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Hijab row : याचिकाकर्ताओं ने मांगी शुक्रवार को स्‍कूल में हिजाब पहनने की अनुमति, कोर्ट में अब कल होगी सुनवाई

Updated Feb 17, 2022 | 17:33 IST

Karnataka Hijab row : हिजाब विवाद पर आज फिर कर्नाटक हाई कोर्ट की बड़ी बेंच में सुनवाई हुई। अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इसे शुक्रवार के लिए स्‍थग‍ित कर दिया गया।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
कर्नाटक हाई कोर्ट में अब कल होगी हिजाब विवाद पर सुनवाई
मुख्य बातें
  • हिजाब विवाद मामले की सुनवाई गुरुवार को भी कर्नाटक हाई कोर्ट में हुई
  • कर्नाटक का यह हिजाब विवाद वहां से निकलकर अन्य राज्यों तक फैल गया है
  • कोर्ट ने अंतरिम आदेश में धार्मिक पहचान वाले कपड़े पहनने पर रोक लगाई है

Karnataka Hijab row : कर्नाटक हिजाब विवाद पर गुरुवार को कर्नाटक हाई कोर्ट की बड़ी बेंच के समक्ष सुनवाई हुई। कोर्ट गत 14 फरवरी से इस मामले की सुनवाई कर रहा है। पिछले दिनों कोर्ट में हिजाब के समर्थन एवं विरोध में दलीलें दी गईं। कोर्ट किसी फैसले पर पहुंचने से पहले सभी पक्षों की दलीलों को विस्तार से सुनना चाहता है। इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने इसे शुक्रवार तक के लिए स्‍थगित कर दिया।

सुनवाई के दौरान मुस्‍लिम छात्राओं की ओर से मांग की गई कि उन्‍हें शुक्रवार को और रमजान के महीने में हिजाब पहनकर स्‍कूल आने की अनुमति दी जाए। याचिकाकर्ताओं की ओर से यहां तक कहा गया कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाना कुरान पर प्रतिबंध लगाने जैसा है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्‍थी, जस्टिस कृष्‍णा एस दीक्षित, जस्टिस जैबुन्निसा मोहियुद्दीन काजी की पीठ ने की। कोर्ट अब इस मसले पर शुक्रवार दोपहर 2:30 बजे फिर सुनवाई करेगी।

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'आदेश का अनुपालन करेगी सरकार'

कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब पहनने पर राज्य सरकार ने पाबंदी लगाई है। मुस्लिम छात्राओं ने राज्य सरकार के इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है। इससे पहले हाई कोर्ट अपने आदेश में कह चुका है कि इस मामले में फैसला आने तक स्कूलों में धार्मिक कपड़े एवं चिन्ह पहनकर आने पर रोक रहेगी। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का कहना है कि उनकी सरकार हिजाब विवाद पर उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश का अनुपालन करेगी।

बुधवार को सुनवाई के दौरान मुस्लिम छात्राओं की ओर से तर्क दिया गया कि भारत का धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत तुर्की के विपरीत 'सकारात्मक' है और स्कार्फ पहनना आस्था का प्रतीक है, न कि धार्मिक कट्टरता का प्रदर्शन। उन्होंने तीन-न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष तर्क दिया कि भारत में धर्मनिरपेक्षता 'तुर्की की धर्मनिरपेक्षता' की तरह नहीं है, बल्कि यहां यह धर्मनिरपेक्षता सकारात्मक है, जिसमें सभी धर्मों को सत्य के रूप में मान्यता दी जाती है।

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