नई दिल्ली : देश और दुनिया में गहराते कोरोना संकट के बीच पिछले दिनों पत्रकारिता के क्षेत्र में अहम पुलित्जर पुरस्कार की घोषणा की गई थी। तीन भारतीय फोटो पत्रकारों- चन्नी आनंद, मुख्तार खान और डार यासिन को फीचर फोटोग्राफी श्रेणी में 2020 का पुलित्जर पुरस्कार दिया गया। यूं तो पत्रकारिता के क्षेत्र में यह पुरस्कार काफी अहम होता है और इसे बेहद प्रतिष्ठित माना जाता है, लेकिन इस बार कुछ ऐसा हुआ है कि लोगों को यह समझ पाने में भी मुश्किल है कि वास्तव में इसे देश की उपलब्धि माना जाए या नहीं।
क्यों हुआ विवाद?
एसोसिएट प्रेस से संबद्ध इन भारतीय फोटो पत्रकारों को कश्मीर में 5 अगस्त, 2019 को संविधान के अनुच्छेद 370 के अहम प्रावधानों को हटाने के बाद लागू बंद की स्थिति में जीवन को दर्शाने वाली तस्वीरों को लेकर दिया गया। लेकिन उसके बाद से इसे लेकर जो विवाद पैदा हुआ, वह अब भी बरकरार है। बीजेपी और कांग्रेस में इसे लेकर सियासी जंग छिड़ी तो विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी 100 से ज्यादा हस्तियों ने पुलित्जर बोर्ड के नाम एक खुला पत्र लिखकर कहा कि जूरी इन तस्वीरों को पुरस्कृत कर झूठ, तथ्यों की गलत व्याख्या और अलगाववाद की पत्रकारिता को बढ़ावा दे रही है।
राष्ट्रपति ट्रंप भी खफा
भारत ही नहीं, अमेरिका में भी इसे लेकर कोहराम मचा हुआ है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पुरस्कार पाने वालों को 'चोर' तक कह डाला और यह भी कहा कि उन्हें 'पुरस्कार लौटाने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए, क्योंकि वे सभी गलत थे।' ट्रंप की नाराजगी रूसी जांच कवरेज के लिए पुलित्जर पुरस्कार जीतने वालों से रही। उन्होंने इस संबंध में रिपोर्ट्स को फर्जी करार देते हुए दावा किया कि अब 'दस्तावेज सामने आ रहे हैं, जो कह रहे हैं कि रूस के साथ किसी तरह की मिलीभगत नहीं थी।' उन्होंने यह भी कहा कि पुलित्जर समिति या जो कोई भी ये पुरस्कार देता है, उनके लिए शर्म की बात है।
क्यों उठ रहे सवाल?
पुलित्जर अवॉर्ड को लेकर कुछ इसी तरह की नाराजगी भारत में भी है। सवाल पत्रकारों से ज्यादा पुरस्कार देने वाली कमेटी पर उठ रहे हैं। विवाद उस नैरेटिव को लेकर है, जिसे इन तस्वीरों के जरिये भारत और कश्मीर को लेकर गढ़ने की कोशिश की गई है। सवाल कश्मीर में सेना और सुरक्षा बलों की एकतरफा छवि पेश करने को लेकर उठ रहे हैं। तस्वीरों के कैप्शन ही नहीं, पुलित्जर कमेटी की ओर से इन पत्रकारों को दिए प्रशस्ति-पत्र में लिखे शब्दों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, जिसमें कहा गया है, 'विवादित क्षेत्र कश्मीर में जिंदगी की असाधारण तस्वीरों के लिए, जब भारत ने संचार व्यवस्था ठप करते हुए उसकी स्वतंत्रता को समाप्त कर दिया।'
एकतरफा छवि
पुलित्जर कमेटी के इन शब्दों से साफ है कि कुल मिलाकर यह नैरेटिव सेट करने का प्रयास किया गया कि कश्मीर में सेना व सुरक्षा बल लोगों का दमन कर रहे हैं। इसमें कहीं इसका जिक्र नहीं किया गया कि आतंकियों के कारण सुरक्षा बलों, उनके परिवारों और स्थानीय लोगों को क्या कुछ झेलना पड़ता है। कश्मीर को 'विवादित क्षेत्र' बताना जाहिर तौर पर भारत की अखंडता व संप्रभुता पर चोट है तो 'स्वतंत्रता समाप्त कर देने' जैसी बात से भी जाहिर होता है कि किस तरह भारत के खिलाफ एक गलत छवि गढ़ने की कोशिश की गई, जिसने कश्मीर को हमेशा अपना अभिन्न व अखंड अंग बताया।
क्या है पुलित्जर पुरस्कार?
पत्रकारिता के क्षेत्र में पुलित्जर पुरस्कार बेहद प्रतिष्ठित माना जाता है, जिसकी शुरुआत 1917 में हुई थी। हर साल यह समाचार पत्रों, साहित्य एवं संगीत के क्षेत्र में कार्य करने वालों को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए दिया जाता है। अमेरिका के प्रमुख पुरस्कारों में से एक पुलित्जर अवॉर्ड 21 श्रेणियों में दिया जाता है। निश्चित रूप से इसे एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जाता रहा है, जिसका मुख्य मकसद उक्त क्षेत्रों में कार्यरत लोगों का मनोबल बढ़ाना है, लेकिन इस बार कश्मीर की जिन तस्वीरों के लिए यह पुरस्कार दिया गया है, उससे जाहिर तौर पर इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं।
(डिस्क्लेमर:प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।)