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Bhadrapada Purnima Vrat Katha 2022: भादो की पूर्णिमा पर पढ़ें यह कथा, श्री कृष्ण ने स्वयं बताया है इस व्रत का महत्व

Updated Sep 09, 2022 | 16:25 IST

Bhadrapada Purnima 2022 Vrat Katha in Hindi: कल यानी 10 सितंबर को भाद्रपद माह की पूर्णिमा है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा करने की परंपरा है। मान्यताओं के अनुसार, पूजा के बाद कथा का श्रवण जरूर करना चाहिए इससे व्रत का फल जल्द मिलता है।

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Bhadrapada Purnima 2022 Vrat Katha (Pic: iStock)
मुख्य बातें
  • बेहद विशेष मानी गई है भादो माह की पूर्णिमा तिथि। 
  • कल यानी 10 सितंबर को है भाद्रपद की पूर्णिमा।
  • कथा के श्रवण से मिलता है व्रत का फल।

Bhadrapada Purnima 2022 Vrat Katha in Hindi: वैसे तो हर माह एक पूर्णिमा तिथि पड़ती है लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को पुण्यकारी और फलदायी माना गया है। इस बार पूर्णिमा तिथि 10 सितंबर को है। हालांकि, इस तिथि की शुरुआत 9 सितंबर यानी शुक्रवार को शाम 06 बजकर 07 मिनट से हो रही है और अगले दिन 10 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 28 मिनट तक है। इस खास तिथि पर भगवान सत्यनारायण की पूजा करने और कथा सुनने का विशेष विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है। बहरहाल, आज हम आपको भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की कथा बताते हैं।

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भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की कथा, Bhadrapada Purnima 2022 Vrat Katha

पौराणिक कथाओं के मुताबिक द्वापर युग में एक बार यशोदा मां ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह उन्हें एक ऐसा व्रत बताएं जिसको करने से मृत्यु लोक में स्त्रियों को विधवा होने का भय ना रहे। भगवान श्रीकृष्ण ने यशोदा मां को बताया कि स्त्रियों को 32 पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। यह व्रत अचल सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति मनुष्यों की भक्ति बढ़ाने वाला है। योशादा मां ने श्रीकृष्ण से पूछा कि क्या इस व्रत को मृत्युलोक में किसी ने किया था? 

श्री कृष्ण ने सुनाई यह कथा

इस पर भगवान ने बताया कि कार्तिका नाम की नगरी थी, वहां चंद्रहास नामक एक राजा राज करता है। उसी नगरी में धनेश्वर नाम के ब्राम्हण की पत्नी रूपवती थी। दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे और उस नगरी में बहुत प्रेम से रहते थे। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन संतान ना होने के कारण वह अक्सर दुखी रहा करते थे।

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एक दिन एक योगी उस नगरी में आया, वह नगर के सभी घरों से भिक्षा लेता था। लेकिन रूपवती के घर से भिक्षा नहीं लेता था। एक दिन दुखी होकर धनेश्वर, योगी से भिक्षा ना लेने की वजह पूछता है। इस पर योगी ने कहा कि निसंतान के घर की भीख पतिथों के अन्न के समान होती है और जो पतिथो का अन्न ग्रहण करता है वह भी पतिथ हो जाता है। इसलिए पतिथ हो जाने के भय से उनके घर की भिक्षा नहीं लेता है।

येगी ने बताया मां चंडी की उपासना करने का उपाय

इसे सुन धनेश्वर दुखी हो गए और उन्होंने योगी से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। इस पर योगी ने मां चंडी की उपासना करने की सलाह दी। धनेश्वर देवी चंडी की उपासना करने के लिए वन में चला गया, मां चंडी ने धनेश्वर की भक्ति से प्रसन्न होकर 16वें दिन दर्शन दिया। मां चंडी ने कहा कि तुम्हारा पुत्र होगा, लेकिन वह केवल 16 वर्षों तक ही जीवित रहेगा। यदि वह स्त्री और पुरुष 32 पूर्णिमा का व्रत करेंगे तो वह दीर्घायु हो जाएगा।

मां चंडी ने एक आम के वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़कर उसे पत्नी को खिलाने को कहा। मां चंडी ने कहा कि तुम्हारी पत्नी स्नान कर शंकर भगवान का ध्यान कर फल को खा ले, तो भगवान शिव की कृपा से गर्भवती हो जाएगी। इस उपाय को करने के बाद धनेश्वर को पुत्र की प्राप्ति हुई तथा 32 पूर्णिमा का व्रत करने से पुत्र को दीर्घायु की प्राप्ति हुई।

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