- लक्षद्वीप प्रशासन से एनिमल हस्बैंड्री संचालित डेयरी फार्म्स को बंद करने के दिए थे निर्देश
- मिड डे मील से चिकन और मीट को हटाने के थे निर्देश
- केरल हाईकोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासन के दोनों फैसलों पर लगाई रोक
केरल हाईकोर्ट ने लक्षद्वीप प्रशासन के दो विवादित फैसलों को अमल में लाने पर रोक लगा दी है। बता दें कि प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल के आदेश पर इस समय लक्षद्वीप में लोग नाराज हैं। 21 मई को एनिमल हस्बैंड्री के निदेशक की तरफ से आदेश निकाला गया कि राज्य संचालित डेयरी फार्म्स को बंद किया जाएगा। इसके साथ ही यह भी निर्देश था कि वेटरनिरी यूनिट के पास जो भी सांड, बछड़े हों उन्हें तत्काल नीलाम कर सभी सेंटर्स को बंद कर दिया जाए।
क्या है दोनों आदेश
पहले आदेश में लक्षद्वीप में प्रशासन द्वारा संचालित डेयरी फॉर्म्स को बंद करना है और दूसरा आदेश मिड डे मील से चिकन और दूसरे मीट पदार्थों को हटाने से है। इस संबंध में मुख्य न्यायधीश जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी चैली ने अपने आदेश को सुनाया। बता दें कि कवरत्ती के रहने वाले अजमल अहमद नाम के शख्स ने इस संबंध में पीआईएल दायर की थी।
याचिकाकर्ता की यह थी शिकायत
याची की तरफ से पेश वकील पीयूष कोट्टम ने इसकी पुष्टि की।याचिकाकर्ता की शिकायत थी कि लक्षद्वीप प्रशासन ने गलत नीयत के साथ इस तरह के आदेश दिए थे। प्रशासन इस तरह के आदेश के साथ प्रशासन स्थानीय लोगों की खानपान की आदतों में बदलाव लाना चाहता था। इसके अलावा जिस तरह से प्रस्तावित एनिमल प्रिजर्वेशन रेग्यूलेशन 2021 को लाने की कवायद की जा रही है( इसमें पशुओं को मारने और खास तौर से बीफ और उनसे बने उत्पादों के खाने पर रोक है।) उसमें कई तरह की खामी थी। इसके अलावा जिस तरह से डेयरी फार्म्स को बंद करने का फैसला किया गया उससे साफ पता चलता है कि गुजरात के डेयरी उद्योग को यहां लाकर बढ़ावा देना था।
'संविधान की भावना की अवहेलना की गई'
याचिकाकर्ता का कहना है कि जिन पशुओं की नीलामी के लिए नोटिस चस्पा किया गया उसमें किसी ने भी रुचि नहीं दिखाई। इसके साथ ही जिस तरह से मिड डे मील से चिकन और मीट को हटाने का फैसला किया गया उसके लिए किसी तरह की चर्चा नहीं हुई। लक्षद्वीप प्रशासन ने मनमर्जी अपने दोनों फैसलों को लागू करने की कोशिश की। यही नहीं मिड डे मील से संबंधित फैसले को बैंग्लोर के अक्षय पात्र एनजीओ से जोड़कर देखा गया। याची ने कहा कि प्रशासन का फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 का सीधे तौर पर उल्लंघन है। इन फैसलों से स्थानीय लोगों की संस्कृति और आस्था पर प्रहार करने की कोशिश की गई और यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।