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Rhim ke Dohe: लाहौर में पैदा हुए रहीम दास के वो लोकप्रिय दोहे, जो आज भी कहते हैं जिंदगी की सच्चाई

Rahim Das Dohe in Hindi
Updated Jan 09, 2021 | 22:31 IST

हिंदी साहित्य जगत के प्रख्यात कवि और नवरत्नों की उपाधि प्राप्त करने वाले रहीम दास के दोहे आज लोकप्रिय हैं। आइए ऐसे में रहीम दास के कुछ लोकप्रिय दोहे के बारे में जानते हैं।

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Rahim Das Dohe in HindiRahim Das Dohe in Hindi
रहीम दास के दोहे

17 दिसंबर 1556 में लाहौर में जन्में हिंदी साहित्य जगत में अपना अतुल्य योगदान देने वाले रहीम दास ना केवल एक प्रख्यात कवि थे बल्कि उन्हें अकबर के दरबार में नवरत्नों की उपाधि भी प्राप्त थी। रहीम दास जी का पूरा नाम रहीम दास खान-ए-खाना है। उनके पिता का नाम बैरमखां था। बैरम खां एक तुर्की परिवार से आए थे और हुमायु की सेना में भर्ती हुए थे। उन्होंने मुगल साम्राज्य को फिर से स्थापित करने में मदद की थी।

वह अकबर की किशोरावस्था में उनके संरक्षक भी थे। वहीं रहीम अपने दोहे के लिए काफी मशहूर थे और उन्होंने कई किताबे भी लिखी हैं। आज भी रहीम के दोहे लोग गुनगुनाते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं रहीम दास के कुछ लोकप्रिय दोहे, जिन्हें हर कोई सुनना पसंद करता है।

1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय।।

अर्थ

अर्थात् रहीम दास जी कहते हैं कि हमें प्रेम के बंधन को कभी तोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि यह यदि एक बार टूट जाता है तो फिर दुबारा नहीं जुड़ता और यदि जुड़ता भी है तो गांठ पड़ जाती है।

2. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।

अर्थात् रहीम दास कहते हैं कि बड़ी वस्तु को देखकर छोटी वस्तु को नहीं फेंकना चाहिए। क्योंकि जहां पर छोटी सी सूई काम आती है, वहां तलवार कुछ नहीं कर सकती।

3. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।

अर्थ

अर्थात् रहिमन कहते हैं कि यदि आपका प्रिय आपसे सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे प्रिय को मनाना चाहिए क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लिया जाता है। 

4. जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घट जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कुछ दुख मानत नाहिं।।

अर्थात् रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि कृष्ण को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा कम नहीं होती।

5. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं क पिक, रितु बसंत के माहि।।

अर्थात् कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है। 

6. रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।

अर्थात् रहीम कहते हैं कि आंसु नयनों से बहकर मन का दुख प्रकट कर देते हैं। उसी प्रकार यह सत्य है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।

7. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग।।

रहीम दास जी कहते हैं की धन्य हैं वे लोग, जिनका जीवन सदा परोपकारी के लिए बीतता है, जिस तरह फूल बेचने वाले के हाथों में फूल की खुशबू रह जाती है। ठीक उसी प्रकार परोपकारियों का जीवन भी खुशबू से महकता है।

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