- निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है
- इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करना शुभ माना जाता है
- इस साल 10 जून को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा
Nirjala Ekadashi Ka Mahatva 2022: हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी व्रत का बहुत महत्व है। वर्ष में 24 एकादशी आती है किंतु इन सब एकादशियों में सबसे फलदाई जेष्ठ शुक्ल की निर्जल एकादशी को माना जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करना शुभ माना जाता है। माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति पूरे साल एकादशी के व्रत ना रखें और सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत रखें तो उसे भी विशेष फल मिलता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर और अर्जुन को एकादशी व्रत के बारे में बताया था। इस साल 10 जून को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। निर्जला एकादशी के व्रत में पानी भी ग्रहण नहीं किया जाता है। इस दिन बिना जल पिए व्रत रखा जाता है। इसलिए से निर्जला एकादशी व्रत कहा जाता है। आइए जानते हैं क्यों मनाई जाती है निर्जला एकादशी। इसे रखने से क्या मिलता है फल।
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क्यों मनाई जाता है निर्जला एकादशी
हिंदू मान्यता के अनुसार एक बार की बात है। जब वेदों के रचयिता वेदव्यास पांडवों के गृह कुशलक्षेम के लिए पधारे। तब महाबली भीम ने उनका खूब आदर-सत्कार किया। हालांकि, वेदव्यास ने अपने तपोबल से भीम की व्यथा जान ली। उस समय वेद व्यास ने उनसे पूछा- हे महाबली तुम्हारे मन में कैसे विचार उमड़ रहे हैं? क्यों चिंतित दिख रहे हो?
तब महाबली भीम ने वेदव्यास से अपने मन की व्यथा सुनाई। उन्होंने कहा- हे पितामह आप तो सर्वज्ञानी हैं, आप तो जानते हैं कि घर में सभी लोग एकादशी का व्रत करते हैं, लेकिन मैं कर नहीं पाता हूं, क्योंकि मैं भूखा नहीं रह सकता हूं। मुझे कोई ऐसा व्रत विधि बताएं, जिससे करने से मुझे सभी एकादशियों के समतुल्य फल की प्राप्ति हो! उस समय वेदव्यास जी ने भीम से कहा- हे महाबली तुम्हें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
जानिए क्या मिलता है फल
ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी व्रत सभी तीर्थों में स्नान करने के समान होता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि निर्जला एकादशी व्रत रखने से इंसान सभी पापों से मुक्ति पा जाता है। यह भी मान्यता है कि इस व्रत के रखने से मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जीवन से सभी दुख कष्ट दूर हो जाते हैं। हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस व्रत को रखने से मृत्यु भी व्यक्ति के समीप नहीं आ पाती। इस व्रत में गोदान, वस्त्र दान, फल व भोजन दान का काफी महत्व होता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को भोज कराना भी शुभ माना जाता है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)