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Hardik Patel ने थामा BJP का हाथ, 2017 में दिया था झटका, समझिए पूरा गणित

वरुण पाण्डेय | Multimedia Producer
Updated Jun 02, 2022 | 17:24 IST

हार्दिक पटेल के बीजेपी में वापसी के बाद पार्टी को उम्मीद है कि अब उसे पाटीदारों का भरपूर साथ मिलेगा क्योंकि गुजरात की राजनीति में पाटीदारों का दमखम माना जाता है।

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हार्दिक पटेल के बीजेपी में आने से पाटीदार समुदाय का समर्थन बीजेपी को मिलने की उम्मीद है

नई दिल्ली: करीब सात सालों से बीजेपी को पानी पी-पीकर कोसने वाले गुजरात के नेता हार्दिक पटेल आज यानी दो जून को बीजेपी के हो गए। पार्टी में शामिल होने से पहले उन्होंने कहा कि समाज हित ,देश हित में मोदी जी के साथ छोटा सा सिपाही बन कर मैं मोदी जी के साथ काम करना चाहता हूं।

लेकिन उससे पहले उनके राजनीतिक करियर पर एक नजर डालते हैं । हार्दिक पटेल गुजरात के पाटीदार आंदोलन से रातोंरात देश की सुर्खियां बन गए थे। 2014 में सार्वजनिक जीवन का आगाज किया था और सरदार पटेल ग्रुप से जुड़े। उन्होंने सितंबर 2015 में पटेल नवनिर्माण सेना का गठन किया। मकसद कुर्मी, पाटीदार और गुर्जर समुदाय को ओबीसी में शामिल करना और उन्हें सरकारी नौकरियां दिलाना था।

इसी आंदोलन के दौरान हार्दिक पहली बार मीडिया की नजरों में आए। उन्होंने पाटीदार आंदोलन की बागडोर संभाली और उनके समुदाय के लोगों ने भी उन्हें अपनी सिर आंखों पर बैठा लिया था।

रैली में जुटी इस भीड़ को देखकर तो सरकार भी सकते में आ गई थी

25 अगस्त, 2015 को उन्होंने अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान में एक विशाल सभा को संबोधित किया था। उस संबोधन में करीब पांच लाख लोग शामिल हुए थे, जहां 22 वर्षीय पटेल ने सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार की आलोचना की थी और अपने समुदाय की मांगों को रखा। रैली में जुटी इस भीड़ को देखकर तो सरकार भी सकते में आ गई थी। तब हार्दिक पटेल ने ऐलान किया था कि आनंदी पटेल जब तक खुद कार्यक्रम स्थल पर आकर ज्ञापन नहीं लेंगी, वे वहां से नही हिलेंगे। आनंदीबेन उस समय गुजरात की मुख्यमंत्री थी। रैली हिंसक हो गई जिसके कारण पुलिस ने कार्रवाई की और पाटीदार नेताओं को हिरासत में लिया। गुजरात भर में बाद की हिंसा ने कम से कम बारह लोगों की जान ले ली।

पटेल अचानक पाटीदार आंदोलन का चमकता सितारा बनकर उभर चुके थे

तब तक पटेल अचानक पाटीदार आंदोलन का चमकता सितारा बनकर उभर चुके थे। उनकी अगुआई में पाटीदार आंदोलन की आग पूरे गुजरात में भड़क गई थी। इस आंदोलन की गंभीरता को देखते हुए खुद अमित शाह पाटीदारों को मनाने के लिए पहुंचे थे। तब पाटीदार समाज के नौजवानों का विरोध उन्हें झेलना पड़ा। आंदोलन को सही ढंग से न संभालने के चलते 2016 में आनंदीबेन को इस्तीफा देना पड़ा। विजय रुपाणी को सीएम बनाया तो बीजेपी को पटेल वोटों को साधे रखने के लिए नितिन पटेल को डिप्टीसीएम का पद दिया, लेकिन पटेलों की नाराजगी पूरी तरह से दूर नहीं की जा सकी।

हार्दिक पटेल पीएम मोदी की आर्थिक नीतियों के आलोचक रहे

उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी की खूब आलोचना की थी। उन्होंने 2017 के चुनावों से पहले कांग्रेस को अपना समर्थन दिया। 2019 में कांग्रेस में शामिल हुए थे। गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी बने। लेकिन उन्हें शिकायत रही की कांग्रेस लीडरशीप उन्हें समझ नहीं पाई। तीन साल में ही उनका पार्टी से मोहभंग हो गया और उन्होंने पार्टी को गुडबाय कह दिया।

अब जानिए बीजेपी के लिए कितने काम के होंगे पटेल?

गुजरात की राजनीति में पाटिदारों का दमखम माना जाता है। पाटीदार समुदाय धनबल के साथ-साथ सियासत में भी काफी दखल रखते हैं। गुजरात में प्रभावशाली और शक्तिशाली पाटीदार समुदाय आबादी का लगभग 12-14 फीसदी हैं।  उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र में काफी ताकत रखते हैं। पाटीदार राजनीतिक तौर पर सूबे की कुल 182 सीटों में से करीब 70 विधानसभा सीटों पर काफी मजबूत असर रखते हैं। वे तीन दशकों से अधिक समय से बीजेपी के प्रबल समर्थक रहे हैं।

पाटीदारों को लुभाने में बीजेपी

इसी साल गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी चुनाव से पहले उन्हें फिर से अपने पाले में लाने के लिए काम कर रही है. 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव के समीकरण को साधे रखने लिए बीजेपी ने पटेलों को सिर आंखों पर बैठाना शुरू कर दिया है, क्योंकि गुजरात में बीजेपी की राजनीतिक जड़ें मजबूत करने में पटेल समुदाय की अहम भूमिका रही है. पीएम मोदी पिछले तीन महीनों में पाटीदार समुदाय के कम से कम आधा दर्जन कार्यक्रमों को संबोधित कर चुके हैं. कह जा रहा है कि बीजेपी को राज्य में नरेंद्र मोदी जैसा प्रभावी चेहरा सूबे में दूसरा नहीं मिल सका और 2014 में उनके गुजरात से हटने के बाद बीजेपी की सियासी पकड़ कमजोर हुई.

2017 में बीजेपी को दिया था झटका

पाटीदार आंदोलन का असर ऐसा हुआ कि 2017 के विधान सभा चुनावों में भाजपा की सरकार तो बनी, लेकिन 1990 के बाद ऐसा पहली बार हुआ कि उसे राज्य की 182 सीटों में से 99 सीटें मिली। इसके पहले 1995 से वह लगातार 100 से ज्यादा सीटें जीतती आ रही थी। लोकनीति-सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज पोस्ट-पोल सर्वे 2017 के अनुसार  कडवा पटेलों के 68 फीसदी और लेउवा पटेलों के 51 फीसदी वोट बीजेपी को पड़े थे। 2012 में इसका प्रतिशत 78 फीसदी और 63 फीसदी था। यानी बीजेपी का वोट शेयर घटा था। 2017 के चुनाव में पाटीदारों के बीच कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में पाटीदारों के 60 फीसदी वोट बीजेपी को मिले जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र 49.1 फीसदी मिला।  

पटेल के शामिल होने से बीजेपी के मजबूत होने की उम्मीद

हार्दिक पटेल के बीजेपी में आने से पाटीदार समुदाय का समर्थन बीजेपी को मिलने की उम्मीद है। इस लिहाज से पटेल का बीजेपी में शामिल होना पाटीदार राजनीति के लिए अहम माना जा रहा है। पटेल ने ऐसे समय में बीजेपी ज्वाइन किया है जब इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं।  इस बार हार्दिक पटेल के भी चुनाव में भाग लेने का रास्ता साफ है। पाटीदार विरोध से संबंधित 2015 के दंगों और आगजनी का एक मामले वापस ले लिए गया है। इसी कारण उन्हें 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। हालांकि इस मामले में उन्हें बाद में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता शक्तिसिंह गोहिल ने आरोप लगाया कि पटेल अपने खिलाफ मामले वापस लेने के लिए पिछले छह महीने से बीजेपी के संपर्क में थे। उन्होंने कहा कि यह अवसरवाद की राजनीति है और कुछ नहीं, गुजरात इसे समझता है।

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