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Operation Ganga Story: ‘ऑपरेशन गंगा’ - एक जटिल मानवीय ऑपरेशन की दास्तान

Updated Apr 23, 2022 | 09:28 IST

रूस यूक्रेन लड़ाई के बीच हजारों की संख्या में भारतीय छात्रों को स्वदेश लाया गया। भारत सरकार ने इसे ऑपरेशन गंगा का नाम दिया। विपक्ष ने सरकार की कोशिशों को नाकाफी बताया था जिसे सरकार ने आंकड़ों और परिस्थितियों के आधार विपक्ष के आरोपों को गलत साबित कर दिया।

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Operation Ganga Story: ‘ऑपरेशन गंगा’ - एक जटिल मानवीय ऑपरेशन की दास्तान

हाल ही में सकुशल समाप्त हुए ऑपरेशन गंगा को भविष्य में एक ऐसी घटना के रुप में देखा जायेगा जिसमे हमारी सरकार ने मानवीय, जनतांत्रिक, कूटनीतिक और साहस के सभी पैमानों पर खरा उतरते  हुए न केवल देश के 22500 नागरिकों को बल्कि 18 अन्य देशों के 147 नागरिकों को भी बरसती मिसाइलों के बीच से सुरक्षित निकाल कर एक नया इतिहास रच दिया। यह सफलता ऐसी थी कि अपनी सरकार की उपलब्धियों पर बहुत ज्यादा कुछ नहीं कहने वाले प्रधान मंत्री ने यहाँ तक कहा कि ऑपरेशन गंगा पर एक फिल्म बननी चाहिए। उन्होंने कहा की जिस तरह से इतनी बड़ी चुनौती से इतने अच्छे ढंग से निपटा गया उसको आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने के लिए एक केस-स्टडी के रूप में प्रलेखित किया जाना चाहिए।

अब तक 30 अभियान
ऐसा नहीं है की इस तरह का रेस्क्यू ऑपरेशन पहली बार हुआ हो। 1999 के कुवैत एयर लिफ्ट रेस्क्यू मिशन, 1996 के अरब देशों से किये गए एमनेस्टी मिशन, 2006 के लेबनान में फंसे भारतीयों को निकलने के 'ऑपरेशन सुकून', 2011 में मिस्र और लीबिया से भारतीयों की सुरक्षित वापसी का अभियान, 2015 में सुषमा स्वराज जी के नेतृत्व में यमन में चलाया गया अत्यंत सफल 'ऑपरेशन राहत', 2016 में सूडान से 'ऑपरेशन संकट मोचन', 2020 में कोविड के दौर में पहने लोगो के लिए विश्व-व्यापी 'वन्दे भारत' अभियान, अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों के लिए 2021 में ऑपरेशन 'देवी शक्ति' आदि लगभग 30 अभियान अभी तक हुए हैं।

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फिर ऐसा क्या था ऑपरेशन गंगा में प्रधान मंत्री को इस पर फिल्म तक बनाने को कहना पड़ा?
क्योंकि यह ऑपरेशन पहले के अन्य मिशनों की तुलना में अत्यंत जटिल था। यूक्रेन से भारतीय छात्रों को लाना आसान नहीं था। चारों तरफ, बम और मिसाइल बरस रहे थे, सैकड़ों छात्र बर्फ़ पिघलाकर प्यास बुझाने को मजबूर और भोजन की कमी झेल रहे थे। युद्धरत यूक्रेन के ऊपर नो-फ्लाई जोन बना हुआ था। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भारत ने जिस तरह से न केवल अपने 22500 नागरिकों को सुरक्षित निकला बल्कि अनेक अन्य देशों जिसमे अपने पडोसी देशो के अलावा अमरीका, कनाडा और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों के नागरिकों का प्रत्यावर्तन भी किया। ऐसा किसी और देश का उदाहरण नहीं होगा जिसने इतनी गंभीरता से अपने नागरिकों को वापस लाने का काम किया। अन्य देश तो बाद में सक्रिय हुए। चीन की पहली उड़ान पांच मार्च को चली, अमेरिका ने बोल दिया कि आप खुद निकल आइए हम आपकी मदद नहीं कर सकते। न केवल हमने अपने नागरिकों को सुरक्षित निकला बल्कि युद्धरत यूक्रेन को 90 टन से अधिक राहत सामग्री भी भेजी। ये न केवल भारत की भावना बल्कि उसके मूल्यों का भी प्रदर्शित करता है। प्रधानमंत्री ने सही ही कहा, हम जहां भी रहते हैं, हम भारतीय वसुधैव कुटुम्बकम के अपने सदियों पुराने दर्शन से प्रेरित होकर मानवता के प्रति अपने मूल्यों और प्रतिबद्धता को कभी नहीं भूलते।

सभी संस्थाएं एक साथ हुईं सक्रिय
ऐसा पहली बार हुआ कि देश का पूरा शासन तंत्र - राजनीतिक, कूटनीतिक, रक्षा, प्रशासनिक और अनेकानेक स्वयंसेवी संस्थाएं एक साथ सक्रिय हुए और देश के प्रधानमंत्री एक अभिभावक की तरह देश के सभी बच्चों को सकुशल स्वदेश वापस लाने में प्राणपण से जुट गए। संयुक्त एवं अथक प्रयासों से यह इवैक्युएशन संभव हुआ। विदेश मंत्री ने तो विश्राम तक नहीं किया, चौबीसों घंटें इस पर निगरानी रखी। प्रधानमंत्री कार्यालय, विदेश मंत्रालय और अन्य अधिकारियों ने दिन-रात मेहनत की। यह देखना सुखद था की देश का पूरा सरकारी तंत्र जिसमे न केवल विदेश और रक्षा मंत्रालय बल्कि लगभग सभी राज्यों और शहरों के प्रशासनिक अधिकारी, विमानन कम्पनियाँ, स्वयंसेवी संस्थाएं मिशन-मोड में युद्धक्षेत्र में फंसे भारतीय नागरिकों को सकुशल निकालने में लग गए। इतना ही नहीं, यूक्रेन और उसके नज़दीकी देशों - पोलैंड, हंगरी, रोमानिया, स्लोवाकिया और जर्मनी जैसे देशों में रह रह प्रवासी भारतीयों ने भी आगे बढ़ कर इस अभियान में अपना योगदान दिया। और यह देश की बढ़ती साख और प्रभाव का ही असर था कि पोलैंड जैसे देशों ने बिना वीसा और कागजों के भारतीयों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए।

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जब पूरा देश उठ खड़ा हुआ
इतिहास में ऐसे दुर्लभ क्षण बहुत कम देखने को मिलते हैं जब चलते युद्ध के बीच हज़ारों नागरिकों को सुदूर देश से निकलने में पूरा देश जुट गया हो।
ऐसा भी सिर्फ भारत ने ही दिखाया जहाँ न केवल चार मंत्री स्वयं रेस्क्यू अभियान का नेतृत्व करने युद्ध क्षेत्र के नज़दीक पहुँच गए हों वही बड़े छोटे जिलों के डीएम युद्धक्षेत्र में फंसे छात्रों के परिवार जनों को ढाढस बंधा रहे हों। जहाँ विदेश मंत्री अपनी नींद और आराम की परवाह करे बगैर 24 घंटे अभियान का संचालन कर रहे हों और देश का मुखिया युद्धरत प्रतिद्वंदियों और अनेक देशों के राष्ट्राध्यक्षों से 11 बार बात करता हो,4 दिन में 9 उच्च स्तरीय बैठकें करता हो, सिर्फ ये सुनिश्चित करने के लिए की देश का एक एक नागरिक सुरक्षित घर वापस आ जाये।

आज पूरे देश में विश्वास खड़ा हुआ है कि किसी भी संकट के समय में भारत सरकार और भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री जी हमें संकट से निकालेंगे। यह है 'ऑपरेशन गंगा' का प्रभाव जो इसको अन्य मिशनों से अलग बनाता है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने अपने इस मिशन से राजनीति और राष्‍ट्रनिती साथ-साथ चल रहे हैं इसकी मिसाल ही पेश की है। देश का नेतृत्‍व करने वाले नेता के पास निश्चिय शक्ति और निर्णय शक्ति कोई भी मंजील पार करने की क्षमता रखती है।तेजी से बदलती हुई वैश्विक परिस्थितियां, बदलता हुआ ग्‍लोबल ऑडेर, कोरोना की बिमारी से बाहर निकलने वाला संक्रमण और ऐसे सभी चैलेंजेस को स्विकारते हुए आजादी के 75 साल पूरे होने वाले इस वर्ष ने 30 लाख करोड़ रूपये से ज्‍यादा उतपदों पर निमार्ण का टारगेट पूरा किया है। 180 करोड़ से ज्‍यादा वेक्‍सीन डोज देने वाला देश के रूप में विश्‍व में भारत की चर्चा हो रही है। घरेलू तरक्‍की व प्रगति के मापदंड़ों में नये-नये उछाल प्रस्‍थापित करने वाला देश विश्‍व में भी अपनी नई प्रतिभा, नया तेवर लेकर जो कीर्तिमान स्‍थापित कर रहा है उसमें ऑपरेशन गंगा अभियान ने हमारा माथा बहुत ऊंचा किया है इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती


(श्‍याम जाजू,निवर्तमान राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष,भारतीय जनता पार्टी)

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