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मुस्लिम लड़कियों में ड्रॉप आउट ज्यादा, साक्षरता दर भी कम, जानें क्या कहते हैं आंकड़े

Updated Feb 16, 2022 | 21:27 IST

Hijab Controversy: कर्नाटक के उडुपी से उपजा हिजाब विवाद अब पूरे देश में फैल चुका है। और अब सबकी न्यायालय पर नजर है। इस बीच मुस्लिम लड़कियों की शैक्षिक स्थिति पर देश में बहस शुरू हो गई है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
हिजाब विवाद और मुस्लिम लड़कियों का शैक्षिक स्तर
मुख्य बातें
  • नेशनल सैंपल सर्वे 2007 से 2018 के दौरान मुस्लिम लड़कियों में ग्रॉस अटेंडेंस रोश्यो 6.7 फीसदी से बढ़कर 13.5 फीसदी हो गया है।
  • हालांकि अभी मुस्लिम लड़कियों का ग्रॉस अटेंडेंस रोश्यो दूसरे धर्मों की तुलना में काफी कम है।
  • नेशलन सैंपल सर्वे 2017-18 के अनुसार 19 फीसदी मुस्लिम लड़कियां, शादी होने की वजह से उच्च शिक्षा पूरा नहीं कर पाती हैं।

नई दिल्ली: कर्नाटक से उपजा हिजाब विवाद न्यायालय तक पहुंच चुका है। हर रोज इसके पक्ष और विपक्ष में बयान आ रहे हैं। हिजाब विवाद स्कूल यूनिफॉर्म को लेकर शुरू हुआ है। ऐसे में कई विशेषज्ञ इस बात पर भी सवाल उठा रहे हैं कि हिजाब विवाद से मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा के मौलिक अधिकार पर असर हो सकता है। असल में दूसरे धर्मों की लड़कियों की तुलना में मुस्लिम लड़कियों में साक्षरता दर, उच्च शिक्षा में भागीदारी कम है, वहीं ड्रॉप आउट ज्यादा है। 

क्या हैं चिता

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की फाउंडर जकिया सोमन ने  टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहती हैं कि हिजाबी लड़कियां अभी जो कर रही है वह पितृसत्तात्मक सोच के दबाव में ऐसा कर रही हैं। उनके साथ भेदभाव बंद होना चाहिए और उनका सशक्तीकरण होना चाहिए। जिससे कि वह मजहब से जुड़ी पितृसत्तात्मक सोच के सामने खड़ी हो सके,और पढ़ लिख के आगे बढ़े। जहां तक इस्लाम में हिजाब की बात है तो मूल रूप में इसकी कोई जगह नहीं है।

मुस्लिम महिलाओं के शिक्षा के क्या कहते हैं आंकड़े

भारत में करीब 14 फीसदी मुस्लिम आबादी है। लेकिन अगर साक्षरता की बात की जाय तो वह दूसरे धर्मों की तुलना में  पुरूष और महिला दोनों स्तर पर कम है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर 62.41 फीसदी है। जबकि हिंदुओं में यह 70.78 फीसदी, जैन में 87.86 फीसदी, ईसाई में 76.78 फीसदी, सिख में 71.32 फीसदी, बौद्ध में 77.87 फीसदी साक्षरता है।

उच्च शिक्षा में क्या है स्थिति

मुस्लिम लड़कियों में ग्रॉस अटेंडेंस रोश्यो (Gross Attendance Ratio) पर काम करने वाले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ दलित स्टडीज के प्रोफेसर खालिद खान टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं कि ग्रॉस अटेंडेंस रोश्यो में 18-23 साल के लड़कियों को शामिल किया गया है। जो उच्च शिक्षा में जाने वाली इन लड़कियों का प्रतिशत है।  इस उम्र में ही उच्च शिक्षा के लिए छात्र और छात्राएं एडमिशन लेते हैं। अब अगर मुस्लिम लड़कियों की स्थिति देखी जाय तो उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी बढ़ी है। नेशनल सैंपल सर्वे 2007 से 2018 के दौरान यह 6.7 फीसदी से बढ़कर 13.5 फीसदी हो गया है।

हालांकि दूसरे धर्मों की तुलना में मुस्लिम लड़कियों में यह अनुपात कम दिखता है। मसलन हिंदू लड़कियों में 13.4 फीसदी से बढ़कर 24.3 फीसदी, ईसाई में 27.9 फीसदी से बढ़कर 35.4 फीसदी, सिख में 15.4 फीसदी से बढ़कर 31.9 फीसदी हो गया है।

इन आंकड़ों पर खालिद कहते हैं देखिए यह जरूर है कि दूसरे धर्मों की तुलना में मुस्लिम लड़कियों का औसत कम है। लेकिन अच्छी बात यह है कि पिछले 10 साल में यह काफी बढ़ा है। जिससे साफ है कि लड़कियां उच्च शिक्षा के लिए आगे आ रही है। ऐसे में हमारा मानना है कि जैसे-जैसे शिक्षा के जरिए लड़कियां सशक्त होंगी, ऐसे में वह अपने फैसले लेने में ज्यादा सक्षम हो सकेगी। 

शादी की वजह से पढ़ाई छोड़ने की स्थिति

खालिद का कहना है कि अगर लड़कियां इस विवाद की वजह से स्कूल छोड़ती हैं तो वह ज्यादा नुकसानदेह हो सकता है। नेशलन सैंपल सर्वे 2017-18 के अनुसार 19 फीसदी मुस्लिम लड़कियां केवल शादी होने की वजह से उच्च शिक्षा पूरा नहीं कर पाती हैं। जबकि हिंदू  में यह 16 फीसदी और दूसरे अल्पसंख्यक धर्म में यह आंकड़ा और भी कम है।

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