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भारत के शहर 'वेट बल्ब' डेंजर जोन में ! जानें दिल्ली-मुंबई-चेन्नई से लेकर लखनऊ-पटना के लिए क्या है खतरा

Updated Mar 01, 2022 | 16:49 IST

IPCC report: दुनिया में शहरों का वेट बल्ब तापमान खतरनाक स्तर पर पहुंचने की ओर बढ़  रहा है। जिसकी वजह से अब मैदानी इलाकों के शहरों के अस्तिव पर खतरा मंडराने लगा है।

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जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ा, फोटो: Istock
मुख्य बातें
  • वेट बल्ब का तापमान भारत के अधिकांश हिस्से में 35 डिग्री सेल्सियस के खतरनाक स्तर पर पहुंच सकता है।
  • अगर एक से 4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी होती है तो भारत में चावल का उत्पादन 10 से 30 प्रतिशत तक कम हो सकता है।
  • बढ़ते तापमान की वजह से गंगा,साबरमती, सिंधु, अमू दरिया जैसी नदियों में जल संकट की चेतावनी दी गई है।

नई दिल्ली: अभी तक हम आम तौर पर यही सुनते आए हैं कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से समुद्र के किनारे बसे शहरों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। लेकिन अब स्थिति उससे भी कहीं ज्यादा गंभीर हो गई है। क्योंकि अब दुनिया में शहरों का वेट बल्ब तापमान खतरनाक स्तर पर पहुंचने की ओर बढ़  रहा है। जिसकी वजह से अब मैदानी इलाकों के शहरों के अस्तिव पर खतरा मंडराने लगा है। और उससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देशों में भारत भी है। इस बात का अंदेशा  इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) रिपोर्ट में जताया गया है।  रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने में देरी हुई तो पूरी दुनिया के लिए स्थिति काफी गंभीर होगी। मौसम बदलने के कारण ज्यादा या कम बारिश, बाढ़ की विभीषिका और लू के थपेड़े बढ़ सकते हैं। इसके अलावा बढ़ते तापमान के कारण  कृषि उत्पादन में बड़े पैमाने पर कमी की आशंका जताई गई है। जिससे भारत भी अछूता नहीं रहेगा।

वेट बल्ब शहर का क्या है मतलब

जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी के छठवें संस्करण की आई रिपोर्ट के दूसरे हिस्से में  वेट-बल्ब तापमान के बारे में बताया गया है कि इसके तहत किसी शहर का तापमान और आर्द्रता का आंकलन किया जाता है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि इसी तरह उत्सर्जन बढ़ता रहा तो वेट बल्ब का तापमान भारत के अधिकांश हिस्से में 35 डिग्री सेल्सियस के खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा। और कहीं तो उससे भी ज्यादा हो जाएगा। और अगर ऐसा हुआ तो वह हिस्से रहने लायक नहीं रह जाएंगे। अभी यह स्तर 25-30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। और भारत में कभी यह स्तर 31 डिग्री सेल्सियस के पार शायद ही गया है। जो खुद ही मनुष्य के लिए जीवनयापन खतरनाक है। लेकिन अगर यह स्तर 35 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया तो एक फिट और स्वस्थ व्यस्क के लिए छाये में भी छह घंटे तक जीवित रहना मुश्किल हो जाएगा।

गंगा-साबरमती नदियों में जल संकट

रिपोर्ट में बढ़ते तापमान की वजह से गंगा,साबरमती, सिंधु,अमू दरिया जैसी नदियों में जल संकट की चेतावनी दी गई है। उसके अनुसार 21वीं सदी के मध्य तक, अमू दरिया, सिंधु, गंगा और अंसाबरमती-नदी में गंभीर जल संकट खड़ा हो सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण एशियाई देश इस सदी के अंत तक सूखे की स्थिति में 5-20 फीसदी बढ़ोतरी का सामना कर सकते हैं। जिसका सीधा असर भारत में कृषि उत्पादन पर भी दिखेगा। 

अगर एक से 4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी होती है तो भारत में चावल का उत्पादन 10 से 30 प्रतिशत तक कम हो सकता है। इसी तरह मक्का का उत्पादन 25 से 70 प्रतिशत तक घट सकता है।

हिमालय क्षेत्र में मलेरिया का प्रकोप

यही नहीं अगर स्थिति ऐसी ही बनी रही है और तापमान पर नियंत्रण नहीं पाया गया, तो 2030 तक भारत में मलेरिया का प्रकोप बढ़ जाएगा। और इसकी जद में हिमालय क्षेत्र, पूर्वी और दक्षिण भारत के राज्यों में सबसे ज्यादा होंगे। यही नहीं ग्लोबल वार्मिंग के उच्च स्तर के कारण सदी के अंत तक वैश्विक जीडीपी में 10-23 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। इसी तरह चीन की जीडीपी में  42 प्रतिशत और भारत की जीडीपी  में 92 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है। यह गिरावट बिना ग्लोबल वार्मिंग वाले दौर के आधार पर आंकी गई है।

भारत के तटीय इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे

रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से तटीय इलाकों वाली जनसंख्या  दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में प्रभावित होगी। भारतीय शहरों में ज्यादा गर्मी, शहरों में बाढ़, समुद्र का जलस्तर बढ़ने की समस्याएं और चक्रवाती तूफान की आशंका बनी रहेगी। इस सदी के मध्य तक भारत की करीब साढ़े 3 करोड़ आबादी तटीय बाढ़ की विभीषिका झेलेगी और सदी के अंत तक यह आंकड़ा 5 करोड़ तक जा सकता है।         

वहीं अगर दुनिया के आधार पर देखा जाय तो रिपोर्ट कहती है कि  3.6 अरब  आबादी ऐसे इलाकों में रहती है जहां जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर हो सकता है। अगले दो दशक में दुनियाभर में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। तापमान बढ़ने के कारण खाद्य सुरक्षा, पानी की किल्लत, जंगल में आग, हेल्थ, ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम, शहरी ढांचा आदि कमजोर होने, बाढ़ जैसी समस्याएं बढ़ने का अनुमान जताया गया है।

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(एजेंसी इनपुट के साथ)

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