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Interview:जिस राष्ट्रीय प्रतीक के डिजाइन पर विवाद,उसके मूर्तिकार से जानें पूरी कहानी

Updated Jul 19, 2022 | 09:59 IST

National Emblem Controversy: मूर्तिकार लक्ष्मण व्यास के अनुसार इसको मूर्त रूप देने में बड़ी संख्या में डिजाइनर, इंजीनियर, सरकार के अधिकारी शामिल रहे। हर चरण पर सभी पहलुओं का ध्यान रखा गया, तब जाकर इसे तैयार किया गया है।

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जानें कैसे तैयार हुआ संसद भवन पर लगा राष्ट्रीय प्रतीक
मुख्य बातें
  • कांस्य से बने करीब 9500 किलोग्राम वजन वाले राष्ट्रीय प्रतीक की ऊंचाई 6.5 मीटर है।
  • निर्माण कार्य में कास्टिंग के दौरान 5 महीने का समय लगा। इसके लिए करीब 40 कारीगरों ने काम किया।
  • इसके अलावा संसद भवन की छत पर इसे स्थापित करने में 50 दिन लगे।

Interview Of Laxman Vyas:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 जुलाई को संसद की छत पर राष्ट्रीय प्रतीक का जब अनावरण किया तो मकसद, देश की सबसे बड़ी पंचायत (संसद भवन) को नया रूप देना था। लेकिन राष्ट्रीय प्रतीक के अनावरण के बाद से ही विवाद शुरू हो गया। विपक्ष का आरोप है कि राष्ट्रीय प्रतीक  के निर्माण में मूल प्रतीक को कॉपी नहीं किया गया है। मूल चिन्ह के शेर और संसद भवन की छत पर लगाए गए प्रतीक  के शेरों में अंतर है।  कांस्य से बने करीब 9500 किलोग्राम वजन वाले प्रतीक की ऊंचाई 6.5 मीटर है। इस विवाद पर राष्ट्रीय प्रतीक के मूर्तिकार का साफ तौर पर कहना है कि संसद भवन पर लगा राष्ट्रीय प्रतीक हूबहू मूल प्रतीक का ही प्रतीक है। ऐसे में टाइम्स नाउ नवभारत ने राष्ट्रीय प्रतीक के मूर्तिकार लक्ष्मण व्यास से बात की है। आइए जानते हैं इस पूरे विवाद पर लक्ष्मण व्यास का क्या कहना है..

 विपक्ष के दावों की क्या है हकीकत

मैं इस विवाद को एक कलाकार के रूप में देख सकता हूं। और उस नजरिए से मैं अपनी राय पेश कर सकता है। राष्ट्रीय प्रतीक की ऊंचाई करीब 21 फुट है। जो बहुत विशालकाय है। इसके पहले राष्ट्रीय प्रतीक  को इस आकार में किसी ने नहीं देखा है। यही कारण हो सकता है कि लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं। जहां तक बदलाव की बात है तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह सारनाथ के मूल राष्ट्रीय प्रतीक की पूरी कॉपी है। मुझे इसके साइज के अलावा कोई और कारण नहीं दिखता है। 

निर्माण में किन बातों का रखा गया ध्यान

 भारत की सबसे बड़ी पंचायत पर यह प्रतीक लगना था तो अपने आप ही जिम्मेदारी बढ़ जाती है। इसको मूर्त रूप देने में बड़ी संख्या में डिजाइनर, इंजीनियर, सरकार के अधिकारी शामिल रहे। हर चरण पर सभी पहलुओं का ध्यान रखा गया, तब जाकर इसे तैयार किया गया है। राष्ट्रीय प्रतीक के निर्माण का काम टाटा कंपनी को मिला था। और उसने मुझे काम सौंपा।पूरे निर्माण कार्य में कास्टिंग के दौरान 5 महीने का समय लगा। इसके लिए करीब 40 कारीगरों ने काम किया। इसके अलावा 50 दिन हमें संसद भवन की छत पर इसे स्थापित करने में लगे।

कितना सुरक्षित है राष्ट्रीय प्रतीक

देखिए इसकी कॉस्टिंग में इटैलियन प्रॉसेस का इस्तेमाल किया गया है। इसके अंदर का स्ट्रक्चर काफी मजबूत है। ऐसे में इसे सभी परिस्थितियों से झेलने लायक बनाया गया है। इसके अलावा इसमें कभी जंग नहीं लगेगी। निर्माण प्रक्रिया में सभी परिस्थितियों का ध्यान रखा गया है।

विवाद से क्या दुख होता है

इसके पहले दिल्ली एयरपोर्ट के T-3 टर्मिनल पर लगी हाथियां, बाघा बार्डर पर श्याम सिंह अटारी की मूर्ति, उदयपुर में 57 फुट के महाराणा प्रताप की मूर्ति, नेता जी सुभाष चंद्र बोस, दीन दयाल उपाध्याय, इंदिरा गांधी आदि की मूर्तियां बनाई हैं। देखिए मेरे करियर में ऐसा विवाद पहली बार हो रहा है। जहां तक दुख की बात है तो हम कलाकार हैं, हमारे अंदर सहनशीलता होती ही है। हम जब कोई प्रदर्शनी करते हैं तो उसमें भी प्रशंसा के साथ-साथ कुछ लोग आलोचना भी करते हैं। जहां तक राष्ट्रीय प्रतीक की बात है तो हमें पता है कि हमने प्रतीक को हूबहू बनाया है। और मैं इसे पूरे भरोसे से कह सकता हूं, कि हर चरण में जरूरी मंजूरी ली गई है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने  बधाई दी इसके बाद क्या बचता है ?

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क्या विवाद के बाद सरकार के तरफ से कोई सवाल पूछा गया

सरकार की देख-रेख में ही इसका निर्माण हुआ है। ऐसे में दोबारा पूछने का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता है। निर्माण के दौरान सभी बातों का ध्यान रखा गया है। देखिए जिस एंगल से संसद भवन पर लगे प्रतीक चिन्ह का फोटो खींचा गया, अगर उसी एंगल से सारनाथ में लगे शेरों की फोटो ली जाएगी, तो वह भी ऐसे ही दिखेंगे। इसके अलावा अगर बड़े साइज वाले राष्ट्रीय प्रतीक को कंप्यूटर में छोटा कर देखा जाय तो यह सारनाथ के प्रतीक चिन्ह जैसा ही दिखेगा।

कितने हिस्सों में हुआ काम

 इसे दो हिस्से में पूरा किया गया है। इसके निर्माण का कार्य टाटा कंपनी को मिला था। राष्ट्रीय प्रतीक के रिसर्च, डिजाइनिंग का काम दूसरी टीम के जिम्मे था। मेरा काम दिए गए डिजाइन  को मेटल में कास्ट कर संसद पर स्थापित करना था। पूरी कास्टिंग का काम जयपुर में किया गया था। 
 

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