- ब्रह्माजी जी पर क्रोधित हुए थे शिवजी
- शिवजी की भौंहों से निकली थी भैरव नामक शक्ति
- ब्रह्माजी और विष्णुजी की गूजा से प्रसन्न हुए थे शिवजी
Mahashivratri Special Bhrama Vishnu Mahesh story: हर साल देशभर में शिवरात्रि खूब धूमधाम से मनाई जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं शिवरात्रि शुरू होने का असल कारण क्या है? इसके पीछे भी एक कथा है जो कि पुराणों के अनुसार खूब प्रचलित है। इस कथा का पूरा वर्णन शिव पुराण में दिया गया है। शिव पुराण के मुताबिक, भगवान शिवजी ने ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच हुए युद्ध को रूकवाने के लिए अग्नि स्तंभ के रूप में आए थे।
जब ब्रह्माजी और विष्णुजी में छिड़ा युद्ध
एक बार विष्णुजी लक्ष्मी जी के साथ शेषशैय्या पर शयन कर रहे थे। तभी ब्रह्माजी वहां पहुंचे और विष्णुजी से बोले उठ, मुझे देख, 'मैं' तेरा 'ईश्वर' आया हूं। इस पर क्रोधित होते हुए विष्णुजी ने कहा - सारा जग तो मुझमें वास करता है। तू मेरे नाभिकमल से प्रकट हुआ है। इसी बात को लेकर बहस युद्ध में तब्दील हो गयी। हंस ओर गरुण पर बैठकर दोनों युद्ध करने लगे। यह बात देवताओं ने जाकर शिवजी को बताई। शिवजी आकाश में छिपकर दोनों का युद्ध देख रहे थे। ब्रह्माजी-विष्णुजी एक-दूसरे के वध की इच्छा से माहेश्वर और पाशुपत अस्त्रों का प्रयोग कर रहे थे, जिनके प्रयोग से त्रैलोक्य भस्म हो जाता।
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शिवजी ने युद्ध को शांत करने के लिए अग्नि स्तंभ रूप धारण किया
शिवजी युद्ध को शांत करने के लिए महाअग्नि के रूप में दोनों के मध्य प्रकट हो गए। इस दृश्य को देखकर ब्रह्माजी और विष्णुजी कहने लगे यह अग्नि स्तंभ क्या है, पता लगाना चाहिए। विष्णुजी शूकर रूप में पाताल गए कुछ पता नहीं लगा। ब्रह्माजी हंस रूप में गगन की तरफ गए। वहां केतकी का फूल देखा और लगा कि हमने स्तम्ब का अंत देख लिया है। यह ब्रह्माजी का छल था। इसको जानते ही महादेव वहां प्रकट हो गए और ब्रह्माजी जी पर क्रोधित हो अपनी भौंहों से भैरव नामक शक्ति को प्रकट किया।
भैरव ने काटा ब्रह्माजी का सिर
भैरव ने ब्रह्माजी की शिखा पकड़कर पांचवा सिर काट लिया। ब्रह्माजी भैरव के चरणों में गिर गए। यह देख विष्णुजी ने शिवजी के चरणों में आश्रय लेते हुए कहा - आपकी कृपा से ही इनको पांचवा शीश मिला था। इनको क्षमा कर प्रसन्न हो जाइए।
हाथ जोड़े ब्रह्माजी जी और विष्णुजी शिवजी के बगल में जा बैठे और उनकी पूजा की। ब्रह्माजी और विष्णुजी से पूजित शिवजी प्रसन्न हो उनसे बोले तुम्हारी पूजा से मैं सन्तुष्ट हूं। अतः आज से इस दिन का नाम शिवरात्रि होगा जो कि मेरी प्रिय तिथि होगी।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)