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सरल बनाई जाए बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल, कानून में हैं जटिलताएं

गौरव श्रीवास्तव | कॉरेस्पोंडेंट
Updated Apr 11, 2022 | 16:03 IST

Adoption Process: सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए। कानूनी जटिलताओं की वजह से पिछले 5 साल में सिर्फ 16,353 बच्चों को गोद लिया जा सका है।

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बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र सरकार को आदेश दे कि अनाथ बच्चों को गोद लेने की संख्या में सुधार किया जाए। याचिकाकर्ता पीयूष सक्सेना ने याचिका में ये जानकारी दी है कि दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत में अनाथ बच्चों की देखरेख के लिए कोई अलग से मंत्रालय भी नहीं है। याचिका में दिए आंकड़े के मुताबिक देशभर में लगभग 3 करोड़ 10 लाख अनाथ बच्चे हैं, लेकिन कानूनी जटिलताओं की वजह से पिछले 5 साल में सिर्फ 16,353 बच्चों को गोद लिया जा सका है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल 1 लाख 35 हजार बच्चे गोद लिए जाते हैं।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से क्या मांग की है:

सुप्रीम कोर्ट महिला और बाल कल्याण मंत्रालय को 'हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम' के व्यापक प्रचार-प्रसार का आदेश दे। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्देश दिया जाए कि गोद लेने की प्रक्रिया को और ज्यादा सरल बनाया जाए। साथ ही गैरजरूरी जानकारी न मांगी जाए। एक एडॉप्शन प्रीपेयर स्कीम बनाई जाए जिसके तहत हर जिले में ग्रेजुएट्स को ट्रेनिंग दी जाए ताकि वो गोद लेने की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों की मदद कर सकें। अनाथ बच्चों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन किया जाए। साथ ही ब्लॉक स्तर पर इन बच्चों के व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाए।

याचिका में भारत में गोद लेने की कम संख्या के पीछे 4 मुख्य वजहों को रेखांकित किया गया है:

जटिल सामाजिक तानाबाना

याचिका के मुताबिक भारत में ये सोच है कि अनाथ सिर्फ अनाथालय में रहने के लिए बने हैं। वहीं गोद लेने वाले जोड़े को समाज शक की निगाह से देखता है। जटिल कानूनी प्रक्रिया के पीछे ये सोच है कि गोद लेने वाले माता-पिता लड़के से बंधुआ मजदूरी या लड़की से वेश्यावृत्ति करा सकते हैं। लेकिन सिर्फ कुछ मामलों में गोद लेने के बाद कानून का दुरुपयोग हुआ है। इसका मतलब ये नहीं कि करोड़ों अनाथ बच्चों के बेहतर भविष्य की संभावनाओं को छीना जाए।

अप्रासंगिक गोद लेने वाले कानून

भारत में सिर्फ एक कानून (Adoption Regulation 2017) को छोड़कर ज्यादातर पुराने और गैरजरूरी हैं।

बैकग्राउंड जांचने के लिए पैसों की कमी

किसी भी अनाथ बच्चे को गोद लेने की प्रकिया से पहले एक अनाथालय को संभावित अभिवावक की पृष्ठभूमि की जांच, मेडिकल टेस्ट में कम से कम 1000 रुपए खर्च हो जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से अनाथ आश्रमों के पास इसके लिए पर्याप्त बजट नहीं होता है और न ही इसके लिए कोई ऑफिशियल फंड  की व्यवस्था की गई है। कानूनी रूप से एक बच्चे को तभी गोद लिया जा सकता है जब अखबार में विज्ञापन देने के बाद 60 दिन तक उस बच्चे पर कोई दावा नहीं करने आए। लेकिन सरकारें साल में मुश्किल से एक बार विज्ञापन देती हैं और अनाथ बच्चों की संख्या बढ़ती जाती है।

विफल सिस्टम

सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी के पास अलग से कोई विभाग नहीं है जो गोद लेने की चाहत रखने वाले जोड़ों के लिए उपयुक्त बच्चे की खोज में मदद कर सकें। इसके अलावा अनाथ बच्चों को 18 साल की उम्र में आश्रय गृह छोड़ना होता है। लेकिन ऐसे बच्चों को 14 से 18 साल के बीच में इन आश्रय गृहों में इंटरनेट, रोजगार पत्रिका उपलब्ध नहीं हो पाता है ताकि वो अपने भविष्य को बेहतर बना सकें।

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