- देश में 15 जुलाई को धान का रकबा 12.85 मिलियन हेक्टेअर था। जबकि 2021 में यह इसी अवधि में 15.55 मिलियन हेक्टेअर था।
- एक जुलाई को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 285.10 लाख टन था जो 275.80 लाख टन के बफर मानक के करीब है।
- यूपी, बिहार, छत्तीगढ़, बंगाल सभी राज्यों में कम बारिश का असर धान के रकबे पर पड़ा है।
Paddy Production: अभी दो महीने पर सरकार को घरेलू बाजार में कमी को देखते हुए निर्यात पर रोक लगानी पड़ी थी। और अब देश के धान पैदा करने वाले कई इलाकों में कम बारिश ने नए खतरे का संकेत दे दिया है। क्योंकि धान पैदा करने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में सामान्य से कम बारिश के कारण धान के रकबे में कमी आ गई है। और मानसून ने रफ्तार नहीं पकड़ी तो इसका असर चावल के उत्पादन पर दिख सकता है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़े इस बात की तसदीक कर रहे हैं। मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 15 जुलाई 2022 तक देश में धान का रकबा 17.4 फीसदी कम हो गया है।
मानसून और रकबे का क्या है कनेक्शन
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 15 जुलाई तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 77.5 मिलीमीटर बारिश हुई है जो कि सामान्य बारिश की तुलना में करीब 58.88 फीसदी कम है। इसी तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश 68.30 फीसदी कम बारिश हुई है। इसका असर धान के रकबे पर साफ तौर पर दिखा है। और रकबे में करीब 23.8 फीसदी की कमी आई है। ऐसे ही बिहार में 42 फीसदी कम बारिश हुई है और इस कारण धान का रकबा 45 फीसदी के करीब कम हुआ है। इसी तरह छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में भी धान का रकबा कम हुआ है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में 15 जुलाई को धान का रकबा 12.85 मिलियन हेक्टेअर था। जबकि 2021 में यह इसी अवधि में 15.55 मिलियन हेक्टेअर था। साफ है कम बारिश का असर धान के रकबे पर दिख रहा है। और अगर जल्द बारिश नहीं होती है तो असर धान के कम उत्पादन के रूप में दिख सकता है।
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केंद्रीय पूल में क्या है स्थिति
जहां तक केंद्रीय पूल में खाद्यान्न भंडार की बात है तो स्थिति नियंत्रण में है। खासतौर से गेहूं की तुलना में चावल के भंडार के मामले में स्थिति संतोषजनक है। केंद्रीय पूल में 1 जुलाई को चावल का स्टॉक 317.07 लाख टन था और unmilled धान 231.51 लाख टन था। जो कि चावल के लिए जुलाई में तय 135.40 लाख टन बफर स्टॉक से कहीं ज्यादा है। हालांकि ऐसी स्थिति गेहूं के मामले में नहीं है। एक जुलाई को केंद्रीय पूल में गेहूं का स्टॉक 285.10 लाख टन था जो 275.80 लाख टन के बफर मानक के करीब है। साफ है कि अगर कम बारिश के कारण धान के कम रकबे की वजह से उत्पादन थोड़ी कमी आती है, तो भी स्थिति नियंत्रण में रहेगी।
धान के लिए ये समय बेहद अहम
असल में किसान धान की खेती में किसान मानसून की शुरूआत में धान को नर्सरी में बुआई करते हैं और उसके बाद जून के अंतिम सप्ताह से 15 जुलाई तक का समय धान की रिप्लांटिंग के लिए सबसे अहम होता है। ऐसे में जब 15 जुलाई तक अधिकांश धान की खेती वाले राज्यों मेंं बारिश कम हुई है तो उसका असर रिप्लांटिंग पर दिखेगा। इसलिए जुलाई का ये हफ्ता धान के रकबे के लिए बेहद अहम है।