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Sedition law : क्या है राजद्रोह कानून, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कही इसे खत्म करने की बात

What is Sedition Law and Why the Supreme Court Called it to repeal
Updated Jul 16, 2021 | 12:45 IST

राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सवाल खड़े किए। शीर्ष अदालत ने इस कानून को अंग्रेजों के समय का बताते हुए सरकार से इसे खत्म करने की मांग की। कोर्ट ने सरकार को नोटिस भी जारी किया है।

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What is Sedition Law and Why the Supreme Court Called it to repealWhat is Sedition Law and Why the Supreme Court Called it to repeal
तस्वीर साभार:&nbspPTI
क्या है राजद्रोह कानून (124 ए)।
मुख्य बातें
  • राजद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी किया है
  • सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि अंग्रेजों के समय के कानून को खत्म किया जाए
  • महात्मा गांधी जैसे लोगों की आवाज दबाने के लिए इस कानून का हुआ इस्तेमाल

नई दिल्ली : अंग्रेजों के समय के औपनिवेशिक कानून राजद्रोह के 'लगातार दुरुपयोग' पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार को केंद्र सरकार से पूछा कि महात्मा गांधी जैसे लोगों की आवाज दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार को ओर से लाए गए इस कानून को वह खत्म क्यों नहीं कर रही है। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने इस 'कानून के दुरुपयोग' पर चिंता जताते हुए सरकार को नोटिस जारी किया। भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है।    

क्या है राजद्रोह कानून (What is sedition Law)
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए में राजद्रोह को परिभाषित किया गया हैष इस कानून को थॉमस बैबिंग्टन मैकाउले ने तैयार किया था और इसे आईपीसी में साल 1870 में शामिल किया गया। 

क्या कहती है धारा 124ए 
राजद्रोह को परिभाषित करते हुए यह धारा कहती है, 'जो कोई भी शब्दों, मौखिक अथवा लिखित, अथवा ऐसी सामग्री प्रदर्शित करता है अथवा  राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इस मामले में उसे तीन साल से लेकर आजीवन कारावास तक हो सकती है और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।'

राजद्रोह केस में क्या है सजा
राजद्रोह एक गैर जमानती अपराध है। इसके तहत तीन साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है। दोषी व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। राजद्रोह केस का सामना करने वाला व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए अयोग्य हो जाता है। उसे अपना पासपोर्ट सौंपना होता है और जरूरत होने पर उसे कोर्ट के समक्ष पेश होना होता है। 

मेजर जनरल ने दी है राजद्रोह केस को चुनौती
रिटायर्ट मेजर जनरल एसजी वोमबात्केरे ने राजद्रोह कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने कहा है कि यह कानून पूरी तरह से असंवैधानिक है इसलिए इसे खत्म किया जाना चाहिए। सेना के पूर्व अधिकारी की दलील है कि यह कानून अभिवय्क्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाता है।    

देश में कई लोगों पर दर्ज है राजद्रोह का केस
सरकार ने 124ए के तहत कई लोगों पर कार्रवाई की है।  'टूलकिट' मामले में दिल्ली पुलिस ने 13 फरवरी 2020 को पर्यावरणविद दिशा रवि को गिरफ्तार किया। इसके पहले दिल्ली पुलिस ने लाल किला हिंसा मामले में दीप सिद्धू, लखा सिधाना सहित कई लोगों के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज किया। असम के किसान नेता एवं एक्टिविस्ट अखिल गोगोई और केरल के पत्रकार सिद्दिकी कप्पन के किलाफ भी राजद्रोह का केस दर्ज है। 

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