी बात हिंदी में ही कहते हैं। पीएम कहते हैं कि मातृभाषा में हम अपनी बात को बेहतर तरीके से रख सकते हैं। लेकिन हमें बिना किसी पूर्वाग्रह के हिंदी के विकास के लिए आगे आना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब विदेश मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में देश का प्रतिनिधित्व किया तो वो पल गौरव का था। इसके साथ ही जब पूर्व पीएम चंद्रशेखर अपनी बात ना सिर्फ हिंदी बल्कि उसकी उपबोली भोजपुरी में रखते थो लोगों का सीना फूलकर चौड़ा हो जाता था। 

अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी जब जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री बनाए गए को संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित करने का उन्हें मौका मिला। पारंपरिक तौर संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंग्रेजी में भाषण किया करते थे। लेकिन उन्होंने उस परंपरा को तोड़ा। दुनिया के सामने दुनिया को अहसास कराया कि भारत सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। अटल बिहारी वाजपेयी जब देश के प्रधानमंत्री बने तो ज्यादातर मौकों पर वो जवाब हिंदी में ही देते थे। हिंदी के प्रति उनके समर्पण को आप उनकी कालजयी कविताओं में देख सकते हैं। 

चंद्रशेखर सिंह
चंद्रशेखर सिंह ठेठ भोजपुरी में अपनी बात कहा करते थे पीएम बनने के बाद पहली बार उन्होंने दिल्ली के जंतर मंतर पर भाषण दिया था। वो कहा करते थे कि जब तक हम अपनी बात को अपने तरीके से पेश नहीं करेंगे। किसी भी स्तर पर जब हम अपनी भाषा को लेकर हीनभावना से ग्रसित रखेंगे तो कोई भी सम्मान नहीं करेगा। 

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