- गंगा स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती है
- दसों दिशाओं के द्वार खुल जाते हैं
- शिव की कृपा प्राप्त होती है
Ganga Snaan Importance: एक बार भगवान शिव जी पार्वती जी के साथ हरिद्वार में घूम रहे थे। पार्वती जी ने देखा कि सहस्त्रों मनुष्य गंगा में नहाकर हर- हर गंगे कहते चले जा रहे हैं। परंतु सभी दुखी और पाप परायण हैं। तब पार्वती जी ने बड़े आश्चर्य से शिव जी से पूछा कि 'हे देव गंगा में इतनी बार स्नान करने पर भी इनके पाप और दुखों का नाश क्यों नहीं हुआ ? क्या गंगा में पापों के नाश का सामर्थ्य नहीं रही? तब शिवजी ने पार्वती जी से कहा- प्रिये गंगा में तो वही सामर्थ्य है। परंतु इन लोगों ने पाप नाशिनी गंगा में स्नान ही नहीं किया है। तब इन्हें लाभ कैसे होगा। पार्वती जी ने आश्चर्य से कहा स्नान कैसे नहीं किया? सभी तो नहा कर आ रहे हैं। अभी तक तो इनके शरीर भी नहीं सूखे हैं।
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शिव जी ने जब अपनी लीला से वृद्ध रूप धारण किया
शिवजी ने कहा ये केवल जल में डुबकी लगाकर आ रहे हैं। तुम्हें कल इसका रहस्य समझाऊंगा। दूसरे दिन बड़े जोर की बरसात होने लगी। गलियां कीचड़ से भर गईं। एक चौड़े रास्ते में एक गहरा गड्ढा था। चारों ओर कीचड़ भरा हुआ था। शिवजी ने लीला से वृद्ध रूप धारण किया और दीन विवश की तरह गड्ढे में जाकर ऐसे पड़े जैसे कोई मनुष्य चलता हुआ गड्ढे में गिर पड़ा हो और निकलने की चेष्टा करने पर भी न निकल पा रहा हो। पार्वती जी को शिव जी ने यह समझाकर गड्ढे के पास बैठा दिया कि देखो तुम लोगों को सुनो-सुनो कर यूं पुकारती रहो कि मेरे वृद्ध पति अकस्मात गड्ढे में गिर पड़े हैं। कोई पुण्यात्मा इन्हें निकालकर, इनके प्राण बचाए और मुझ असहाय की सहायता करें। शिवजी ने कहा- जब कोई गड्ढे से मुझे निकालने को तैयार हो तब इतना और कह देना कि मेरे पति सर्वथा निष्पाप हैं। इन्हें वही छुए जो स्वयं निष्पाप हो। यदि आप निष्पाप हैं तो इनको हाथ लगाइए नहीं तो हाथ लगाते ही आप भस्म हो जाएंगे।
कथन के डर से किसी ने भी पार्वती की बात स्वीकार नहीं किया
पार्वती जी तथास्तु कह कर गड्ढे के किनारे बैठ गईं और आने जाने वालों को शिवजी की सिखाई हुई बात कहने लगीं। गंगा में नहाकर लोगों के दल के दल आ रहे थे। सुंदर युवती को यूं बैठी देख कर कइयों के मन में पाप आया। कई लोक लज्जा से डरे तो कइयों को कुछ धर्म का भय हुआ। कई कानून से डरे। कुछ लोगों ने तो पार्वती जी को यह भी सुना दिया कि- मरने दे बुड्ढे को क्यों उसके लिए रोती है। आगे और कुछ दयालु सच्चरित्र पुरुष थे, उन्होंने करुणा वश युवती के पति को निकालना चाहा परंतु पार्वती के वचन सुनकर वे भी रुक गए। उन्होंने सोचा कि हम गंगा में नहाकर आए हैं। तो क्या हुआ पापी तो हैं ही कहीं हाथ न जल जाएं। बूढ़े को निकालने की वजह से इस स्त्री के कहे अनुसार हम स्वयं भस्म न हो जाएं। किसी का साहस नहीं हुआ। सैंकड़ों आए पूछकर चले गए। संध्या हो चली। शिवजी ने कहा पार्वती देखा आया कोई सच्चे ह्रदय से गंगा में नहाने वाला।
भगवान भोलेनाथ ने युवक को दिए दर्शन
कुछ देर बाद एक जवान हाथ में लोटा लिए हर हर गंगे करता हुआ निकला। पार्वती ने उसे भी वही बात कही। युवक का हृदय करूणा से भर आया। उसने शिवजी को निकालने की तैयारी की। पार्वती ने रोक कर कहा कि भाई यदि तुम सर्वथा निष्पाप नहीं होगे तो मेरे पति को छूते ही जल जाओगे। उसने उसी समय बिना किसी संकोच के दृढ़ निश्चय के साथ पार्वती से कहा कि माता मेरे निष्पाप होने में तुझे संदेह क्यों होगा। देखती नहीं मैं अभी गंगा नहाकर आया हूं। गंगा में गोता लगाने के बाद कभी पाप रहते हैं भला। आपके पति को निकालता हूं। युवक ने ऐसे बूढ़े को ऊपर उठा लिया। शिव--पार्वती ने उसे अधिकारी समझकर अपना असली स्वरूप प्रकट कर उसे दर्शन देकर कृतार्थ किया। शिवजी ने पार्वती से कहा कि इतने लोगों में से इस एक ने ही गंगा स्नान किया है।
इस दृष्टांत के अनुसार जो लोग बिना श्रद्धा और विश्वास के केवल दंभ के लिए गंगा स्नान करते हैं। उन्हें वास्तविक फल नहीं मिलता परंतु इसका यह मतलब नहीं कि गंगा स्नान व्यर्थ जाता है। गंगा स्नान का बहुत पुण्य भी है। गंगा स्नान करने से सभी पापों से तो मुक्ति मिलती ही है। साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। ऐसा हमारे धर्म पुराणों में बताया गया है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)