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भारतीय सेना के वो पांच रणबांकुरे, जिन्होंने कारगिल में शौर्य, पराक्रम और जीत की गाथा लिखी 

श्वेता सिंह | सीनियर असिस्टेंट प्रोड्यूसर
Updated Jul 25, 2020 | 15:28 IST

Kargil Vijay Diwas:  26 जुलाई साल 1999 में भारतीय वीर सपूतों ने जब पाकिस्तानी सेना के हौसलों को कुचलकर उनके भविष्य तक को पराजित करते हुए देश की आन-बान और शान बढ़ाया था, तो देश के लिए वो गौरव का क्षण था।  

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कारगिल विजय के वो पांच रणबांकुरे, जिन्होंने लिखी अमर गाथा
मुख्य बातें
  • कैप्टन विक्रम बत्रा का ‘ये दिल मांगे मोर’ सैनिकों में जोश भर दिया
  • लेफ्टिनेंट बलवान सिंह के अदम्य साहस का दुश्मन ने लोहा माना  
  • हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है

ऐ मेरी जमीं अफसोस नहीं जो तेरे लिए सौ दर्द सहे, 

महफूज रहे तेरी आन सदा, चाहे जान मेरी ये रहे न रहे।। 

बॉलीवुड का ये गीत सच में भारत माता के वीर सपूतों की गाथा बयां करता है। भारतीय सेना में जब एक वीर सपूत अपनी जन्म देने वाली माता से माथे पर तिलक लगवाकर भारत माँ की सुरक्षा के लिए निकलता है, तो वो क्षण स्वयं भी गर्व से भर जाता है। 26 जुलाई 1999 में जब भारतीय वीर जवानों ने पाकिस्तानी सेना को मुंह के बल धकेलकर भारत के तिरंगे को आसमान में लहराकर अपनी विजय का परिचय दिया था, उसी दिन को हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। उस युद्ध में एक-एक सैनिक भारत माँ की सेवा में न्योछावर हो गया, किन्तु आज हम आपको भारतीय सेना के उन पांच रणबांकुरों के बारे में बताएंगे जिन्होंने कारगिल पर शौर्य, पराक्रम और जीत की गाथा लिखी।  

कैप्टन विक्रम बत्रा  

‘ये दिल मांगे मोर’ कारगिल की लड़ाई के समय एक पोस्ट पर फतह करने के बाद कैप्टन विक्रम बत्रा जब अपने कमांडिंग ऑफिसर को वायरलेस के माध्यम से रिपोर्ट दे रहे थे, तो उनके शब्द थे, “चाणक्य.....शेर शाह इज रिपोर्टिंग...हमने पोस्ट पर कब्जा कर लिया है। ये दिल मांगे मोरे।” ‘पॉइंट 5140’ पर विजय करने के लगभग एक हफ्ते बाद कैप्टन बत्रा ने अपने साथियों को लेकर एक बेहद खतरनाक मिशन ‘पीक 4875’ पर दोबारा कब्जा जमाया। वो अपने मिशन में कामयाब होने ही वाले थे कि तभी पाकिस्तान की तरफ से हुई गोलीबारी में उनका एक जूनियर घायल हो गया। उसी को बचाने के लिए कैप्टन बत्रा अपने बंकर से निकले और उन्हें भी बुलेट लग गई. कैप्टन बत्रा शहीद हो गए। कैप्टन विक्रम बत्रा भले ही शहीद हो गए लेकिन उस पीक का उनकी टीम विजय प्राप्त करने में सफल रही। ये कारगिल युद्ध के लिए निर्णायक मोड़ सिद्ध हुआ। महज 24 साल के भारत माँ के इस वीर सपूत की गाथा आज भी लोग बड़े गर्व से गाते और सुनते हैं। मरणोपरांत इस वीर सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा को भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।  

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव  

16 साल की उम्र में भारतीय सेना में शामिल होने वाले योगेन्द्र सिंह यादव को कारगिल युद्ध में उनके अदम्य साहस के लिए सबसे कम उम्र में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान, परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। कारगिल युद्ध में टाइगर हिल के बेहद अहम दुश्मन के तीन बंकर को तबाह करने की जिम्मेदारी योगेन्द्र को सौंपी गई। एक-एक करके उन्होंने बंकर को तबाह किया। योगेंद्र सिंह यादव को सीने पर 5 गोलियां लगीं, लेकिन वो हार नहीं मानें और अपने लक्ष्य को प्राप्त किये।  

लेफ्टिनेंट बलवान सिंह  

टाइगर हिल को पाकिस्तानी सेना के कब्जे से छुड़ाने की जिम्मेदारी जिन लोगों को सौंपी गई थी, उसमें लेफ्टिनेंट बलवान सिंह भी थे। इन्हें घातक प्लाटून की कमान सौंपी गई। 25 साल की उम्र में बलवान सिंह ने 12 घंटे की पहाड़ी रास्ते की चढ़ाई करके जब दुश्मन को घेरा, तो दुश्मन के होश उड़ गए। उस समय उस रास्ते से दुनिया की कोई भी सेना ऊपर नहीं पहुंच सकती थी। पाकिस्तान को भारत से ऐसी उम्मीद नहीं थी, लेकिन असंभव को संभव कर दिखाया लेफ्टिनेंट बलवान सिंह ने। बलवान सिंह ने कई पाक सैनिकों को मारा। वो घायल भी हुए। बलवान सिंह के अदम्य साहस को देखकर पाक सेना वहां से भाग खड़ी हुई। लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।  

कैप्टन सौरभ कालिया  

23 साल पूरा होने से 20 दिन पहले कैप्टन सौरभ कालिया ने अपना बाकी जीवन अपनी माँ भारत माता के चरणों में समर्पित कर दिया। 4 जाट बटालियन के कैप्टन सौरभ 15 मई को नियमित गश्त के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा जीवित पकड़ लिया गया। पाकिस्तानी सेना ने इस वीर सपूत और उनके साथियों को लगभग 22 दिन तक बंदी बनाकर रखा और कई प्रकार की यातनाएं दीं। हौसला तो देखिए भारत के इस वीर सपूत का कि हजारों दर्द सहने के बाद भी देश के खिलाफ एक लफ्ज नहीं कहा। जब पाकिस्तानियों को उनसे कोई जानकारी नहीं मिली, तो इन सपूतों को बर्बरता पूर्वक मार दिया। अगर उस दिन अपनी जान बचाने के लिए सौरभ अपने अन्य सैनिक भाइयों और भारत की युद्ध निति के बारे में बता देते, तो शायद आज हम और आप कारगिल विजय दिवस नहीं मना रहे होते।  

स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा 

कारगिल युद्ध में हमारी वायु सेना ने अहम् किरदार निभाया। संघर्ष के अंतिम क्षणों को जीत में बदल दिया। कारगिल की लड़ाई जब शुरू हुई थी तभी आहूजा ने स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी। लड़ाई में जाने के लिए उन्होंने तुरंत कमर कस ली. वो मिग-21 उड़ा रहे थे। आसमान से वो पाकिस्तानी सेनाओं को मौत के घाट उतार रहे थे। उनकी इस वीरता को देखकर पाकिस्तानी सेनाओं ने भी जला बिछाया और उनके मिग पर मिसाइल दाग दी। उनका विमान पाकिस्तानी क्षेत्र में गिरा। उनका पार्थिव शरीर 29 मई को देश को सौंपा गया। मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया। 

देश का एक-एक कोना तबत क सुरक्षित है, जबतक माओं के लाल भारत माता की आन-बान और शान की रक्षा करते रहेंगे. सलाम है भारत के इन वीर सपूतों को!! 

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