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5 जजों के सर्वसम्मत के फैसले पर, 4-3 का फैसला पड़ेगा भारी, जानें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा

Updated Sep 20, 2022 | 12:10 IST

Supreme Court News : कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 145 (5) के अनुसार बहुमत वाले जजों की सहमति के फैसले को अदालत की राय अथवा निर्णय माना जाएगा। बृहद पीठ की सर्वसम्मत का फैसला कम संख्या वाली पीठ के निर्णय से ऊपर माना जाएगा।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला।
मुख्य बातें
  • सर्वसम्मत के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है अहम फैसला
  • जजों के 5-0 के फैसले पर पीठ की 4-3 का फैसला पड़ेगा भारी
  • कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 145 (5) का दिया हवाला

Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों पर सोमवार को बड़ा आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि वृहद पीठ का बहुमत वाला फैसला कम संख्या वाली पीठ के सर्वसम्मत के फैसले से ऊपर माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि हालांकि, वृहद पीठ में शामिल जजों की संख्या छोटी बेंच के न्यायाधीशों की संख्या के बराबर अथवा उससे कम हो सकती है। इसका मतलब यह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों वाली वृहद बेंच यदि किसी मामले में अपना फैसला 4-3 से सुनाती है तो इसे पांच जजों के सर्वसम्मति के फैसले पर ऊपर एवं बाध्यकारी माना जाएगा।    

दिल्ली बिक्री कर एक्ट पर सुनवाई करते हुए दिया फैसला
जस्टिस इंदिरा बनर्जी की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने दिल्ली बिक्री कर एक्ट के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली एवं कर छूट पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह अहम फैसला सुनाया। इस पीठ में जस्टिस हेमंत गुप्ता, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश एवं जस्टिस सुधांशु धूलिया शामिल थे। 

पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 145 (5) का दिया हवाला
कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 145 (5) के अनुसार बहुमत वाले जजों की सहमति के फैसले को अदालत की राय अथवा निर्णय माना जाएगा। बृहद पीठ की सर्वसम्मत का फैसला कम संख्या वाली पीठ के निर्णय से ऊपर माना जाएगा। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि बहुमत वाले फैसले में कितने जज शामिल हैं। 

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जजों की संख्या नहीं बेंच की ताकत का प्रासंगिक-SC
वहीं, जस्टिस बनर्जी, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सुंदरेश एवं जस्टिस धुलिया ने एक फैसला दिया जबकि जस्टिस गुप्ता ने अन्य जजों से सहमति जताते हुए अपना अलग फैसला लिखा। उन्होंने कहा 'इस बात पर सहमति बनी है कि एक खास नजरिया अपनाने वाले जजों की संख्या प्रासंगिक नहीं है बल्कि बेंच की ताकत महत्व रखती है।' सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कई मामलों में उलटफेर करने वाला साबित हो सकता है। 

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