- कांग्रेस ने माइकल लोबो को नेता प्रतिपक्ष से हटा दिया है।
- माइकल लोबो 2022 में कांग्रेस में शामिल होने से पहले भाजपा में थे।
- 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों को ईश्वर की शपथ दिलाई थी।
Goa Congress Crisis: अभी एक हफ्ते पहले एकनाथ शिंदे गुट को लेकर गोवा चर्चा में था। जहां पर उद्धव ठाकरे के बागी विधायक असम से पहुंचे थे। वह मामला अभी शांत ही हुआ था कि गोवा एक बार फिर बागी विधायकों को लेकर चर्चा में हैं। इस बार फूट गोवा कांग्रेस में नजर आ रही है। अटकले हैं कि राज्य में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर टूट की कगार पर है। और इसकी अगुआई विधानसभा में नेता प्रति पक्ष की भूमिका निभा रहे माइकल लोबो कर रहे हैं। माइकल लोबो के साथ पार्टी के 5-7 विधायक कांग्रेस का साथ छोड़ सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस पार्टी एक बार फिर राज्य में टूट जाएगी। और उसका नेतृत्व सवालों के घेरे में होगा। और इसी चिंता में केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी के वरिष्ठ नेता मुकुल वासनिक को गोवा भेजा है।
6 महीने पहले ईश्वर की दिलाई थी शपथ
असल में राज्य में जिस तरह दल-बदल का इतिहास रहा है, उसमें सबसे ज्यादा कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, 40 विधायकों वाली विधानसभा में 17 सीट जीतकर,सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई थी। और 13 सदस्यों वाली भाजपा ने अन्य दलों के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली। यही नहीं इसके बाद कांग्रेस पार्टी के 17 में से 15 विधायक 2022 का चुनाव आते-आते टूट गए। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2017-2022 के दौरान राज्य में 40 में से 24 विधायकों ने पार्टी बदली। जिसका सबसे बड़ा खामियाजा कांग्रेस को ही उठाना पड़ा।
इसी दल-बदल को देखते हुए पार्टी ने इस बार फरवरी 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले जनवरी में अपने 30 से ज्यादा उम्मीदवारों को ईश्वर की शपथ दिलाई थी। इसके लिए उम्मीदवारों को मंदिर, चर्च और दरगाह ले जाया गया था। जहां उम्मीदवारों को ईश्वर के सामने शपथ दिलाई गई थी कि वे चुनाव जीतने के बाद पाला नहीं बदलेंगे। लेकिन जिस तरह कांग्रेस ने माइकल लोबो को कांग्रेस विधायक दल के नेता पद से हटा दिया है। उससे साफ है कि कांग्रेस में सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा है। कांग्रेस के गोवा प्रभारी दिनेश गुंडू राव ने कहा, 'नए नेता का चुनाव होगा। इस प्रकार के दलबदल के खिलाफ कानून द्वारा जो भी कार्रवाई होगी, पार्टी विरोधी कार्य किया जाएगा। देखते हैं कितने लोग रुकेंगे। हमारे 5 विधायक यहां हैं।
गुंडू राव ने कहा कि गोवा में पार्टी को कमजोर करने के लिए माइकल लोबो और पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत के नेतृत्व में एक साजिश रची गई थी। साथ ही कहा कि हम माइकल लोबो को तत्काल प्रभाव से पार्टी से निकाल रहे हैं और वह अब गोवा विधानसभा में विपक्ष के नेता नहीं हैं।
Goa: कांग्रेस ने गोवा में माइकल लोबो को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाया, विधायकों को तोड़ने का है आरोप
पहले भाजपा में थे माइकल लोबो
इस बार कांग्रेस में बगावत करने वाले माइकल लोबो भाजपा से कांग्रेस में इसी साल विधानसभा चुनाव के पहले शामिल हुए थे। इसके पहले वह भाजपा से दो बार विधायक रह चुके हैं। अगर वह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होते हैं। तो पार्टी के लिए बड़ा झटका होगा और वहां भी महाराष्ट्र की तरह, विपक्ष को एक बड़ा झटका लगेगा। राज्य में भाजपा के 20 , कांग्रेस के 11, आम आदमी पार्टी को 2 और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के 2 सदस्य है। जबकि अन्य 5 सदस्य है। भाजपा के पास महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और अन्य सदस्यों के समर्थन के साथ 25 विधायकों का समर्थन है।
भाजपा का हो जाएगा पूर्ण बहुमत
अगर कांग्रेस पार्टी में बगावत होती है, तो दल-बदल कानून के तहत बागी विधायकों को पार्टी से अलग होने के लिए 7 विधायकों की जरूरत पड़ेगी। राज्य का पुराना इतिहास देखते हुए, पूरी संभावना है कि बागी विधायक भाजपा में शामिल हो जाएंगे। ऐसा होने पर भाजपा के पास पूर्ण बहुमत हो जाएगा । जो अभी अकेले दम पर पार्टी के पास नहीं है। पार्टी को इसके लिए 21 विधायकों की जरूरत हैं, जबकि उसके पास 20 विधायक हैं। साथ ही कांग्रेस के बागी विधायकों की सदस्यता भी रद्द नहीं होगी।
2024 के लिए भाजपा को बूस्ट
मार्च महीने में जब मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी। उस समय भाजपा के कई नेता यह दावा करते थे, कि अगर केंद्र सरकार से उन्हें हरी झंडी मिल जाय तो 25 सदस्यों की संख्या 30 हो सकती है। जिस तरह से 5-7 कांग्रेस विधायकों के पाला बदलने की चर्चा और कांग्रेस में दिल्ली तक हलचल है। उसे देखते हुए यही लगता है कि भाजपा नेताओं का दावा सही था। अगर ऐसा होता है तो 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले कांग्रेस को एक और बड़ा झटका लगेगा। और भाजपा का विपक्ष के दावे पर सवाल उठाने का मौका मिल जाएगा। हालांकि गोवा से 2 लोक सभा सीटें आती हैं, ऐसे में संख्या बल से ज्यादा मानसिक लड़ाई ज्यादा है।