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दक्षिण से कोई पार्टी नहीं बन पाई 'नेशनल' KCR की महत्वाकांक्षा में कितना दम, जानें 178 सीटों का गणित

Updated Sep 13, 2022 | 17:13 IST

KCR National Party Plan: केसीआर अब तेलंगाना की राजनीति से निकल राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं। और इसके लिए वह मोदी सरकार पर लगातार राजनीतिक हमले कर रहे हैं। और विपक्षी एकता के लिए शरद पवार, उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं से मिल रहे हैं।

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केसीआर क्या बदलेंगे दक्षिण भारत का इतिहास !
मुख्य बातें
  • दक्षिण भारत से लोक सभा की कुल 178 सीटें आती हैं। जो कि कुल 545 लोक सभा सीटों की करीब एक तिहाई सीटें हैं।
  • DMK, AIADMK हो या फिर तेलगुदेशम, एनसीपी और शिवसेना ये सभी दल केंद्र की सत्ता में भागीदार रह चुके हैं।
  • KCR 2024 के लोक सभा चुनावों में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराते हैं तो वह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना होगी।

KCR National Party Plan: तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के.चंद्रशेखर राव ने दक्षिण भारत से बड़ा ऐलान कर दिया है। उनका कहना है कि वह अब एक नेशनल पार्टी बनाएंगे। 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले नेशनल पार्टी बनाने का ऐलान और लगातार विपक्ष को एकजुट करने की कवायद से के.चंद्रशेखर राव के इरादे साफ हैं। केसीआर अब राष्ट्रीय राजनीति में उतरना चाहते हैं। और उन्हें 2024 का चुनाव इसके लिए मुफीद लग रहा है। केसीआर की यह महत्वकांक्षा आने वाले समय में क्या रंग दिखाएगी, यह तो समय बताएगा। लेकिन यह साफ है कि इसके पहले दक्षिण भारत से किसी भी नेता ने इस तरह का नेशनल प्लान की बात नहीं की थी। ऐसे में अगर केसीआर 2024 के लोक सभा चुनावों में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराते हैं तो वह भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना होगी।

क्या है प्लान

बीते रविवार को तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार वह जल्द ही एक राष्ट्रीय पार्टी का गठन करेंगे। ऐसा फैसला अलग-अलग क्षेत्रों के बुद्धिजीवियों, अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों के साथ लंबी चर्चा के बाद किया गया है। इसके पहले पार्टी ने अप्रैल में अपने स्थापना दिवस के कार्यक्रम के दौरान इस बात का प्रस्ताव पारित क्या था कि पार्टी को देश के व्यापक हित में राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। 

साफ है कि केसीआर अब तेलंगाना की राजनीति से निकल राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पकड़ बनाना चाहते हैं। और इसके लिए वह पिछले कुछ समय से कोशिशें भी कर रहे हैं। इसमें विपक्षी एकता के लिए शरद पवार, उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं से मिल चुके हैं। वह किसानों के मुद्दों को लेकर दिल्ली में किसान नेता राकेश टिकैत के साथ मंच भी साझा कर चुके हैं। और लगातार मोदी सरकार पर हमला कर रहे हैं। लेकिन अगर दक्षिण भारत का राजनीतिक इतिहास देखा जाय, तो अभी तक कोई भी पार्टी इस मुकाम पर नहीं पहुंची है, जिसने बड़ी संख्या में सीटें जीतक राष्ट्रीय राजनीति में सीधा असर डाला हो।

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दक्षिण में 178 लोक सभा सीटें फिर भी राष्ट्रीय असर नहीं

दक्षिण भारत से लोक सभा की कुल 178 सीटें आती हैं। जो कि कुल 545 लोक सभा सीटों की करीब एक तिहाई सीटे हैं। ऐसे में अगर कोई पार्टी इन 178 सीटों में 100 सीटें जीतने की क्षमता रखती है, तो उसके लिए राष्ट्रीय राजनीति में अपनी हनक जमाने से कोई नहीं रोक सकता है। लेकिन आजादी के बाद का इतिहास देखा जाय तो शुरूआत दौर में कांग्रेस का तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, संयुक्त आंध्र प्रदेश में वर्चस्व था। और उसके बाद सबसे पहले केरल में कम्युनिस्ट दलों ने कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बेदखल किया। लेकिन ऐसा कारनामा करने के बाद कम्युनिस्ट दल केरल तक ही सीमित रह गए। 

जबकि दूसरे राज्यों भाषा और क्षेत्रीयता के आधार पर क्षेत्रीय दलों का उभार हुए। तमिलनाडु में डीएमके, एआईएडीएमके ने कांग्रेस को सत्ता से हटाया लेकिन वह भी तमिलनाडु तक ही सीमित रहे। इसी तरह आंध्र प्रदेश और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तेलगुदेशम,वाईएसआर कांग्रेस, टीआरएस जैसे क्षेत्रीय दल ही पनपे। इसी तरह कर्नाटक में जेडी (एस) कांग्रेस, भाजपा के पाद तीसरी शक्ति है। लेकिन वह भी कर्नाटक तक ही सीमित है। ऐसा ही हाल महाराष्ट्र में एनसीपी और शिव सेना का रहा है। यह सभी दल कभी अपने राज्य के बाहर राजनीतिक शक्ति नहीं बन पाए। 

राज्य कुल लोक सभा सीट
तेलंगाना 17
आंध्र प्रदेश 25
कर्नाटक 28
तमिलनाडु 39
केरल 20
महाराष्ट्र 48
पुडुचेरी 1
कुल 178

सत्ता में साझीदार पर असर नहीं

अपने-अपने राज्यों तक सीमित रहने का ही असर है कि चाहे डीएमके, एआईएडीएमके हो या फिर तेलगुदेशम, एनसीपी और शिवसेना ये सभी दल केंद्र की सत्ता में भागीदार तो हुए, लेकिन उसका फायदा वह राष्ट्रीय राजनीति में विस्तार के रूप में नहीं ले पाए। केवल एक बार एआईएडीएमके नेता जयललिता ने साल 1999 अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार से समर्थन वापस लेकर,13 महीने की सरकार गिराकर अपनी ताकत दिखाई थी। लेकिन वह ताकत भी अंकों के गणित तक ही सीमित रह गई थी। 

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