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हिंदुस्तान को निजता कितनी प्यारी? प्राइवेसी होना क्यों जरूरी है? देखिये Opinion India Ka

Updated Oct 27, 2021 | 23:56 IST

पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच की घोषणा की है। आखिर ये जांच किस तरह की होगी? भारत में अपनी निजता को लेकर लोग कितने जागरूक हैं? विदेशों में कैसी है स्थिति? देखिये Opinion India Ka

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पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच का ऐलान कर दिया है। ये जांच कैसी होगी? जांच कौन करेगा? ऐसे कई मुद्दे हैं, जिसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। पेगासस खुलासे ने इस साल जून-जुलाई में राजनीतिक रूप से बहुत हंगामा मचाया था। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सरकार के इशारे पर पेगासस स्पाइवेयर से राजनेताओं, पत्रकारों, कारोबारियों और कई महत्वपूर्ण लोगों की जासूसी हुई। सरकार ने इनकार किया, लेकिन संसद में बहस नहीं हुई। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जिस पर आज कोर्ट ने यह आदेश दिया। 

पेगासस मामला उस दौर में उभरा, जब सूचना तकनीक का जोर है। सोशल मीडिया का दौर है। और निजता की बातें भले खूब हों, लेकिन 90 फीसदी लोगों की निजता बड़ी कंपनियों के यहां बंधक है। जहां तक पॉलिटिकल स्नूपिंग का सवाल है तो यह मसला आज का नहीं है। 1962 में नेहरू कैबिनेट के पावरफुल मंत्री टीटी कृष्णामाचारी ने फोन टैपिंग का आरोप लगाया। उस वक्त रफी अहमद किदवई ने आरोप लगाया कि सरदार पटेल के कहने पर उनका फोन टैप हुआ। इंदिरा गांधी पर अपने ही गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह के खिलाफ जासूसी की बात आईबी के डायरेक्टर रहे एमके धर की किताब में है।

वर्ष 1990 में चंद्रशेखर ने तत्कालीन पीएम वीपी सिंह पर उनका फोन टैप करने का आरोप लगाते हुए जनता दल छोड़ी और मजे की बात ये कि कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई तो 2 मार्च, 1991 को हरियाणा पुलिस के सिपाही राजीव गांधी के निवास 10 जनपथ के बाहर जासूसी के आरोप में गिरफ्तार हुए। कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इससे पहले 1988 में कर्नाटक के सीएम रामकृष्ण हेगड़े को फोन टैपिंग के मामले में इस्तीफा तक देना पड़ा था।

टाटा और नीरा राडिया टेप कांड भी हाल के साल में सुर्खियों में रहा। फिलहाल, पेगासस मामला गर्म है। और कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू होना ही था, सो हो गया। अब सवाल है : 

पेगासस में SC का जांच का फैसला सरकार के लिए झटका है और उसकी नीयत पर सवाल खड़े करता है? जानिये इस पर लोगों की प्रतिक्रिया किस तरह की रही?

हां-56%
नहीं-36%
कह नहीं सकते-03%
सच सामने आए-5%

निजता के अधिकार का ये हाल हमारे देश में हैं। लेकिन विदेशों में प्राइवेसी बहुत बड़ा फेनोमिना है। दूसरे देश इसे लेकर बहुत गंभीर हैं। आज से नहीं बल्कि सदियों से। दुनिया में गोपनीयता को लेकर जनवरी 2021 तक 133 कानून बन चुके हैं। सख्त कानून। 60 कानून तो पिछले 10 सालों में ही बनाए गए हैं। इस मामले में सबसे सख्त कानून है यूरोप का, जिसका नाम जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन है। शॉर्ट में इसे GDPR कहते हैं।

यूरोप में डेटा चोरी पर भारी भरकम जुर्माना लगाया जाता है। अमेजन कंपनी ने ग्राहकों के डेटा में हेरफेरी कर मुनाफा कमाने की कोशिश की तो उसपर 900 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगा दिया गया। अगर कोई कंपनी GDPR कानूनों को तोड़ती है तो तो कंपनी के वैश्विक सालाना कारोबार का 4% या 23 मिलियन डॉलर, इनमें से जो भी ज्यादा होगा उतना का जुर्माना वसूला जाता है।

अब सवाल है कि दुनिया के बड़े देश प्राइवेसी को लेकर इतने गंभीर और सख्त क्यों हैं? जवाब साफ है, क्‍योंकि वे इसकी अहम‍ियत समझते हैं। पर अफसोस कि देश निजता का महत्व तो समझता है, लेकिन अब तक इस बाबत कोई ठोस कानूनी कदम नहीं उठाया जा सका है। आखिर प्राइवेसी होना क्यों जरूरी है? इससे किसी देश या नागरिक को क्या फायदे होते हैं? इसका जवाब है : 

लोगों को सरकार की जासूसी से बचाती है
व्यक्तिगत डेटा का इस्तेमाल करने से रोकती है
डेटा चोरी करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाता है
सामाजिक सीमाओं को बनाए रखने में मदद करती है
लोगों का विश्वास बनाने में मदद करती है
सुनिश्चित करती है कि हमारे डेटा पर हमारा नियंत्रण है
भाषण और विचार की स्वतंत्रता की रक्षा करती है
आपको राजनीति में स्वतंत्र रूप से शामिल होने देती है
आपके सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा करती है
धन या संपत्ति की रक्षा करने में मदद करती हैं

तो प्राइवेसी तो जरूरी है। लेकिन देश और यहां की सरकारें इसे बचाने को लेकर कुछ भी करती नजर नहीं आ रही हैं। खासकर जब इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस दौर में लोगों की प्राइवेसी और उससे जुड़े डेटा पर सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा है। सवाल यही है कि देश में सरकारों को हमारी और आपकी प्राइवेसी की कितनी चिंता है? खासकर हम इसे लेकर कितने गंभीर हैं? क्‍या इस दिशा में सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है?

इंटरनेट के इस दौर में सोशल मीडिया यूजर्स की प्राइवेसी सबसे ज्यादा निशाने पर रहती है। सवाल ये है कि आखिर देश की पब्लिक इसको लेकर कितनी जागरूक है। उसे अपनी निजता की कितनी चिंता है? इस बारे में पब्लिक का ओपिनियन क्‍या है, इसे कुछ यूं समझा जा सकता है: 

क्या निजता के अधिकार को लेकर भारतीय सबसे कम जागरुक और संवेदनशील हैं?
हां-71%
नहीं-15%
निजता मुद्दा ही नहीं-14%

तो ना तो भारत के लोग और ना ही यहां की सरकारें इसे लेकर गंभीर हैं। खासकर तब जब आए दिन कंपनियां लोगों की गोपनीयता में दखल देती हैं। लोगों के डेटा में सेंध लगाकर उसे मनी मेकिंग के लिए इस्तेमाल करती हैं। फेसबुक विवाद इसका सबसे ताजा उदाहरण हैं। सरकार और विपक्ष को चाहिए कि वो जल्द से जल्द डेटा प्रोटेक्शन बिल पास करे। लोगों की प्राइवेसी बचाने के लिए सख्त कानून की बहुत दरकार है। साथ ही इंटरनेट और सोशल मीडिया यूजर्स भी अलर्ट रहें। इनका इस्तेमाल बहुत सावधानी से करें। ऑन लाइन दुनिया में आपकी प्राइवेसी तभी सुरक्षित रहेगी।
 

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