लाइव टीवी

Book Review: राजनीति और प्रेम के बीच गांव की मिट्टी में ले जाती है 'चांदपुर की चंदा'

Updated Mar 05, 2022 | 12:21 IST

हिन्दयुग्म प्रकाशन से अतुल कुमार राय का एक उपन्यास "चांदपुर की चंदा" आया है। ये उपन्यास एक तरफ गांव की ज्वलंत समस्या पर हमें सोचने पर मजबूर करता है तो दूसरी तरफ हमे भी बारहवीं की उस क्लास में पहुंचा देता है,जहां हर युवा अपनी किसी चंदा के सपनों में खोया रहता है।

Loading ...
Book Review hindi Chandpur Ki Chanda

Book Review Chandpur Ki Chanda Author Atul Kumar Rai: फागुन की हवा बावरी होती है। रेणु जी लिखते हैं कि ये हवा बूढ़ी हड्डियों में भी जान डाल देती है और माघ के घाम और शीत से पगी सरसराती हवा जैसे ही फागुन के पहलू को छूती है तो और भी मादक हो जाती है। आजकल ऐसा ही मौसम है। खेतों में गेहूं की बालियों में दूध और गाढ़ा हो रहा है। आम की बगिया में अमराई अंगड़ाई ले रही है और सरसों के पीले फूलों पर भंवरे लुका-छुपी खेल रहे हैं। इसी समय हिन्दयुग्म प्रकाशन से अतुल कुमार राय का एक उपन्यास "चांदपुर की चंदा" आया है, जिसकी कहानी इन दिनों पाठकों के हृदय में जगह बना रही है। लेकिन जिन्हें याद नही है उनको कुछ साल पहले जाकर याद करना होगा।

"मेरी प्यारी पिंकी....

"वेलेंटाइन बाबा के कसम इ लभ लेटर मैं सरसों के खेत से नहीं तुम्हारी मुहब्बत के टावर पर चढ़कर लिख रहा हूं...डीह बाबा काली माई के कसम आज तीन दिन से मोबाइल में टावरे नहीं पकड़ रहा था...ए पिंकी खीसियाना मत.. हमारे मोहब्ब्त के दुश्मन सिर्फ हमारे तुम्हारे घर वाले ही नहीं,ये एयरटेल और वोडाफोन वाले भी हैं।"

अतुल ने ये पोस्ट 10 फरवरी 2016 को फेसबुक पर पोस्ट की थी। पता नही इन साधारण सी लगने वाली लाइनों में इतना खास क्या था कि पिंकिया और मंटुआ का ये लभ लेटर सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और पिंकी और मंटू की प्रेम कहानी की चर्चा होने लगी लेकिन आज करीब छह साल बाद मोहब्बत का यह खत जवां होकर उपन्यास बन गया है। और ये कहने में कोई संकोच नहीं कि बहुत ही सधे अंदाज में एक जबरदस्त कथानक के साथ परिपक्व बनकर आया है।
 
अतुल नें कथाक्षेत्र के रूप में एक ऐसे गांव चांदपुर का चयन किया है,जो हर साल बाढ़ में डूब जाता है। इसी चांदपुर में दो दिल रहतें हैं, शशि और उसकी मोहब्ब्त चंदा। शशि मोहब्ब्त में डूबने को बेताब है वहीं चंदा गरीबी, अभाव, मजबुरी उपेक्षा की बाढ़ में डूब रही है। वो दो हजार छह का साल है। चांदपुर गांव स्मार्टफोन और इंटरनेट से दूर है। इंटरमीडिएट की परीक्षा नजदीक आ रही है। शशि और चंदा जिस स्कूल में पढ़ते हैं,वो नकल के लिए कुख्यात है।

यानी उसमें पैसे लेकर पास कराया जाता है। लेकिन शशि और चंदा को इंटरमीडिएट में पास होने से ज्यादा इस बात की चिंता है कि वो प्रेम की परीक्षा में पास होंगे या नहीं ? इस डूबते गांव में उनका क्या होगा। दोनों के इस उपन्यास में कई खत मौजूद हैं।

ये उपन्यास एक तरफ गांव की ज्वलन्त समस्या पर हमें सोचने पर मजबूर करता है तो दूसरी तरफ हमे भी बारहवीं की उस क्लास में पहुंचा देता है,जहां हर युवा अपनी किसी चंदा के सपनों में खोया रहता है। चंदा का वो पियरका सूट पहनकर मंदिर जाना। मन्टू का खत में लिखना, ए करेजा, जो दीया तुमने मंदिर में जलाया था, वो तो उसी दिन बुता गया लेकिन जो दीया मेरे दिल में जर गया है न, वो बुताने का नाम नहीं ले रहा है।

हाय रे करेजा! ये करेजा शब्द पढ़कर दिल में लहर सी उठती है। कुछ घचाक से धंस जाता है जैसे। वहीं गांव की लड़कियों का दहेज के लिए उत्पीड़न, झांझा बाबा के शहर में रह रहे लड़कों द्वारा की गई अपेक्षा, बाढ़ के अफसरों द्वारा चांदपुर में की गई लापरवाही, प्रधान डब्लू नेता द्वारा प्रधानी चुनाव में की गई धांधली, गुड़िया और रमावती की दहेज के कारण मौत को अतुल नें कहानी के साथ इतना सुंदर बुना है कि हर पेज जीवंत हो गया है। 

पता नही चलता है कि हम कब रो रहें हैं, कब हंस रहे हैं। साथ ही उस समय के प्रचलित फिल्मी गीत, लोकगीत का प्रयोग इसमें चार चांद लगा देता है और उसकी खुमारी उतरने का नाम नही लेती है। कुल मिलाकर किताब की कहानी वैसी ही है जैसे कि प्रेम में भीगी हुई गुलाब की पंखुड़ियों को प्रेमिका के होठों से छुआना या फिर जैसे उसके जूड़े में सरसों के पीले फूल लगाना। या फिर किसी झील की सतह पर झिलमिलाती 'चांदपुर की चंदा' को सहलाना। आंचल को मुंह में भर के उसके भाप से से दर्द को दूर कर देना। 

"चांदपुर की चंदा" क्यों पढ़ें यह प्रश्न ही नहीं है, बल्कि प्रश्न यह है कि अब तक आपने क्यों नहीं पढ़ा? और अगर पढ़ा, तो कितनी बार पढ़ा?

हां, अगर आप पूर्वी उत्तर प्रदेश की ग्रामीण संस्कृति से परिचित नही हैं तो ये उपन्यास आपको थोड़ा कम आकर्षित करेगा, लेकिन अगर आप उस संस्कृति को जानने के लिए उत्सुक हैं तो ये उपन्यास आपका सर्वश्रेष्ठ चयन बन सकता है। क्योंकि लेखक नें एक ईमानदार कहानी कही है, जो पाठको के दिलों में एकदम सी उतर गई है। हिंदी जगत इस नव उपन्यासकार की तरफ टकटकी लगाए देख रहा है। कायदे से अतुल की लेखन की परीक्षा का समय अब शुरू हुआ है। यहां चांदपुर की तरह नकल का इंतज़ाम भी नही है।