- बंगाल विधानसभा का कार्यकाल 30 मई को समाप्त हो रहा है
- चुनाव आयोग ने राज्य में तैयारियों की समीक्षा की
- टीएमसी ने बीएसएफ पर मतदाताओं को डराने धमकाने का आरोप लगाया, आयोग बोला कोई सबूत पेश करें
कोलकाता। बंगाल की राजनीति में इस समय सियासी पारा चढ़ा हुआ। यह बात अलग है कि अभी विधानसभा के लिए चुनावी तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। चुनावी तैयारियों की समीक्षा के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोरा ने दौरा किया था और वो मीडिया से रूबरू हो रहे थे। सुनील अरोरा ने कहा कि ज्यादातर दलों ने कहा कि चुनावों की निष्पक्षता के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती होनी चाहिए। आयोग का भी मत है कि चुनावों को पारदर्शी और बिना किसी डर से संपन्न कराने की चुनौती है।
बीएसएफ पर सवाल उठाना सही नहीं
सीईसी सुनील अरोड़ा ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक पार्टी ने बीएसएफ के बारे में औसत किया। मैंने ठोस उदाहरणों के लिए कहा है। वे (BSF) देश की बेहतरीन सुरक्षाबलों में एक हैं। किसी भी बल,विज्ञापन पर रोक लगाने का कोई मतलब नहीं है। बंगाल के ज्यादातर दलों ने कहा कि जिस तरह से राजनीतिक वातावरण बना हुआ है उसमें आयोग की जिम्मेदारी बढ़ जाती है और वैसी सूरत में सभी पक्षों को विश्वास दिलाने की जिम्मेदारी आयोग की है। अब सवाल यह है कि मुख्य चुनाव आयुक्त जब इस तरह की बात कर रहे हैं तो उसके पीछे आधार क्या है।
टीएमसी ने उठाए हैं सवाल
चुनाव आयोग से मुलाकात के दौरान टीएमसी ने कहा कि सीमावर्ती इलाकों में बीएसएफ एक खास पार्टी को मत देने के लिए दबाव बना रही है। हालांकि बीएसएफ की तरफ से इस पर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं आई है। टीएमसी का कहना है कि यह खतरनाक स्थिति है और इस विषय पर चुनाव आयोग को गौर करना चाहिए। टीएमसी के महासचिव पार्थ चटर्जी ने आरोप लगाते हुए कहा कि बीएसएफ स्थानीय लोगों से कह रही है कि उन लोगों के अलावा साल भर और कोई दूसरा नहीं रहेगा। यह बात अलग है कि टीएमसी के आरोपों पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि बीएसएफ सिर्फ सीमाओं की रक्षा कर रही है उस विशेष बल पर किसी तरह का सवाल उठाना सही नहीं है।