कोच्चि । केरल उच्च न्यायालय ने नाबालिग से दुष्कर्म करने के मामले में एक वरिष्ठ नागरिक को दोषी ठहराने के फैसले को कायम रखते हुए कहा कि आत्मसमर्पण को यौन संबंध बनाने की सहमति के तौर पर नहीं देखा जा सकता।उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि भारत जैसे देश लैंगिक समानता को लेकर प्रतिबद्ध है, वहां यौन संबंध तभी स्वागतयोग्य माना जा सकता है जिसमें पीड़ित के अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो और तभी उसे सहमति के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति पीबी सुरेश कुमार ने यह फैसला 29 मई को 67 वर्षीय व्यक्ति द्वारा निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनाया। व्यक्ति को पथनमथिट्टा की सत्र अदालत ने 2009 में अनुसूचित जाति की नाबालिग लड़की से दुष्कर्म करने और गर्भधारण कराने का दोषी करार दिया था।अपील में आरोपी ने दावा किया कि पीड़ित लड़की द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूत यह दिखाता है कि यौन संबंध आपसी सहमति से बना। आरोपी के वकील ने भी कहा कि पीड़िता ने स्वीकार किया है कि जब उसे यौन संबंध बनाने की इच्छा होती थी तब वह आरोपी के घर जाती थी।
उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि पीड़िता ने विशेष तौर सबूत दिया है कि जब वह एक दिन टेलीविजन देख रही थी तो आरोपी ने दरवाजा बंद कर दिया और दूसरे कमरे में ले जाकर उससे यौन संबंध बनाया। लड़की ने यह भी बताया है कि उसने चिल्लाने की कोशिश की लेकिन आरोपी ने उसका मुहं हाथ से दबाकर बंद कर दिया।अदालत ने कहा कि प्रथमदृष्टया यौन संबंध आपसी सहमति से नहीं बनाया गया। लड़की ने साफ तौर पर कहा है कि उसने डर की वजह से इस घटना की जानकारी अपनी मां को नहीं दी।