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Nizamuddin Dargah: चिश्तिया सिलसिले से है हजरत निजामुद्दीन औलिया का ताल्लुक, जानें उनसे जुड़ी खास बातें

Updated Feb 01, 2021 | 22:32 IST

Hazrat Nizamuddin Aulia Dargah: हजरत निजामुद्दीन औलिया चिश्ती पीरों की परंपरा में चौथे थे। उनकी दरगाह हजरत दिल्ली में है, जहां हर रोज बड़ी तादाद में लोग जियारत के लिए आते हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
हजरत निजामुद्दीन औलिया दरगाह

13वीं शताब्दी के हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया भारत के सबसे मशहूर सूफी संतों में से एक हैं। हजरत निजामुद्दीन की दरगाह दिल्ली में है, जहां सभी धर्मों के लोग जाते हैं। यहां आम लोगों से लेकर मशहूर हस्तियां अपनी खाली झोलियां फैलाकर आते हैं। हजरत निजामुद्दीन ने अपनी जिंदगी में हमेशा इंसानियत, भाईचारे और प्यार की सीख दी। उन्हें ‘महबूब-ए-इलाही’ भी कहा जाता है। वह चिश्तिया सिलसिले के सूफी हैं। वह इस परंपरा में चौथे थे। पहले मुइनुद्दीन चिश्ती, दूसरे कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी जबकि तीसरे शेख फरीदुद्दीन गंजशकर थे। हजरत निजामुद्दीन के पूर्वज मध्य एशियाई शहर बुखारा से भारत आए थे।

बचपन में हो गया था पिता का निधन

बताया जाता है कि हजरत निजामुद्दीन का जन्म 1236 में उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ था। हालांकि, जब वह पांच साल के थे, तब उनके पिता अहमद बिन अली का निधन हो गया। कम उम्र में सिर से पिता का साया उठने के बाद हजरत निजामुद्दीन का लालन-पालन उनकी मां ने किया। साथ ही उनकी शिक्षा का ख्याल भी रखा। इसके बदा वह बहन के साथ दिल्ली आए और फिर लगभग बीस वर्ष की उम्र में पाकपटन चले गए। पाकपटन में वह फरीदुद्दीन गंजशकर के शिष्य बने। पाकपटन में कुछ समय रहने के बाद वह दिल्ली लौट आए और जिंदगीभर यहीं रहे। 

अपनी जिंदगी में तीन सल्तनतें देखीं

दिल्ली आने के बाद हजरत निजामुद्दीन की शोहरत खूब तेजी से फैली। आम लोगों सहित बादशाह, दरबारी, और शाही खानदान के सदस्य तक उनके अनुयायी थे। उनके बारे में समकालीन इतिहासकार जियाउद्दीन बर्नी ने ‘तारीख फीरोजशाही’ में कहा था कि हजरत निजामुद्दीन ने उस दौर में दीक्षा के द्वार जनसाधारण के लिए खोल दिए थे। हजरत निजामुद्दीन अपनी जिंदगी में दिल्ली की रियासत को तीन सल्तनतों के हाथों में देखा था। उनके दौर में ग़ुलाम, खिलजी और तुगलक वंश का शासन रहा। वह कभी किसी के दरबार में नहीं गए पर उनका प्रभाव किसी सुल्तान से कम नहीं था। 

अमीर खुसरो थे सबसे प्रिय शिष्य

 हजरत निजामुद्दीन औलिया के सबसे प्रिय शिष्य अमीर खुसरो थे। हिंदी खड़ी बोली या हिंदवी के पहले कवि कहे जाने वाले अमीर खुसरो भी अपने आध्यात्मिक गुरू को काफी मानते थे। वह निजामुद्दीन औलिया को दिलों का हकीम कहते थे। अमीर खुसरो का मकबरा हजरत निजामुद्दीन की दहगाह के अहाते में ही है। मालूम हो कि हजरत निजामुद्दीन 89 वर्ष की उम्र में बीमार पड़े थे और फिर साल 1325 में उनका इंतकाल हो गया। बताया जाता है कि हजरत निजामुद्दीन ने इंतकाल से 40 दिन पहले खाना बिल्कुल छोड़ दिया था। उन्हें खाने की खुशबू बर्दाश्त नहीं होती थी। 

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