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अखिलेश यादव क्या मुलायम सिंह की "राजनीतिक विरासत'' को आगे बढ़ाने में हो रहे नाकाम!

Updated Apr 28, 2022 | 13:59 IST

Akhilesh Yadav Mulayam Singh's Successor: प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी का अहम स्थान है, मुलायम सिंह यादव के द्धारा स्थापित पार्टी की विरासत अब उनके बेटे अखिलेश यादव के हाथों में है।

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अखिलेश मुलायम की "राजनीतिक विरासत'' को आगे बढ़ाने में नाकाम!
मुख्य बातें
  • 2017 के चुनाव में अखिलेश यादव का कांग्रेस से गठबंधन का फॉर्मूल भी हुआ फेल
  • 2019 के लोकसभा चुनाव में बेमेल गठबंधन से चुनाव में साइकिल हुई पंचर!
  • 2022 चुनाव में अखिलेश का छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन का फॉर्मूल भी काम ना आया

मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का जिक्र आते ही एक ऐसी शख्सियत की इमेज सामने आती है जिसने अपने दम पर समाजवादी पार्टी (Samazwadi Party) की स्थापना की, ना सिर्फ स्थापना की बल्कि देश के अहम राज्य  उत्तर प्रदेश की सत्ता में पार्टी का अहम स्थान है और मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश की सत्ता को भी संभाला है, मगर उम्र बढ़ने के साथ अपने बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के  हाथों पार्टी की विरासत सौंप दी थी, पार्टी को अब अखिलेश यादव ही संचालित कर रहे हैं।

मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत यानी समाजवादी पार्टी पर मुलायम के बाद कौन?  ये सवाल उस वक्त प्रमुखता से सामने आया था जब मुलायम ने बढ़ती उम्र और अस्वस्थतता का हवाला देते हुए अपने बाद पार्टी की कमान किसी और को सौंपने का मन बनाया, उसके बाद बेटे अखिलेश को ये महती जिम्मेदारी दी गई।

सपा की जिम्मेदारी संभालने के लिए मुलायम सिंह के अनुज शिवपाल सिंह यादव के मन में भी चाह थी और उन्होंने उसके लिए प्रयास भी किया लेकिन बेटे अखिलेश इसमें बाजी मार ले गए और मुलायम को भी बेटे का प्रेम भाई के प्यार से कहीं ज्यादा  अच्छा लगा और अखिलेश यादव के नेतृत्व में साल 2012 के यूपी चुनाव में विजयश्री हासिल की।

 अखिलेश के अपने उनकी टांग खींचने में पीछे नहीं रहे

अखिलेश ने सब 2012 में जब उत्तर प्रदेश की सत्ता संभाली तो उस वक्त अखिलेश सत्ता संभालने में उतने पारंगत नहीं थे लेकिन समय बीतने के साथ उन्होंने अच्छे से पांच साल शासन किया हालांकि उनके अपने उनकी टांग खींचने में इस दौरान पीछे नहीं रहे लेकिन अखिलेश इस सबसे कुशलता के साथ निपटते रहे।

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अखिलेश यादव का कांग्रेस से गठबंधन की फॉर्मूल काम ना आया

2017 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी यूपी की सत्ता पर काबिज हुए, भारतीय जनता पार्टी ने 312 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत प्राप्त किया जबकि सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी गठबन्धन को 54 सीटें और बहुजन समाज पार्टी को 19 सीटों से संतोष करना पड़ा था। मुख्य विपक्षी दल के रूप में सपा और कांग्रेस को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था तब इस गठबंधन को मात्र 54 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था कांग्रेस को चुनाव में 114 सीटों में केवल सात सीटों पर जीत मिली थी, वहीं समाजवादी पार्टी को 311 सीटों में से केवल 47 सीटों पर जीत मिलीं थीं।

बेमेल गठबंधन से 2019 लोकसभा चुनाव में साइकिल हुई पंचर!

2019 के लोकसभा चुनाव सपा ने बसपा के साथ  गठबंधन किया था  लेकिन इसमें भी अखिलेश यादव बुरी तरह फेल हुए, अखिलेश यादव ने पिता की राजनीतिक विरासत संभाली तो उन नीतियों और सावधानियों को दरकिनार कर दिया, जिनकी बदौलत मुलायम ने पार्टी को खड़ा किया था। अखिलेश ने अपने पिता के सियासी दुश्मनों को भी अपना लिया,  जिसका परिणाम ये हुआ कि बेमेल गठबंधन के चक्कर में सपा की हालत खस्ता हो गई और लोकसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव बसपा के आगे झुके तो न केवल परिवार की 3 सीटें खो दीं, बल्कि कुल सीटों की संख्या भी सात से घटकर पांच रह गईं ये समाजवादी पार्टी के लिए बड़ा झटका था।

चाचा शिवपाल के प्रत्याशियों ने सपा के वोटों में ही सेंध लगाई

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया बनाकर चुनाव उतरे शिवपाल ने जहां प्रदेश की पचास सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे वहीं फीरोजाबाद से अपने भतीजे अक्षय यादव के मुकाबले वह खुद मैदान में आ गए थे। माना जा रहा था कि शिवपाल ने चुनौती न दी होती तो उनको मिले वोट अक्षय के ही खाते में जाते, यानी शिवपाल के प्रत्याशियों ने सपा के वोटों में ही सेंध लगाई। 

2022 विधानसभा चुनाव में छोटी पार्टियों संग गठबंधन भी नहीं आया काम

अखिलेश यादव के नेतृत्व में ये सपा ने तीसरा चुनाव लड़ा था मगर साल 2022 के चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया कि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को दोबारा सत्ता में लौटने के लिए एक बार फिर पांच साल इंतजार करना पड़ेगा, हालांकि उनका वोट शेयर पिछले चुनाव की अपेक्षा बढ़ा है 2017 में  सपा का वोट शेयर 21.8 प्रतिशत था जो इस बार 10 प्रतिशत बढकर 31.8 प्रतिशत हो गया है, लेकिन वोट शेयर में इजाफे के बाद भी सपा को पर्याप्त सीटें नहीं हाथ नहीं लगीं।

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