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Teacher's Day Dohe: टीचर्स डे पर पढ़ें कबीर के ये दोहे, मन में और बढ़ा देंगे गुरु के प्रति श्रद्धा भाव

Updated Sep 05, 2022 | 14:22 IST

Teacher's Kabir Ke Dohe in Hindi 2022 (शिक्षक दिवस पर कबीर के दोहे) : यहां पढ़ें शिक्षक दिवस पर कबीर के दोहे हिंदी में। संत कबीर ने अपने दोहों में गुरुओं की महिमा का बखूबी बखान किया है। टीचर्स डे पर पढ़ें ये दोहे जिनसे आपके मन में गुरुओं के प्रति श्रद्धा भाव और बढ़ जाएगा।

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शिक्षक दिवस पर कबीर के दोहे अर्थ सहित हिंदी में

Teacher's Kabir Ke Dohe in Hindi 2022 (शिक्षक दिवस पर कबीर के दोहे) : गुरु न केवल अच्छी पढ़ाई करने या फिर सिर्फ सफल करियर बनाने की राह में बल्कि एक सफल जीवन की नींव रखने के लिए भी पहली सीढ़ी के समान बहुत महत्वपूर्ण होता है। गुरु के बिना अच्छे जीवन की कल्पना करना भी असंभव है, क्योंकि जिंदगी की कठिन राह में एक मार्गदर्शक होना अति आवश्यक है। और उसकी कमी होने जैसी  स्थिति में आपका जीवन ही व्यर्थ लगने लगता है। ये संत कबीर दास जी के ऐसे ही दोहे हैं, जिनका अर्थ आपके स्कूल के शिक्षक ने जरूर बतलाया होगा। मगर क्या आपने उस वक्त इनकी गहराई को समझा था, जो गुरु शिष्य के महाबंधन का बखूबी वर्णन करते हैं।  

Kabir ke Dohe for Teachers

दोहा - गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय,  
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।    

अर्थ - कबीर कहते हैं कि, जब कभी जीवन में ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े, जिसमें गुरु और गोविन्द यानी ईश्वर दोनों ही आपके समक्ष एक साथ खड़े हो। तो उस वक्त आप किसके सामने पहले अपना शीश झुकाएंगे। कबीर दास जी ने इस सवाल का बहुत साधारण और सटीक जवाब दिया कि, गुरु ही है जिसने जीवन में गोविन्द से हमारा परिचय करवाया। अगर गुरु हमें उनके विषय में बताते ही नहीं तो आज हमारे मन में ईश्वर के लिए आदर, सत्कार होता ही नहीं। इसलिए गुरु का स्थान गोविन्द से भी ऊँचा है।  

दोहा - कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और,  
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर।  

अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि महज अंधे और मूर्ख हैं, वे लोग जो गुरु की असीम महिमा को समझ नहीं पाते हैं। वे लोग जो ये सोचते हैं कि गुरु और ईश्वर का अस्तित्व एक दूसरे से अलग है। लेकिन इस बात की गहराई को समझना जरूरी है कि अगर जीवन में भगवान रूठ जाए, तो इस स्थिति का समाधान करने के लिए आप गुरु की ओर अपना मुख फेर सकते हैं। लेकिन अगर कभी गुरु ही रूठ जाए तो फिर कहीं भी शरण मिल पाना बेहद मुश्किल है।  

दोहा - सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय,  
सात समुंदर की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय।  

अर्थ - कबीर जी ने बहुत ही खूबसूरती से एक साधारण से ख्याल का तुलनात्मक अंदाज में वर्णन करते हुए कहा है कि फर्ज करें ये पूरी धरती एक कोरे कागज के समान है, और जंगल की सारी लकड़ियां कलम हैं। सातों समुद्र का जल स्याही है लेकिन इन सब को मिलाकर भी ये गुरु का बखान करने के लिए काफी नहीं है। जिसका अर्थ है कि जीवन में गुरु की महिमा को शब्दों में पिरो कर उसका वर्णन करना नाम मात्र असंभव ही है।  

दोहा - यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान,  
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।  

अर्थ - निम्न पंक्तियों में कबीर जी शिष्य की तुलना विष की बेल करते हैं और गुरु को अमृत की खान की उपाधि प्रदान कर उनका परिचय देते हैं। वे कहते हैं कि गुरु का ज्ञान और उसकी महिमा इतनी निराली इतनी बेशकीमती है कि, अगर शिष्य अपना शीश कलम करके भी गुरु की कृपा पा जाए तो ये भी एक बहुत ही सस्ता सौदा कहलाया जाएगा।  

 दोहा - तीरथ गए ते एक फल, संत मिले फल चार,  
सद्गुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।  

अर्थ - हम सब जानते हैं कि धार्मिक पक्ष की ओर से देखे तो, सभी धर्मों में तीर्थ यात्रा का बहुत महत्व माना गया है। तो उसी विचार को आधार बनाकर कबीर दास जी कहते हैं कि तीर्थ यात्रा करने से तो एक ही फल की प्राप्ति होती है। वहीं अगर आप किसी संत, महात्मा से मिले तो उसके चार प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है। लेकिन अगर जीवन में आपको एक सच्चे गुरु का आशीर्वाद और उनकी शरण मिल जाए तो ऐसे में आपको समस्त प्रकार के फलों की प्राप्ति हो जाती है।  

दोहा - गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत,   
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।  

अर्थ - गुरु की महत्ता का वर्णन करते हुए कबीर कहते हैं कि, जीवन में गुरु और पारस के बीच का अंतर के विषय में सभी ज्ञानी पुरुषों को ज्ञात है। अर्थात है जिस प्रकार पारस के स्पर्श मात्र से पत्थर सोना बन जाता है, उसी तरह गुरु की थोड़ी शरण और सानिध्य मिल जाने से ही साधारण व्यक्ति खास बन जाता है।  

दोहा - गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं,  
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि।  

अर्थ - दोहे में कबीर दास जी बहुत अच्छे से इस को समझाते हैं कि किस प्रकार जीवन में गुरु बनाने के ज्यादा जरूरी है एक अच्छा गुरु बनाना। वे कहते हैं कि कभी भी बाहर की खूबसूरती और आडम्बर देखकर किसी को भी गुरु की उपाधि नहीं देनी चाहिए। बल्कि गुरु बनाने के लिए व्यक्ति के भीतर का ज्ञान, गुण, आत्मा देखनी चाहिए। नहीं तो संसार रुपी सागर में गोता लगाना पडे़गा।  

दोहा - या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत,   
गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत।  

अर्थ - निम्न पंक्तियों से कबीर जी का आशय है कि जिंदगी कुछ दिनों की ही है, इसलिए जरूरी है कि आप इनमें भी अपना संबंध मोह से न जोड़ ले। इसके बजाय आपको अपने दिनों का सकारात्मक तरीके से उपयोग करके मन को गुरु की साधना, गुरु के चरणों में लगाना चाहिए ताकि आपको जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति का अनुभव हो।  

दोहा - कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेया,  
साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब न देय।  

अर्थ - यह समझना बहुत जरूरी है कि जीवन में हर रोज आपको कोई न कोई किसी प्रकार का ज्ञान और शिक्षा अवश्य प्रदान करेगा। लेकिन इसमें महत्वपूर्ण ये है कि भले ही कितने लोग तुम्हे सीख दे मगर हमेशा एकमात्र गुरु की ही सीख को मन में बसाना। उसका गहन चिंतन करना तथा कभी भी बुरे मनुष्यों और कुत्तों को वापस पलट कर जवाब देने की कोई आवश्यकता नहीं है।  

दोहा - गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं,  
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं।  

अर्थ - कबीर कहते हैं कि गुरु की आज्ञा को सिर आँखों पर रखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। जीवन में ऐसा कर लेने से शिष्य या भक्त को जीवन में तीनों लोकों में से किसी का भी भय नहीं रह जाएगा।