- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन बाद दही हांडी का पर्व मनाया जाता है
- इस बार दही हांडी का पर्व 19 व 20 अगस्त दोनों दिन मनाया जा रहा है
- दही हांडी का पर्व जन्माष्टमी का ही एक हिस्सा है
Dahi Handi 2022, Janmashtami 2022: हिंदू धर्म में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मुख्य त्योहारों में से एक हैं। कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इस साल कृष्ण जन्माष्टमी 18 व 19 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का पर्व मनाया जाता है। इस बार दही हांडी का पर्व 19 व 20 अगस्त दोनों दिन मनाया जा रहा है। दही हांडी का पर्व जन्माष्टमी का ही एक हिस्सा है। दही हांडी का उत्सव भगवान श्री कृष्ण की चंचल लीलाओं को याद करते हुए मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र गुजरात में मनाया जाता है ,लेकिन अब हर जगह इस उत्सव को धूमधाम के साथ मनाया जाता है। आइए जानते हैं कब है दही हांडी का उत्सव और क्यों मनाया जाता है। जानिए इससे जुड़ी सारी डीटेल्स..
दही हांडी शुभ मुहूर्त
इस दिन रात 10:59 बजे तक भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रहेगी, उसके बाद से नवमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी। 18 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जा रही है, इसलिए दही हांडी उत्सव 19 व 20 अगस्त दोनों दिन होगा।
क्यों मनाया जाता है दही हांडी का उत्सव
पुरानी कथा के अनुसार लड्डू गोपाल काफी नटखट थे। उन्हें माखन बहुत ही ज्यादा प्रिय था। माखन खाने के लिए वे वृंदावन में लोगों के घरों से माखन चुराया करते थे और अपने सखाओं के साथ मिलकर खाया करते थे। कन्हैया की माखन चोरी से वृंदावन की सारी महिलाएं परेशान रहती थीं। ऐसे में गोपियां कान्हा से माखन बचाने के लिए माखन से भरी मटकी को ऊंची जगह पर टांग देती थी। ताकि कृष्ण वहां तक न पहुंच पाएं और उनका माखन न चुरा पाएं, लेकिन श्री कृष्ण काफी चतुर थे। उन्होंने माखन चुराने के लिए अपने शाखाओं के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाया और उस पिरामिड में चढ़ते हुए मटकी को फोड़ दिया और सारा माखन चुरा कर खा लिया। श्री कृष्ण की इस शरारत को ध्यान में रखते हुए ही लोग जन्माष्टमी के अगले दिन दही हांडी का उत्सव बनाते हैं। दही हांडी का उत्सव द्वापर युग से मनाया जा रहा है।
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जाने क्या होता है दही हांडी के उत्सव में
दही हांडी उत्सव के दिन लोग खाली जगहों पर काफी ऊंचाई पर एक मटकी रस्सी से लटका देते हैं और इस मटकी को दही, माखन छाछ से भर देते हैं। इस मटकी को तोड़ने के लिए जो लोग होते हैं उन्हें गोविंदा कहा जाता है और इस टोली में शामिल गोविंदा पिरामिड बनाकर मटकी तक पहुंचते हैं और फिर उसे फोड़ते हैं। कई जगह इसे फोड़ने पर पुरस्कार भी दिया जाता है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)