'न्यूज की पाठशाला' में बंगाल में वोट न मिलने पर दर्द देने वालों की क्लास लगी। इसमें बताया कि बंगाल हिंसा पर बड़े फैसले की वो बातें जो आप तक नहीं पहुंची। बंगाल हिंसा पर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला आया। रेप-हत्या के मामलों की जांच CBI करेगी। दूसरी सभी मामलों की जांच SIT करेगी। सीबीआई, एसआईटी जांच कोर्ट की निगरानी में होगी। 6 हफ्ते के अंदर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल होगी।
समझना होगा कि सीबीआई जांच के लिए कोर्ट मजबूर क्यों हुई? रेप और मर्डर जैसे भयानक अपराधों की जांच स्वतंत्र एजेंसी से होनी चाहिए। जिसके लिए सीबीआई ही उचित है। इसकी वजह ये है कि ऐसे बहुत सारे मामले हैं, जिनमें राज्य सरकार ने एफआईआर दर्ज नहीं की। कुछ मामलों में एफआईआर दर्ज हुई तो सरकार का ऑब्जर्वेशन था कि कोई नतीजा नहीं निकलेगा, कोई केस नहीं बनेगा। इस तरह के हालात में स्वतंत्र एजेंसी से जांच से सभी लोगों का भरोसा बढ़ेगा। पुलिस पर आरोप लगे थे कि शुरुआत में केस दर्ज नहीं किए और कुछ केस तब दर्ज किए, जब कोर्ट ने दखल दिया। जो सबूत कोर्ट में रखे गए, उनके हिसाब से ये आरोप सही पाए गए। कई एफआईआर राज्य सरकार ने संज्ञान लेकर तब दर्ज की गई, जब कोर्ट ने दखल दिया।
NHRC रिपोर्ट की 4 बड़ी बातें थीं
बंगाल चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों की CBI जांच होनी चाहिए
पीड़ितों की दुर्दशा पर राज्य की सरकार ने भयानक उदासीनता दिखाई है
दूसरी पार्टी को समर्थन देने वालों को सबक सिखाने के लिए हिंसा हुई
राज्य सरकार के कुछ अधिकारी हिंसा की इन घटनाओं शामिल रहे
NHRC की रिपोर्ट में क्या था?
23 जिलों में हिंसा की 1979 शिकायतें
कूच बिहार- 322
बीरभूम- 314
कोलकाता- 172
उत्तरी 24 परगना- 196
दक्षिणी 24 परगना- 203
बर्धमान- 113
नहीं चली सरकार की दलील
बंगाल सरकार ने दलीलें दी थीं कि उस वक्त चुनाव आचार संहिता लगी थी। पूरी पुलिस फोर्स चुनाव आयोग के कंट्रोल, सुपरविजन में थी। 3 मई तक चुनाव आचार संहिता लागू थी। इसलिए किसी भी हिंसा पर चुनाव आयोग की जिम्मेदारी बनती है। इस पर कोर्ट के ऑर्डर में क्या कहा गया? पुलिस प्रशासन निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनावी प्रक्रिया में आयोग के कंट्रोल में रहता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पुलिस कानून-व्यवस्था को नियंत्रण में रखने की सामान्य जिम्मेदारी निभाना रोक दे। ये विरोधाभासी दलील है क्योंकि सरकार ने ये दावा किया कि चुनाव के बाद हिंसा पर 3 मई तक कई एफआईआर दर्ज की गई। और दूसरी तरफ ये भी कहा कि उसे दूसरे अपराधों को भी देखना है, क्योंकि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी उसकी है। चुनाव आयोग की नहीं है। राज्य सरकार एक ही सांस में दो तरह की बातें नहीं कर सकती। राज्य सरकार ने ऐसी कोई बात रिकॉर्ड में नहीं रखी कि सामान्य कानून व्यवस्था और अपराधिक मामले भी
चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। राज्य सरकार के संवैधानिक दायित्व चुनावी प्रक्रिया में चुनाव आयोग के सामने खत्म नहीं हो जाते।