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Third Front News: तीसरे मोर्च की कवायद पर पवन वर्मा का बड़ा बयान, बिना कांग्रेस संभव नहीं

Updated Jun 23, 2021 | 06:50 IST

जेडीयू के पूर्व नेता पवन वर्मा का कहना है कि बिना कांग्रेस तीसरे मोर्चे की कल्पना भी संभव नहीं है। बता दें कि मंगलवार को राष्ट्र मंच के बैनर तले विपक्षी दल इकट्ठा हुए थे। लेकिन कांग्रेस नहीं शामिल हुई थी।

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तीसरे मोर्च की कवायद पर पवन वर्मा का बड़ा बयान
मुख्य बातें
  • एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के घर राष्ट्र मंच के बैनर तले विपक्षी दल इकट्ठा हुए
  • कांग्रेस, एसपी और बीएसपी ने मीटिंग से बनाई दूरी
  • पवन वर्मा बोले- बिना कांग्रेस तीसरे मोर्चे की कल्पना संभव नहीं

नई दिल्ली। राष्ट्र मंच के बैनर तले मंगलवार को शरद पवार के घर विपक्ष के दिग्गज नेताओं की बैठक हुई हालांकि कांग्रेस समेत एसपी, बीएसपी और अन्य विपक्षी दल दूर रहे। पहले इस तरह की जानकारी थी कि शरद पवार के कहने पर विपक्षी नेता इकट्ठा हुए। लेकिन औपचारिक तौर पर यह साफ किया गया कि राष्ट्र मंच की अगुवाई में वो बैठक हुई थी। लेकिन बैठक में शामिल नेता पवन वर्मा कहते हैं कि बिना कांग्रेस किसी तीसरे मोर्चे की कल्पना नहीं की जा सकती है।

बिना कांग्रेस तीसरे मोर्च की कल्पना संभव नहीं
एक अंग्रेजी साइट को दिए इंटरव्यू में वो कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि यह किसी तीसरे मोर्चे के बारे में था। राष्ट्र मंच एक खुला चर्चा मंच है जो राजनीति से अलग नहीं है, बल्कि मुख्यधारा की राजनीति का हिस्सा भी नहीं है। वर्तमान महत्व के मुद्दों और राजनीतिक विकास के विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित किया गया है। यहां, राजनीतिक दल अन्य राजनीतिक दलों के सदस्यों और व्यक्तित्वों को इन मुद्दों पर चर्चा के लिए आमंत्रित करते हैं।कांग्रेस की भागीदारी के बिना भाजपा के खिलाफ कोई मोर्चा नहीं हो सकता और तीसरा मोर्चा अनिवार्य रूप से चुनावी गणित के आधार पर व्यवहारिक नहीं है।

क्या कहते हैं जानकार
अब सवाल यह है कि पवन वर्मा के बयान के पीछे के मायने क्या हैं। दरअसल चुनावी रणनीतिकार के तौर शोहरत पा चुके प्रशांत किशोर ने कहा था कि देश में कोई भी तीसरा या चौथा मोर्चा बीजेपी को टक्कर नहीं दे सकता। उसके पीछे उन्होंने कई आधार बताए थे। जानकार कहते हैं कि अगर आप देश में क्षेत्रीय दलों के उभार को देखें तो उनका उदय किसी राष्ट्रीय पार्टी की वजह से हुआ है।

अगर भारत की राजनीति को देखें को कांग्रेस इकलौती पार्टी हुई करती थी। जब उसमें अलग अलग विचारों का उदय हुआ तो उसका असर क्षेत्रीय दलों के गठन के तौर पर हुआ। अब सवाल यह है कि चुनावी राजनीति या यूं कहें कि सत्ता की राजनीति में कोई भी दल सत्तासीन पार्टी के खिलाफ बिगुल कितना भी क्यों ना फूके अपने हितों को नजरंदाज कैसे कर सकता है। इसलिए भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे की वास्तविकता सिर्फ विचारों में रहती है जमीन पर  आते ही उसका क्या हश्र होता है उसे हर किसी ने देखा है।

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