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जब इस्लाम में नमाज अनिवार्य नहीं तो हिजाब कैसे जरूरी, सुप्रीम कोर्ट ने किया खास सवाल

Updated Sep 09, 2022 | 09:09 IST

हिजाब मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप ही कह रहे हैं इस्लाम के पंच सिद्धांतों को मानना बाध्यकारी नहीं है तो आप बताएं कि स्कूलों या कॉलेज में हिजाब पहन कर जाने के लिए क्यों कहना चाहिए।

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हिजाब मामले में अब 12 सितंबर को सुनवाई
मुख्य बातें
  • हिजाब मामले में दलील और जिरह का दौर
  • 12 सितंबर को अगली सुनवाई
  • जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच कर रही है सुनवाई

हिजाब मामले में अब सोमवार यानी 12 सितंबर को सुनवाई होगी। लेकिन उससे पहले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जबरदस्त जिरह हुई। एक याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि इस्लाम के पांच मूल सिद्धांत हैं, नमाज, हज, रोजा, जकात और ईमान। इन पांचों सिद्धांतों का पालन करने की अनिवार्यता नहीं है। याचिकाकर्ता के वकील निजामुद्दीन पाशा की दलील पर अदालत ने पूछा कि जब अनिवार्यता नहीं है तो आप हिजाब के अनिवार्यता की बात क्यों कर रहे हैं। वकील ने कहा कि अगर कोई इन सिद्धांतों पर अमल नहीं करता है तो उसे सजा नहीं मिलती है। 

सुप्रीम कोर्ट मे ंदलीलें पेश
वकील की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सजा के अभाव की वजह से पांच सिद्धांतों का पालन करना बाध्यकारी नहीं है तो सवाल वाजिब है कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने की जरूरक क्या है। अदालत की इस टिप्पणी पर याचिकाकर्ता के वकील पाशा ने कहा कि बाध्यकारी नहीं होने का मतलब यह नहीं है कि पंच सिद्धांतों को मानना जरूरी नहीं है। उन्होंने सिख समाज के छात्रों द्वारा पगड़ी पहन कर स्कूल या कॉलेज में जाने की दलील पेश की। इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिख धर्म में पंच ककार अनिवार्य है और उस समाज से जुड़े लोग पालन करते हैं। जहां तक कृपाण की बात है उसके बारे में संविधान में भी जिक्र है।

कर्नाटक से शुरू हुआ था विवाद
इससे पहले अदालत के सामने नथुनी, झुमका और जनेऊ का जिक्र किया गया तो कोर्ट ने साफ किया कि विद्वान वकील को अतार्रिक दलीलों को देने से बचना चाहिए। आप अपने तर्कों को अच्छे तरह से पेश कर सकते हैं। बता दें कि कर्नाटक सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर बैन लगा दिया था। लेकिन उडुप्पी में ऐशत शिफा नाम की छात्रा हिजा पहन कर कॉलेज पहुंची थी और कॉलेज ने उसे वापस भेज दिया था। इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई हुई और फैसला सरकार के पक्ष में आया था। 

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