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बिहार में शराबबंदी कानून में नरमी, विधानसभा में बिल पास, सीएम नीतीश ने कही ये बात

Updated Mar 30, 2022 | 23:49 IST

बिहार विधानसभा में निषेध एवं उत्पाद शुल्क संशोधन बिल, 2022 में विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए कई संशोधनों को खारिज करते हुए सदन ने इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
शराबबंदी कानून संशोधन बिल, 2022 बिहार विधानसभा में पास

पटना : बिहार विधानसभा ने बुधवार को निषेध एवं उत्पाद शुल्क संशोधन बिल, 2022 को ध्वनिमत से पारित कर दिया, जिसके तहत राज्य में पहली बार शराबबंदी कानून को कम सख्त बनाया गया है। बिहार के मद्य निषेध एवं उत्पाद मंत्री सुनील कुमार द्वारा पेश उक्त संशोधन बिल में विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश किए गए कई संशोधनों को खारिज करते हुए सदन ने इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया। संशोधित बिल को अधिसूचित होने से पहले राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि शराबबंदी शत-प्रतिशत बहुमत से पारित एक ही अभियान चलना चाहिए, शराब का सेवन न करें, यह मार डालता है। हमारे सर्वे के अनुसार, बिहार में 1.74 करोड़ लोगों ने शराब छोड़ी। नकली शराब सिर्फ बिहार की बात नहीं है, वास्तव में यहां न्यूनतम है।

संशोधित कानून के अनुसार, पहली बार अपराध करने वालों को जुर्माना जमा करने के बाद ड्यूटी मजिस्ट्रेट से जमानत मिल जाएगी और यदि अपराधी जुर्माना राशि जमा करने में सक्षम नहीं है तो उसे एक महीने की जेल का सामना करना पड़ सकता है। इसके अनुसार, जब किसी को शराबबंदी कानूनों का उल्लंघन करते हुए पुलिस पकड़ेगी तो आरोपी को उस व्यक्ति का नाम बताना होगा जिसने शराब उपलब्ध करवायी। साथ ही गिरफ्तार शराब कारोबारियों की चल-अचल संपत्ति को जब्त कर लिया जाएगा जबकि बार-बार शराब पीने वालों को जुर्माना के साथ-साथ जेल भी भेजा जाएगा। शराब के धंधे में इस्तेमाल होने वाले वाहनों को जब्त कर नीलाम किया जाएगा। सरकार ने पहली बार शराबबंदी कानून का उल्लंघन करने वालों पर लगाए जाने वाले जुर्माने की राशि का तत्काल खुलासा नहीं किया है।

मद्य निषेध एवं उत्पाद मंत्री ने संशोधन बिल पेश करते हुए कहा कि निर्दोषों को परेशान नहीं किया जाएगा जबकि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। शराबबंदी को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही नीतीश कुमार सरकार ने बिहार शराब निषेध संशोधन बिल को राज्य विधानसभा में पेश करने का फैसला किया।

नीतीश कुमार सरकार ने बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद अधिनियम के तहत अप्रैल 2016 में राज्य में शराबबंदी लागू कर दी थी। प्रतिबंध के बाद से बड़ी संख्या में लोग केवल शराब पीने के आरोप में जेलों में बंद हैं। उल्लंघन करने वालों में अधिकांश आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और गरीब लोगों में से हैं।

भारत के प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण ने पिछले साल कहा था कि 2016 में बिहार सरकार के शराबबंदी जैसे फैसलों ने अदालतों पर भारी बोझ डाला है। उन्होंने कहा था कि अदालतों में तीन लाख मामले लंबित हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि लोग लंबे समय से न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं और अब शराब के उल्लंघन से संबंधित अत्यधिक मामले अदालतों पर अतिरिक्त बोझ डाल रहे हैं।

विधानसभा के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने आरोप लगाया कि संशोधित कानून पुलिसकर्मियों को अधिक अधिकार देगा। राज्य सरकार के इस कदम से पुलिस और शराब माफिया के बीच गठजोड़ और मजबूत होगा।

इसी तरह की राय व्यक्त करते हुए राजद विधायक ऋषि कुमार ने कहा कि नया कानून जिसमें कहा गया है कि शराब पीते हुए लोगों को जेल नहीं होगी, काफी हास्यास्पद है। यह साबित करता है कि राज्य में शराबबंदी नीति विफल हो गई है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए।

उन्होंने आरोप लगाया कि शराब की तस्करी हो रही है। लोग मर रहे हैं और राज्य को राजस्व का भी नुकसान हो रहा है। यह विफल हो गया है और मैं कहता हूं कि इसे समाप्त किया जाना चाहिए। मुख्यमंत्री शराब माफिया के दबाव में काम कर रहे हैं।

इससे पहले भाजपा सदस्यों ने राज्य के 11 विधि कॉलेजों को बार काउंसिल ऑफ इंडिया की मान्यता वापस लेने का मुद्दा उठाया और सरकार से सदन में उन संस्थानों में कानून की पढ़ाई कर रहे छात्रों के शैक्षणिक कैरियर को बचाने के लिए उचित कदम उठाने का आग्रह किया। प्रश्नकाल के तुरंत बाद भाजपा विधायक संजय सरावगी और नीतीश मिश्रा ने यह मुद्दा उठाया।
 

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