- केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का एक्टिव होना, यह संकेत था कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जल्द ही तल्खी को खत्म करना चाहता है।
- 2024 के लोक सभा चुनावों को देखते हुए भाजपा किसी तरह को जोखिम नहीं लेना चाहती है।
- अग्निपथ स्कीम के खिलाफ बिहार में हुए प्रदर्शन के बाद दोनों दलों के नेताओं में तल्खी खुलकर सामने आ गई थी।
Narendra Modi and Nitish Kumar:क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पटना दौरा, पिछले कुछ समय से बिहार में भाजपा और जद (यू) के बीच चल रही तल्खी को खत्म कर देगा। शुरूआती संकेत तो ऐसे ही मिले हैं, जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार ने एक-दूसरे की जमकर तारीफ की है, उससे तो यही लगता है कि दोनों नेता राज्य में जमीनी स्तर पर दोनों दलों के बीच चल रही खींचतान को खत्म करने का संदेश दे रहे हैं। असल में पिछले कुछ समय से बिहार में सियासी गरमी सत्ता-विपक्ष से ज्यादा सत्ताधारी दलों में ही दिख रही है।
अगर भाजपा और जद (यू) के शीर्ष नेतृत्व को छोड़ दिया जाय, तो निचले स्तर दोनों दलों के नेता एक-दूसरे के खिलाफ बोलने में कोई कोताही नहीं कर रहे हैं। फिर चाहे जातिगत जनगणना का मामला हो, विशेष राज्या का दर्जा देने की बात हो, राज्य सभा चुनाव हों या फिर अग्निपथ योजना, दोनों दल कई मौकों पर एक-दूसरे के खिलाफ नजर आए। हालात यह हो गए कि मामला संभालने के लिए दोनों दलों के नेताओं को यह कहना पड़ रहा है कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए के नेता और वह 2025 तक मुख्यमंत्री रहेंगे।
कैसे बड़ी तल्खी
2020 के विधानसभा चुनावों के बाद, भले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है। लेकिन भाजपा के राज्य स्तर के नेता बड़े दल होने का अहसास कराते रहते हैं। इन चुनावों में पहली बार ऐसा हुआ था कि भाजपा , जद (यू) से ज्यादा सीटें लेकर आई थी। भाजपा के पास 77 विधायक हैं, वहीं जद(यू) के पास 45 विधायक हैं। इसी ताकत की वजह से बिहार की राजनीति में पहली बार नीतीश और सुशील मोदी की जोड़ी टूटी और भाजपा ने युवा नेताओं और जातिगत समीकरण के आधार पर दो सीएम बनाएं। इसी के बाद से यह अटकलें लगाई जाती रही है कि भाजपा जल्द ही सीएम की कुर्सी पर काबिज होगी।
और इन कयासों को बल भी इसलिए मिलता है कि स्थानीय स्तर पर भाजपा विधायक इस तरह की बयानबाजी करते रहते हैं। जैसे कि भाजपा विधायक विनय बिहारी पार्टी की भूमिका दरोगा से बढ़कर एसपी के रूप में होने की बात कह चुके हैं। इस तरह की बयानबाजी का मामला बिहार में इतना बढ़ा है कि सुशील मोदी को यह कहना पड़ा कि नीतीश कुमार 2025 तक मुख्यमंत्री रहेंगे। इसी तरह उपेंद्र कुशवाहा का भी यह बयाना काफी चर्चा में रहा कि नीतीश कुमार इज एनडीए.. .. एनडीए इज नीतीश कुमार। और इस मामले में कोई गलतफहमी नहीं पाले। इस दौरान इफ्तार पार्टी पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राबड़ी देवी के घर पहुंचना भी कयासों के दौर शुरू कर चुका था।
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दोनों दलों के बीच जातिगत जनगणना पर मतभेद के साथ-साथ राज्य सभा चुनाव के दौरान तल्खी आ गई थी। जद(यू) ने जिस तरह केंद्रीय मंत्री आर.सी.पी.सिंह राज्य सभा उम्मीदवार के लिए पत्ता काटा और फिर अजय आलोक और दूसरे कई नेताओं को पार्टी से निलंबित कर दिया। उसे भी दोनों दलों के बिगड़ते रिश्ते के रूप में देखा गया। इसके बाद अग्निपथ स्कीम के ऐलान के समय बिहार में उग्र प्रदर्शन और भाजपा नेताओं पर हुए हमले ने तल्खी बढ़ा दी।
उसके बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल खुल कर भाजपा नेताओं पर हुए हमले के लिए नीतीश सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। वहीं जनता दल (यू) के नेता लल्लन सिंह भाजपा को नसीहत देने लगे।
अमित शाह , धर्मेंद्र प्रधान ने किया डैमेज कंट्रोल
बढ़ती तल्खी के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अप्रैल में नीतीश कुमार से मुलाकात और उसके बाद बिहार में प्रभारी न होते हुए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का एक्टिव होना, यह संकेत था कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व जल्द ही इस तल्खी को खत्म करना चाहता है। खास तौर से भूपेंद्र यादव का बिहार प्रभारी होते हुए धर्मेंद्र प्रधान की सक्रियता साफ बता रही थी कि पार्टी नीतीश कुमार के साथ उनके पुराने संबंधों का इस्तेमाल करना चाह रही थी। धर्मेंद्र प्रधान केंद्रीय मंत्री बनने से पहले बिहार में काफी सक्रिय रहे हैं, और उस दौरान उनकी नीतीश कुमार से घनिष्ठता बनी। और वह साल 2012 में बिहार से ही राज्य सभा सदस्य चुने गए थे।
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2025 के लिए 2024 नहीं बिगाड़ेगी भाजपा
सबसे अहम बात यह है कि बिहार अभी ऐसा राज्य हैं, जहां पर भाजपा सत्ता में होने के बावजूद, बेहद मजबूत नहीं रही है। इसके अलावा 2020 के चुनावों से यह भी साफ हो गया था कि वहां पर जातिगत राजनीति बेहद का आधार कम नहीं हुआ है। राष्ट्रीय जनता दल अभी भी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। इसी तरह क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों पर आधारित पार्टियों का वोट बैंक बना हुआ है। ऐसे में 2024 केे लोक सभा चुनाव में वह नीतीश से संबंध खराब कर 40 सीटों पर समीकरण नहीं बिगाड़ना चाहेगी। 2019 के चुनावों में एनडीए को 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इसमें भाजपा को 17 और जद (यू) को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। ऐसे में भाजपा नीतीश से दूरी बनाकर 2024 में अपना परफॉर्मेंस खराब नहीं करना चाहेगी। हां ये जरूर है कि लोक सभा चुनाव के नतीजे 2025 के विधानसभा चुनावों के समीकरण पर जरूर असर डालेंगे।