नई दिल्ली : विज्ञान एवं तकनीक क्षेत्र को सामान्य रूप से पुरुषों के दबदबे वाला क्षेत्र माना जाता है। शुरुआत में बहुत सीमित मात्रा में महिलाएं इस क्षेत्र को अपने करियर के रूप में चुनती थी लेकिन समय में बदलाव के साथ परंपरागत सोच बदली और महिलाओं ने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। विज्ञान, तकनीक और रक्षा जैसे जटिल पेशों में वे अब पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। अपनी उपलब्धियों से चौंकाते हुए दुनिया भर में भारत का नाम रोशन किया है। इन भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने अपने कठिन परिश्रम, मार्गदर्शन एवं नेतृत्व से एक खास मुकाम हासिल किया है और ये तकनीक एवं अंतरक्षि क्षेत्र के लिए लाखों युवाओं को प्रेरित किया है। आज महिला दिवस के दिन अंतरिक्ष क्षेत्र में भारतीय मिशन को सफल बनाने वाली हम ऐसी भारतीय महिलाओं की उपलब्धियों को याद करेंगे।
ऋतु करिधाल (डेप्युटी ऑपरेशंस डाइरेक्टर, मंगल मिशन)
भारत के अंतरिक्ष मिशन में योगदान देने वाली महिला वैज्ञानिक ऋतु करिधाल आज किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। वह 20 साल से ज्यादा समय से इसरो की कई परियोजनाओं से जुड़ी रही हैं। भारत के मंगल मिशन को सफल बनाने में ऋतु का योगदान बहुत ज्यादा है। इस मिशन की सफलता ने उन्हें और उनके साथियों को चर्चा में ला दिया। मंगल मिशन की शुरुआत अप्रैल 2012 में हुई और इस मिशन के वैज्ञानिकों के पास मंगल तक पहुंचने के लिए मात्र 18 महीनों का समय था लेकिन ऋतु के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने असंभव सा दिखने वाले कार्य को मुमकिन कर दिखाया।
खास बात यह थी कि अंतरग्रहीय मिशन के लिए भारतीय वैज्ञानिकों के पास कोई अनुभव नहीं था। ऋतु का कहना है कि इस मंगल मिशन से कई अन्य महिला वैज्ञानिक जुड़ी थीं और टीम वर्क के चलते यह असंभव से मिशन संभव हो सका। उनका कहना है कि उनकी टीम घंटो इंजीनियरों के साथ बैठती थी। अभियान को लेकर घंटों बहस होती थी, यहां तक कि वीकेंड पर भी हमलोग काम करते थे। ऋतु का कहना है कि एक परिवार को संभालते हुए मिशन के लिए इतना समय निकाल पाना मुश्किल था लेकिन परिवार के सभी सदस्यों ने उनका भरपूर सहयोग किया।
नंदिनी हरिनाथ (डेप्युटी ऑपरेशंस डाइरेक्टर, मंगल मिशन)
मंगल मिशन में दूसरी बड़ी महिला वैज्ञानिक नंदिनी हरिनाथ हैं। नंदिनी का कहना है कि यह मिशन केवल इसरो के लिए बल्कि भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण था। इस मिशन को लेकर दुनिया भर की नजरें हमारी तरफ थीं। यह पहली बार हो रहा था जब मंगल मिशन की तैयारियों के बारे में जानकारी लोगों को दी जा रही थी। सोशल मीडिया के जरिए हम लोगों से जुड़े हुए थे। इस महिला वैज्ञानिक का कहना है कि इस मिशन को सफल बनाना एक बड़ी चुनौती थी। नंदिनी बताती हैं कि दो हजार रुपए के नए नोट पर जब मंगल मिशन की तस्वीर छपी तो उन्हें काफी खुशी मिली। महिला वैज्ञानिक ने कहा कि इस मिशन की जब शुरुआत हुई तो एक दिन में हमलोग करीब 10 घंटे काम करते थे लेकिन लॉन्चिंग की डेट जैसे-जैसे नजदीक आने लगा, हम लोग रोजाना 12 से 14 घंटे काम करने लगे।
अनुराधा टीके (कोस्टल प्रोग्राम डाइरेक्टर, इसरो)
इसरो के संचार उपग्रह को सफलतापूर्वक लॉन्च कराने में अनुराधा टीके का बहुत बड़ा योगदान है। अनुरोधा इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिकों में शामिल हैं। इस महिला वैज्ञानिक का कहना है कि जब नील ऑर्म्सस्ट्रांग अपोलो मिशन के साथ चांद पर उतरे तो इसकी कहानी उन्होंने अपने माता-पिता और अध्यापकों से सुनी। इससे उनकी कल्पना को पंख लगे। अनुराधा का कहना है कि उन्हें बचपन से विज्ञान में रुचि थी, इसलिए उन्होंने इस क्षेत्र को चुना। अनुराधा कहती हैं कि जब उन्होंने 1982 में इसरो में नौकरी शुरू की तो वहां पर महिलाओं की संख्या काफी कम थी। उनका कहना है कि आज इसरो की कुल कर्माचारियों की संख्या में महिलाओं की संख्या 20 से 25 प्रतिशत है।