लाइव टीवी

बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर का 'जन सुराज' कितना होगा कारगर, इन खास चेहरों से मिलेगी चुनौती

Updated May 04, 2022 | 09:15 IST

प्रशांत किशोर अब नए अवतार में नजर आएंगे। पहले वो राजनीतिक दलों के लिए रणनीति बनाते थे। लेकिन अब वो खुद जन सुराज के जरिए बदलाव लाने का फैसला किया और इसके लिए बिहार की धरती को चुना है।

Loading ...
बिहार की राजनीति में पीके का जन सुराज कितना होगा कारगर, इन खास चेहरों से मिलेगी चुनौती

प्रशांत किशोर को भारतीय राजनीति का चाणक्य कहा जाता है तो उसके पीछे ठोस वजह है। 2014 में पीएम मोदी की कामयाबी के साथ उनका रणनीति की कामयाबी का जो सिलसिला शुरू हुआ उसके लोग मुरीद हो गए। लेकिन उसके साथ ही उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धता को लेकर सवाल उठते रहे कि क्या वो सिर्फ पेशेवर सलाह देने वाले हैं या किसी खास दल से नाता है। हाल के दिनों में जब करीब 600 स्लाइड्स के जरिए कांग्रेस के दिग्गजों के सामने पार्टी के बारे में खाका पेश किया तो चर्चा आम हो गई कि वो कांग्रेस से जुड़ सकते हैं लेकिन बात नहीं बनी। प्रशांत किशोर ने खुद साफ किया कि वो कांग्रेस का हिस्सा नहीं बनने जा रहे बल्कि जन सुराज के जरिए लोगों की आकांक्षाओं और उम्मीदों को एक दिशा देंगे। 

जन सुराज पर प्रशांत किशोर
प्रशांत किशोर(बिहार के रहने वाले) कहते हैं कि अब देश की जनता मुखर हो रही है। अब लोग अपने अधिकारों के बारे में समझते हैं। लेकिन संगठित तौर पर उसे आवाज नहीं मिल रही। अगर आप मौजूदा दलों को देखें तो जनता उनसे निराश है। विकल्प के अभाव में गिने चुने दलों के हाथ में सत्ता चली जाती है। लेकिन स्थापित राजनीतिक दलों के खिलाफ मोर्चा खोलने से पहले यह जरूरी है कि कोई भी विकल्प जमीनी स्तर पर कितना मजबूत होता है और हम अपने आपको जमीनी स्तर पर मजबूत करने की दिशा में काम करेंगे। लेकिन सवाल यह है कि जन सुराज के प्रयोग को कामयाब बनाने के लिए पीके ने बिहार की जिस धरती को चुना है वहां क्या वो कामयाब हो सकेंगे। बिहार की सियासत में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दो ऐसे चेहरे हैं जिनसे पीके को जुझना होगा।

सामने होंगे नीतीश कुमार
पहले बात करते हैं बिहार के सीएम नीतीश कुमार की। पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी जेडीयू भले ही तीसरे नंबर पर रही हो लेकिन वो एक बार फिर सरकार के मुखिया बने। उनकी सुशासन की छवि, महिलाओं में लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। जमीनी स्तर पर उनकी पार्टी का सांगठनिक ढांटा भी मजबूत है। अभी तक पीके उनके खिलाफ खुलकर नहीं बोलते रहे हैं। लेकिन सक्रिय राजनीति में आने के बाद नीतीश कुमार पर राजनीतिक बयानबाजी करनी होगी तो जाहिर है कि उन्हें पलटवार का सामना करना होगा। बिहार की राजनीति में जगह बनाने का मतलब है कि पीके को नीतीश कुमार के वोटबैंक में सेंध लगाना होगा। 

कौन हैं प्रशांत किशोर? जानिए भारतीय राजनीति के 'चाणक्य' के जीवन के बारे में 

लालू प्रसाद यादव से चुनौती
इसके अलावा अब उस शख्स की बात करते हैं जो सीधे तौर पर चुनावी तस्वीर में नहीं हैं लेकिन उनका बोलबाला है। उस शख्स का नाम है लालू प्रसाद। अगर विधानसभा चुनाव नतीजों को देखें तो आरजेडी नंबर वन पार्टी बनी। चुनाव से ठीक पहले लालू यादव का जमानत हो चुकी थी और उसका असर नतीजों पर दिखाई दिया। आरजेडी के बारे में कहा जाता है कि एक खास तबका उसके लिए वोट करता है। अब जब पीके जन सुराज के जरिए लोगों के बीच पहुंचेंगे तो उन्हें इस बात का भरोसा देना होगा कि वो कैसे जातिवादी राजनीति से इतर कुछ खास प्रयोग करने जा रहे हैं और उस समर में लोगों का साथ जरूरी है। अब इस तरह की तकरीर से वो लालू यादव के वोट बैंक पर निशाना साधेंगे। ऐसी सूरत में आरजेडी की तरफ से किस तरह की प्रतिक्रिया होगी यह देखने वाली बात होगी। 

Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।