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Ganesh Chaturthi Vrat Katha 2022: गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा, पूजा के बाद जरूर करें पाठ

Updated Aug 31, 2022 | 19:28 IST

Ganesh Chaturthi 2022 Vrat Katha in Hindi: गणेश चतुर्थी हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। इस व्रत कथा से जानें क्या है भगवान श्री गणेश की इस विशेष पूजा अर्चना की पौराणिक कहानी।

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Ganesh Chaturthi 2022 vrat katha
मुख्य बातें
  • गणेश चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की विशेष पूजा अर्चना की जाती है
  • गणपति बप्पा की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए भक्त इस दिन रखते हैं व्रत
  • मान्यता है कि गणेश चतुर्थी व्रत में कथा पढ़े बिना व्रत पूर्ण नहीं होता है

Ganesh Chaturthi 2022 Vrat Katha in Hindi: गणेश चतुर्थी हिंदुओं का एक खास त्योहार है, जो हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है, कि इसी दिन (Ganesh Chaturthi 2022) भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। इस दिन भक्त पूरी श्रद्धा के साथ विघ्नहर्ता की पूजा अर्चना करते है। यह पूजा (when is Ganesh Chaturthi vrat 2022) 10 दिनों तक चलती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस 10 दिनों में पूरी श्रद्धा से बप्पा की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते है। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi vrat 2022) बड़े धूमधाम के साथ मनाई जाती है। लेकिन क्या आपको पता है, इस दिन गणेश जी की विशेष पूजा अर्चना क्यों की जाती है? अगर नहीं, तो चलिए आज हम आपको इसके पीछे की पौराणिक कथा बताते है।

Ganesh chaturthi vrat katha, kahani in Hindi

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। माता पार्वती ने वहां भगवान शिव से चौपड़ खेलने को कहा। भगवान शिव भी इस खेल को खेलने के लिए तैयार हो गए। लेकिन इस खेल में होने वाले हार-जीत का निर्णय कौन लेगा यह समझ नहीं आ रहा था, इसलिए भगवान शिव ने कुछ तीनके को इकट्ठा करके एक पुतला बनाया और उसमें जान डाल दी। जान डालते ही वह पुतला एक बालक बन गया। उसी बालक को इस खेल का निर्णय लेना था। 

अब भगवान शिव और माता पार्वती चौपड़ का खेल शुरू कर दिए। तीन बार चौपड़ का खेल खेला गया। हर बार माता पार्वती जीती, लेकिन भगवान शिव द्वारा निर्मित उस बालक ने भगवान शिव को ही विजय बताया। इस बात को सुनकर माता पार्वती बेहद क्रोधित हो गई और उन्होनें क्रोध में आकर उस बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से बहुत माफी मांगी। बालक के बार-बार क्षमा मांगने पर माता पार्वती ने उस बालक से कहा, कि यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्या आएंगी उनके कहें अनुसार तुम भगवान श्री गणेश का व्रत पूरी श्रद्धा पूर्वक रखना। इस व्रत के प्रभाव से तुम इस श्राप से मुक्त हो जाओगें।

 एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्या आई। तब उस बालक ने नागकन्याओं से गणपति बप्पा के व्रत का विधि-विधान पूछा। उनके बताए अनुसार उस बालक ने 21 चतुर्थी तक बप्पा का व्रत किया। बालक की भक्ति को देखकर गणपति बप्पा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उस बालक को मनोवांछित वर मांगने को कहा। तब उस बालक नें सिद्धिविनायक से कहां 'हे प्रभु' मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर जा सकूं। तब बप्पा ने तथास्तु कहा।

भगवान श्री गणेश के तथास्तु कहने के बाद वह बालक अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पहुंचा। वहां उसने भगवान शिव को अपने ठीक होने की पूरी बात बताई। बालक की बात सुनकर भगवान शिव ने भी माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए 21 चतुर्थी का व्रत रखा। व्रत के प्रभाव से माता पार्वती भी प्रसन्न हो गई। इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को इस व्रत की पूरी महिमा बताई। इस बात को सुनकर माता पार्वती की मन में अपने बड़े पुत्र कार्तिक से मिलने की प्रबल इच्छा जाग उठी।

तब माता पार्वती ने भी 21 चतुर्थी का व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से भगवान कार्तिकेय माता पार्वती से मिलने स्वयं आ गए। तभी से यह व्रत संसार में विख्यात हो गया और इसे हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला व्रत माना जाने लगा। ऐसा कहा जाता है, कि यदि कोई व्यक्ति 21 चतुर्थी का व्रत पूरी श्रद्धा पूर्वक करें, तो बप्पा उसकी हर मनोकामना अवश्य पूर्ण कर देते हैं।

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