- NDA के इंटरव्यू में मनोज पांडेय ने कहा था कि उन्हें परमवीर चक्र चाहिए
- शहीद होने के बाद मिला था परमवीर चक्र
- गोरखा राइफल की शान कहे जाते हैं कैप्टन मनोज कुमार पांडेय
Captain Manoj Kumar Pandey: कैप्टन मनोज कुमार पांडेय, गोरखा राइफल्स की शान, कारगिल वॉर के हीरो, सेना में परमवीर चक्र के लिए आए थे। एनडीए के इंटरव्यू के दौरान उन्होंने जब अपनी इच्छा जताई तो वो अफसर भी हैरान रह गए थे, जो उनका इंटरव्यू ले रहे थे। उन्होंने छूटते ही पूछा था, क्या आपको पता है परमवीर चक्र कब मिलता है? उन्होंने कहा था हां- ज्यादातर मामलो में शहीद होने के बाद, लेकिन मैं यह जीवित रहते हुए लेना चाहूंगा।
यूपी में हुआ था जन्म
उत्तर प्रदेश के सीतापुर में मनोज पांडेय का जन्म हुआ था। उनके पिता एक छोटे व्यापारी थे। शुरूआती पढ़ाई उत्तर प्रदेश में हुई। इसके बाद पढ़ने के लिए सैनिक स्कूल चले गए। जहां से सेना में जाने की भावना जागी। एनडीए पास करके जब वो सेना में पहुंचे तो उन्होंने भारतीय सेना की 1/11 गोरखा राइफल्स में कमीशन प्राप्त किया।
कारगिल युद्ध के बने नायक
1999 में जब पाकिस्तानी सैनिक कारगिल में घुस आए और पहाड़ों बंकर बनाकर कश्मीर पर कब्जा करने का सपना देखने लगे तब भारतीय सेना के सपूतों ने उनके सपनों को नेस्तानाबूद कर दिया था। इन्हीं सपूतों में से एक थे कैप्टन मनोज कुमार पांडेय। जिनकी वीरता देख पाक सैनिकों के होश फाख्ता हो गए थे।
खालूबार पर विजय
कारगिल के खालूबार चोटी को जिम्मेदारी गोरखा राइफ्लस के जवानों को दी गई थी। मनोज पांडेय इसी टीम का हिस्सा था। इस लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी सैनिक अपने बंकरों में छिप कर गोलियां बरसा रहे थे, लेकिन उनके सामने चट्टान से खड़े थे कैप्टन मनोज पांडेय, कंधे और पैर पाक सैनिकों की गोलियों से घायल हो गए थे, लेकिन वो हार नहीं मारे, उनकी राइफल लगातार गोलियां उगल रही थी। आखिरी बंकर तक पहुंचते-पहुंचते वो पूरी तरह से घायल हो चुके हैं। रास्ते में मिले बंकरों को उड़ा चुके थे और पाक सैनिकों को मार चुके थे, जैसे ही आखिरी बंकर पहुंचे पाक सैनिकों की गोलियों ने उनके कदम को रोक दिया और भारत का ये वीर सपूत शहीद हो गए।
शहीद होने के बाद जवानों ने चुन-चुन कर मारा
शहीद होने से पहले मनोज पांडेय गोरखा राइफ्लस के जवानों के लिए रास्ता बना गए थे, जीत का मार्ग दिखा गए थे। मनोज पांडेय को गिरता देख उनके साथी उन्हें संभालते हुए आगे बढ़े और बाकी बंकरों को उड़ाते हुए पाक सैनिकों को चुन चुन कर मारने लगे। इस चोटी पर गोरखा जवानों ने विजय का पताका फहराया। शहीद मनोज पांडेय को मरणोपरांत सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र मिला।