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जम्मू-कश्मीर पुलिस से कैसे अलग होते हैं SPO, जानिए इनके बारे में सबकुछ 

Updated Jul 02, 2021 | 09:05 IST

जम्मू-कश्मीर में स्पेशल पुलिस ऑफिशियल (SPO) नियमित पुलिस कर्मचारियों से अलग होते हैं। फारूक अब्दुल्ला सरकार ने साल 1996 में इनकी भर्तियां शुरू की। इनका वेतन पुलिस से कम होता है।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
जम्मू-कश्मीर पुलिस से कैसे अलग होते हैं SPO।
मुख्य बातें
  • जम्मू-कश्मीर में साल 1996 से एसपीओ की भर्ती होनी शुरू हुई
  • राज्य के नियमित पुलिसकर्मियों से अलग होते हैं स्पेशल पुलिस ऑफिशियल
  • कानून व्यवस्था बनाए रखने, खुफिया सूचना जुटाने में इनकी सेवा ली जाती है

नई दिल्ली : गत रविवार की रात आतंकवादियों ने स्पेशल पुलिस ऑफिसर (एसपीओ) फयाज अहमद, उनकी पत्नी और बेटी की गोली मारकर हत्या कर दी। आतंकियों ने फयाज के घर पर उस वक्त हमला किया जब परिवार सोने की तैयारी कर रहा था। आतंकियों के इस क्रर हमले ने फयाज के परिवार को करीब-करीब खत्म कर दिया। पुलवामा जिले के त्राल के हरिपरिगाम में आतंकियों के हमले में फयाज और उनकी पत्नी की मौके पर मोत हो गई जबकि उनकी 23 साल की बेटी राफिया ने अगले दिन अस्पताल में दम तोड़ दिया। 

कौन हैं SPO 
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए साल 1996 में स्पेशल पुलिस ऑफिशियल (एसपीओ) की स्थापना हुई। राज्य की फारूक अब्दुल्ला सरकार ने पुलिस को मदद पहुंचाने के उद्देश्य एसपीओ का गठन किया। जम्मू-कश्मीर में 90,000 नियमित पुलिसकर्मियों के साथ-साथ 30,000 एसपीओ भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ये एसपीओ एक तरह से पुलिस बल की रीढ़ समझे जाते हैं। इनकी नियुक्ति जम्मू एवं कश्मीर पुलिस एक्ट के तहत होती है। राज्य में कहीं पर भी अवैध गतिविधियां, दंगा होने पर या सरकार को लगे कि कानून-व्यवस्था को खतरा उत्पन्न हो सकता है, वहां पर एसपीओ की तैनाती की जा सकती है। 

कैसे होती है एसपीओ की भर्ती
शुरुआत में एसपीओ की भर्ती आसान थी। जरूरतमंदों को इस बल में शामिल कर लिया जाता था लेकिन बाद में इनकी नियुक्ति का अधिकार डिप्टी कमिश्नर के पास चला गया। साल 2016 में हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद गृह मंत्रालय ने 10,000 एसपीओ की भर्ती करने की घोषणा की। इसके डिप्टी कमिश्नर के अधीन जिला स्तर पर स्क्रीनिंग कमेटी बनी और इसके जरिए एसपीओ की नियुक्तियां होनी शुरू हुई। इस बल में 10 वीं पास पुरुष एवं महिलाओं को शामिल किया जाता है। इसके अलावा उन्हें शारीरिक मानदंडों को भी पूरा करना होता है। 

मासिक वेतन 3,000 रुपए 
एसपीओ को वेतन के रूप में हर महीने 3,000 रुपए दिए जाते हैं। साथ ही उनसे यह वादा किया जाता है कि तीन साल की सेवा के दौरान यदि उनका प्रदर्शन 'उत्तम' रहता है तो उन्हें नियमित पुलिस बल में शामिल कर लिया जाएगा। सितंबर 2018 के बाद पांच साल के अनुभव वाले एसपीओ को 6,000 रुपए और 15 साल का अनुभव रखने वालों को 9,000 रुपए और इससे ज्यादा का अनुभव वाले एसपीओ के 12,000 रुपए प्रति माह मिलते हैं। वहीं, जम्मू-कश्मीर पुलिस का नियमित पुलिसकर्मी शुरुआत से ही 25,000 रुपए से ज्यादा वेतन पाता है।  

कौन सा काम करते हैं एसपीओ
जम्मू-कश्मीर में एसपीओ कानून-व्यवस्था संभालने, खुफिया जानकारी जुटाने और आतंकवादियों के खिलाफ मुहिम में सुरक्षाबलों का सहयोग करते हैं। महिला एसपीओ को आतंकवाद विरोधी अभियान से दूर रखा जाता है। इनका प्रशिक्षण करीब एक सप्ताह चलता है। इस एक सप्ताह के प्रशिक्षण में वह मुश्किल से वर्दी पहनना और सैल्यूट करना सीख पाते हैं। आतंकवाद विरोधी अभियानों में शामिल होने वाले एसपीओ को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है।  

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