- उन्नाव के बक्सर और रौतापुर घाट पर सामान्य दिनों में 2 से 3 शव जलाए या दफनाए जाते थे
- कोविड काल में हर दिन 10 से 15 शव जलाए जाते हैं, लोग रहस्यमयी बीमारी को बताते हैं जिम्मेदार
- जिला प्रशासन का कोविड से ही सभी मौतों के होने से इनकार
कोरोना महामारी के इस दौर में जीवनदायिनी गंगा इस समय चर्चा में है। दरअसल गंगा के अलग अलग हिस्सों में शवों के मिलने का मामला सामने आ रहा है। हाल ही में जब बिहार के बक्सर के महादेवा घाट पर उतराते हुए शव मिले तो सवाल उठने लगा कि आखिर लाशें कहां से आ रही हैं। इन सबके बीच उन्नाव के दो घाटों बक्सर और रौतापुर का जिक्र करेंगे जहां कोरोना की दूसरी लहर से पहले महज 2 से 3 शव जलाए जाते थे। लेकिन अब उसकी संख्या में चार से पांच गुनी हो गई है। इसका अर्थ यह है कि हर दिन 10 से 15 शव या तो जलाए या गाड़े जा रहे हैं। हालात यह हो चुकी है घाटों पर दफन करने के लिए जगह की कमी पड़ गई है। इसके साथ ही कुछ शवों को इस तरह से दफनाया गया है जिसे कुत्ते कब्र से बाहर खींच उन्हें खाते हैं।
ऐसा मंजर कभी ना देखा
घाटों पर काम करने वालों का कहना है कि ज्यादातर लाशें हिंदू समाज की होती है इसके अलावा वो लोग जो लकड़ियों की कीमत अदा नहीं कर पाते वो अपने परिजनों के शवों को दफना देते हैं। इन घाटों पर शवों के मिलने पर जिला प्रशासन का कहना है कि ये दोनों घाट तीन जिलों फतेहपुर, रायबरेली और उन्नाव की सीमा पर हैं लिहाजा लाशों की संख्या अधिक है। हालांकि लोग जिला प्रशासन की इस दलील से इत्तेफाक नहीं रख रहे हैं। घाटों पर काम करने वाले का एक शख्स का कहना है कि कुछ लोगों के पास शवों को जलाने के लिए पैसे की कमी होती है लिहाजा वो दफना देते हैं।
रहस्यमयी बीमारी से सैकड़ों लोगों की मौत
उन्नाव के जिलाधिकारी का कहना है कि यह बात सत्य से परे हैं कि ज्यादातर लोगों की मौत कोरोना से हुई है। लेकिन इलाके के लोगों का कहना है कि किसी रहस्यमयी रोग की वजह से मौतें हो रही हैं। लोग बताते हैं कि इस तरह का मंजर अब तक की जिंदगी में उन्होंने नहीं देखा। गांवों में इस समय लोग सर्दी, खांसी और बीमार की परेशानी से जूझ रहे हैं। अस्पतालों में दवाई की किल्लत है इसके साथ ही सामान्य लोगों के अलग तरह का व्यवहार हो रहा है। इसके अलावा इलाके के लोग कहते हैं कि रहस्यमयी बीमारी से अब तक सैंकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है।