'न्यूज की पाठशाला' में MSP की सियासी परिभाषा बताई गई। किसानों के फायदे-नुकसान का पूरा गणित समझाया गया। पाठशाला में राकेश टिकैत का सरप्राइज टेस्ट हुआ।
सबसे पहले पॉलिटिकल साइंस की क्लास, जिसमें बताया गया कि जब किसान आंदोलन शुरू हुआ था तो कहा गया था कि इसका राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन 9 महीने बाद पूरा आंदोलन ही राजनैतिक दिख रहा है। मुजफ्फरनगर की महापंचायत से तो ये बिल्कुल साफ हो गया कि यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं और इस तरह की महापंचायत से सियासी माहौल बनाया जा रहा है। यूपी चुनाव से ठीक पहले किसान आंदोलन को फिर से हवा दी जा रही है। वोट से चोट करने की बात की जा रही है, इसीलिए सवाल है कि इसे महापंचायत कहें या इलेक्शन मीटिंग कहें?
महापंचायत के कर्ताधर्ताओं का दावा है कि मुजफ्फरनगर में लाखों लोग आए थे। भीड़ की तस्वीरें दिखाकर सोशल मीडिया पर इनके समर्थक खुश हैं। इनके समर्थकों को अब कोरोना का खतरा नहीं दिख रहा है। ऐसे लोगों को अब भीड़ अच्छी लग रही है। राकेश टिकैत ने खुद क्या कहा है कि भीड़तंत्र ही लोकतंत्र में सबसे बड़ा हथियार है, कोरोना से ज्यादा खतरनाक है सरकार के कानून, कोरोना एक बार मारेगा ये तिल- तिल मारेंगे।
यानी कोरोना से जानें चली जाएं, इन्हें फर्क नहीं पड़ता। मुजफ्फरनगर में जुटी भीड़ इन्हें अच्छी लगती है। किसी ने कहा कि 5 लाख लोग आए थे, किसी ने लिखा कि 10 लाख लोग आए थे, राकेश टिकैत ने कह दिया कि 20 लाख लोग आए थे। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के 20 लाख किसानों ने मुजफ्फरनगर पहुंच कर तानाशाह सरकार को एक बार फिर सर्टिफिकेट दे दिया जिन्हें वह मुठ्ठी भर किसान कहती है वह पूरे देश के किसान हैं। मुजफ्फरनगर का जीआईसी ग्राउंड 45,000 से 50,000 की कैपिसिटी है, लेकिन लाखों लोगों के आने का दावा किया गया।