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Chanakya Niti: जीवन को सुखमय बनाने के ये हैं चार चाणक्‍य मंत्र, अपना लिया तो घर बन जाएगा स्‍वर्ग

Updated Aug 31, 2022 | 11:39 IST

Chanakya Niti in Hindi: आचार्य चाणक्य ने मनुष्य के जीवन को सफल और सुखमय बनाने के कई उपाय बताए हैं। नीति शास्‍त्र के श्लोकों से मिलने वाली दीक्षा से ज्ञान अर्जित कर कोई भी अपने जीवन को सफल बना सकता है। आचार्य कहते हैं कि मनुष्‍य जीवन में शांति जैसा तप, संतोष जैसा सुख, तृष्णा जैसा बीमारी, और दया जैसा कोई धर्म नहीं होता।

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तस्वीर साभार:&nbspRepresentative Image
जीवन को सुखमय बनाने के चार चाणक्‍य मंत्र
मुख्य बातें
  • इंद्रियों पर काबू पाने से बड़ा कोई तप नहीं
  • संतोषी व्‍यक्ति का जीवन होता है सबसे सुखमय
  • दया करने वाला कभी नहीं बनता पाप का भागीदार

Chanakya Niti in Hindi: अर्थशास्त्र और नीति शास्‍त्र के प्रख्‍यात ज्ञाता आचार्य चाणक्य ने मनुष्य के जीवन को सफल और सुखमय बनाने के कई उपाय बताए हैं। सफलता और सही गलत की पहचान करने के सभी उपाय श्‍लोक कं बंधन में पिरोये गए हैं। इन श्लोकों में मिलने वाली दीक्षा से ज्ञान अर्जित कर कोई भी जीवन को सफल बना सकता है। आचार्य चाणक्य अपनी नीतियों में कहते हैं कि अगर मनुष्‍य को अपने जीवन को स्‍वर्ग की तरह सुखमय बनाना है तो चार बातों का खास ख्याल रखना चाहिेए। आचार्य कहते हैं कि मनुष्‍य जीवन में शांति जैसा तप, संतोष जैसा सुख, तृष्णा जैसा बीमारी, और दया जैसा कोई धर्म नहीं होता। जो व्‍यक्ति इस रहस्‍य को समझ जाता है, उसका जीवन सफल हो जाता है।

क्षान्ति तुल्यं तपो नास्ति सन्तोषान्न सुखं परम् ।

नास्ति तृष्णा समो व्याधिः न च धर्मो दयापरः ॥

शांति है सबसे बड़ा तप

श्‍लोक के माध्‍यम से मानव जीवन के बारे में बताते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि शांति से बड़ा कोई तप नहीं है। परिस्थिति कोई भी हो, व्यक्ति को अपने अंदर शांति कायम रखनी चाहिए। शांति हासिल करने से बढ़कर कोई तपस्या नहीं होती। अर्थात् सफलता के लिए मनुष्य को अपनी इंद्रियों पर शांति पाना सबसे जरूरी है।

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संतोष सबसे बड़ा सुख

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जीवन में संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं होता है। मनुष्य को खुश रहने के लिए संतोष का भाव अपने मन में रखना चाहिए। संतोष के साथ ही मनुष्य की जीवन रूपी नाव पार हो सकती है। जिस व्‍यक्ति के मन में संतोष नहीं होता, वह बेवजह परेशान होकर भटकता रहता है।

तृष्णा सबसे बड़ा रोग

आचार्य चाणक्य का मानना है कि मनुष्य के अंदर की तृष्णा सबसे बड़ी बीमारी होती है। जिस भी व्‍यक्ति को तृष्णा या अभिलाषा नाम का यह रोग लग जाता है वह जीवन भर दौड़ाता और भटकाता रहता है। यह रोग व्यक्ति को शांती से नहीं रहने देता है। व्‍यक्ति जीवन भर लालच में घुटता रह जाता है।

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दया है सबसे बड़ा धर्म

आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्‍त्र में दया के भाव को सभी धर्मों में सबसे ऊंचा स्थान दिया है। आचार्य कहते हैं कि किसी भी प्राणी पर दया करने वाला व्यक्ति कभी पाप कर्म का भागीदार नहीं बनता है। दया भाव रखने वाले व्‍यक्ति के मन में अवगुण नहीं पनपते हैं।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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