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ऐसा मंदिर जहां होती है भगवान शिव के अंगूठे की पूजा, 3 बार बदल जाता है शिवलिंग का रंग

Updated Feb 18, 2019 | 07:30 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

भगवान शिव के प्राचीन और चमत्कारिक मंदिरों में एक मंदिर राजस्थान के माउंट आबू के अचलगढ़ में भी मौजूद है। इस मंदिर भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। आइए जाने क्यों है ये चमत्मकार से भरा।

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Achaleshwar Mahadev Temple

The unique temple of Shiva : अचलगढ़ की पहाड़ियों के पास स्थित किले के पास अचलेश्वर मंदिर में भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। यह पहली जगह है जहां भगवान की प्रतिमा या शिवलिंग की पूजा न हो कर उनके दाहिने पैर के अंगूठे को पूजा जाता है। माउंट आबू से करीब 11 किलोमीटर दूर उत्तर में अचलगढ़ की पहाड़ियों पर किले के पास मौजूद अचलेश्वर मंदिर चमत्कारों से भरा माना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि यहां के पर्वत भगवान शिव के अंगूठे के कारण ही टिके हैं। अगर शिव जी का अंगूठा न होता तो ये पर्वत नष्ट हो जाते।भगवान शिव के अंगूठे को लेकर भी काफी चमत्कार यहां माने जाते हैं। आइए जाने इसके बारे में।

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अंगूठे के नीचे बने गड्ढे में कभी नहीं भरता पानी
भगवान शिव के अंगूठे के नीचे ही एक गड्ढा है। ये गड्ढा बनाया नहीं गया बल्कि ये प्राकृतिक रूप से निर्मित है। मान्यता है कि इसमें चाहे कितना भी पानी भरा जाए वह नहीं भरता। शिव जी पर चढ़ने वाला जल भी कभी यहां नजर नहीं आता। पानी कहां जाता है किसी को आज तक पता नहीं चल सका।

चंपा का विशाल पेड़ प्राचीनता का है प्रतीक
अचलेश्वर महादेव मंदिर परिसर में मौजूद चौक में चंपा का बहुत बड़ा पेड़ भी मौजूद है। इस पेड़ को देख कर ही इस मंदिर की प्राचीनता को भी जाना जा सकता है। मंदिर में बाई ओर दो कलात्मक खंभों पर धर्मकांटा बना है जिसकी शिल्पकला भी बेहद खूबसूरत और अद्भुद है। मंदिर परिसर में द्वारिकाधीश मंदिर भी बना हुआ है. गर्भगृह के बाहर वराह, नृसिंह, वामन, कच्छप, मत्स्य, कृष्ण, राम, परशुराम,बुद्ध व कलंगी अवतारों की काले पत्थर की प्रतिमाएं बनीं हुई हैं।

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इसलिए शिव जी का है यहां अंगूठा
पौराणिक कथाओं में यह बताया गया है कि एक बार अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा। इससे हिमालय पर तपस्या कर रहे भगवान शिव की तपस्या में विघ्न पहुंचने लगा और उनकी तपस्या भंग हो गई। इस पर्वत पर भगवान शिव की नंदी भी थी। नंदी को बचाने के लिए भगवान शिव ने हिमालय से ही अपने अंगूठे को अर्बुद पर्वत तक पहुंचा दिया और पर्वत को हिलने से रोक कर स्थिर कर दिया। यही वजह है कि भगवान के शिव का ये अंगूठा इस पर्वत को उठाए हुए है।

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