- भारतीय वायुसेना की रीढ़ कहे जाते हैं सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान
- चीन भी रूस से खरीद चुका है सुखोई-30 एमकेके विमान
- अगर हुआ सामना तो यूं भारी पड़ सकता है भारत का फाइटर जेट
मुंबई: भारत और चीन दोनों के बीच लद्दाख में वास्तविक निंयत्रण रेखा पर तनाव जारी है, जहां एक तरफ दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर कई चरण की बातचीत हुई है, वहीं तनाव खत्म करने की तय प्रक्रिया पूरी न होने की संभावना के बीच लगातार किसी भी तरह के टकराव को लेकर भी तैयारियां जारी हैं और सीमा पर हथियारों की तैनाती हो रही है। इस दौरान मीडिया और रक्षा विश्लेषकों के बीच दोनों देशों की ताकत और रणनीतिक बढ़त का तुलनात्मक अध्ययन किया जा रहा है।
चीन और भारत अलग अलग तरह के उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन कुछ हथियार ऐसे भी हैं जो देशों के पास मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है रूस से खरीदा गया सुखोई-30 लड़ाकू विमान, जिसका इस्तेमाल चीन और भारत दोनों देशों की वायुसेना करती है। इस बीच आइए एक नजर डालते हैं दोनों देशों के विमानों पर और जानते हैं कि किसी भी टकराव की परिस्थिति में कौन किस पर और क्यों भारी पड़ेगा।
Su-30 MKI: सुखोई-30 एमकेआई (मॉर्डनाइज कमर्शियल इंडियन) को भारतीय वायुसेना की रीढ़ कहा जाता है और यह 260 से ज्यादा इन विमानों का इस्तेमाल करती है। भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इस विमान को तैयार किया गया था जिसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड लाइसेंस के तहत भारत में ही बनाती है।
Su-30 MKK: यह भी सुखोई-30 का एक निर्यात वर्जन है और रिपोर्ट्स के अनुसार चीन ने रूस से सीधे इस तरह के करीब 70 से ज्यादा विमान खरीदे थे। हालांकि चीन ने भारत से पहले इन विमानों को खरीदने की प्रक्रिया शुरु की थी।
अगर दोनों विमानों की तुलना करें तो भारत का सुखोई-30 चीन के विमान पर कई मायनों में भारी पड़ सकता है। आइए एक नजर डालते हैं इसकी कुछ वजहों पर।
- भारत ने अपनी जरूरतों के अनुसार रूस से यह विमान दोबार डिजायन कराया था और इसमें रूस के अलावा इजरायल, फ्रांस के साथ साथ स्वदेशी तौर पर विकसित आधुनिक उपकरण लगाए थे। जबकि चीन सिर्फ रूसी उपकरणों के साथ इस विमान का इस्तेमाल करता है जो कई मामलों में पिछड़े हुए पाए जाते हैं।
- भारतीय वायुसेना ने एचएएल और डीआरडीओ की मदद से ब्रम्होस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइज को अपने सुखोई विमान से दागने में सफलता हासिल कर ली है। दुनिया में अपने तरह की एकलौती और अनोखी क्षमता है जो चीन समेत किसी अन्य देश के पास नहीं है।
- भारत का सुखोई 30 चीन की अपेक्षा हवा में कलाबाजी करने (मैनुवरेबिलिटी) और आसमान में तेजी से अपनी स्थिति को बदलने में ज्यादा सक्षम है क्योंकि इसमें कनाड और थ्रस्ट वेकटरिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है, जो इसे सुखोई-30 सीरीज का सबसे घातक फाइटर जेट बनाते हैं।
- भारत के मौजूदा सुखोई-30 के बेड़े को सुपर सुखोई स्टैंडर्ड पर अपग्रेड करने की योजना भी बनाई जा रही है, जिसके बाद इसमें स्टेल्थ विमानों को डिटेक्ट करने वाले रडार सहित कई तरह की नई क्षमताएं शामिल हो जाएंगी। भारत ने स्वदेशी तौर पर विकसित की गई अस्त्र मिसाइल का भी सुखोई विमान से सफल परीक्षण किया है और तेजी से विमानों को इससे लैस किया जा रहा है।
- चीन ने भी अपने सुखोई-30 विमानों को आधुनिक और ज्यादा क्षमतावान बनाने के प्रयास किए हैं लेकिन भारत की तुलना में यह बदलाव सीमित हैं।
- भारत का सुखोई 30 38 हजार किलो से ज्यादा जबकि चीन का विमान 34 हजार किलो से ज्यादा वजन के साथ उड़ने में सक्षम है। भारतीय विमान का रेट ऑफ क्लाइम बेहतर है यानी यह ज्यादा तेजी से आसमान में ऊंचाई पर जा सकता है।