- देवभूमि उत्तराखंड की प्रचलित पूजा पद्धतियों में से एक है जागर।
- जागर के जरिए स्थानीय देवता को बुलाया जाता है।
- जागर के जरिए कुल या ग्राम देवता किसी मुनष्य के शरीर के अंदर अवतरित होते हैं।
मुंबई. देवभूमि उत्तराखंड देवताओं, कुल देवता और ग्राम देवताओं की भूमि है। गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में प्रचलित पूजा पद्धतियों में से एक है जागर। जागर के जरिए स्थानीय देवता जैसे गोल्ज्यू, सैम, कलबिष्ट, हरु, भूमिया, चौमू, महासू, नंदा, भूमिया, लाटू आदि को बुलाया जाता है। जागर के जरिए विशेष पूजा अर्चना कर इन्हें मनुष्य के शरीर में बुलाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार जागर के जरिए कुल या ग्राम देवता किसी मुनष्य के शरीर के अंदर अवतरित होकर व्यक्ति, परिवार, गांव या समुदायों के कष्ट, परेशानियों का कारण बताते हैं। यही नहीं, वह कारण के साथ-साथ निवारण भी बताते हैं। इसके अलावा देवता से न्याय की भी उम्मीद की जाती है। पूर्वजों या कुल देवता जिस व्यक्ति के अंदर आता है उसके लिए विशेष गद्दी लगाई जाती है। जिन्हें भगवान मानकर पूजा जाता है। जागरों की अवधि एक रात से लेकर पांच, ग्यारह, बाईस दिन और छः महीने तक की होती है।
ऐसे होता है जागर
जागर में ढोल-दमाऊ, डौंर-थाली और हुड़का जैसे यंत्रों पर विशेष धुन और थाली बजाई जाती है। इसके साथ-साथ देवगाथा भी गाई जाती है। देवगाथा में बताया जाता है कि देवता की उत्पत्ति कैसे हुई और उन्होंने क्या-क्या चमत्कारों किए हैं। इन गीत के मध्यम से गाकर मानव शरीर में देवता का अवतरण कराने की कोशिश की जाती है। देवता का अवतरण करने वाले व्यक्तियों को डंगरिया कहा जाता है। देवता के आगमन के बाद डंगरिया का हाव-भाव, बोलचाल का ढंग सामान्य नहीं रह जाता है।
दो तरह के होते हैं जागर
जागर दो तरह के होते हैं। पहला देव जागर और दूसरा भूत जागर। देव जागर में जहां ग्राम, स्थानीय या कुल देवता को बुलाया जाता है। वहीं, भूत जागर में किसी मृत व्यक्ति की आत्मा का आह्वान किया जाता है।
जागर में भजन गाने वाला जागरिया कहलाता है। वहीं, डंगरिया बने व्यक्ति को सात्विक भोजन खाना होता है। इसके अलावा शुद्ध जीवन शैली का भी पालन करना होता है।